क्या आप जानते हैं कि नोटबंदी का मक़सद क्या था? क्या आपको पता है कि समय-समय पर इसका उद्देश्य क्या-क्या बताया गया, प्रधानमंत्री मोदी से लेकर, दूसरे मंत्री, अधिकारी तक ने नोटबंदी के क्या-क्या उद्देश्य बताए? मसलन-
- कालेधन को ख़त्म करना?
- देश को कैशलेस बनाना?
- बड़े नोटों को कम करना?
- नकली नोटों को खत्म करना?
- आतंकियों और नक्सलियों की कमर तोड़ना?
- नशीली दवाओं का क़ारोबार तबाह करना?
- फोर्मल इकॉनमी का विस्तार करना?
- कमजोर लोगों को अवसर मुहैया कराना?
वैसे, इसका जवाब मोदी सरकार ने नवंबर महीने में ही सुप्रीम कोर्ट को दिया था। उसने हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार से कहा था, ‘नोटबंदी करना जाली करेंसी, आतंक के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी की समस्याओं से निपटने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा और एक प्रभावी उपाय था। लेकिन यह केवल इतने तक सीमित नहीं था। परिवर्तनकारी आर्थिक नीतिगत क़दमों की कड़ी में यह अहम क़दमों में से एक था।’
तब सरकार ने कहा था कि नोटबंदी उस बड़ी नीति का एक अहम हिस्सा थी जिसका उद्देश्य फोर्मल इकॉनमी यानी औपचारिक अर्थव्यवस्था को बढ़ाना और अर्थव्यवस्था के दायरे में आने वाले लाखों लोगों के लिए अवसर बढ़ाना था।
औपचारिक अर्थव्यवस्था का मतलब है कि एक अर्थव्यवस्था का वह हिस्सा जिसके बारे में सरकार को पूरी तरह जानकारी है और जिसे सरकार अनुबंध व कंपनी कानून, कराधान और श्रम क़ानून के माध्यम से नियंत्रित करती है। सरकार ने यह भी कहा है कि इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अवसर पैदा करना भी था।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नोटबंदी की वजह से डिजिटल लेनदेन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, नकली मुद्रा में कमी आई और अधिक आयकर देने वाले हुए।
ये तो वो बात हुई जो सरकार ने पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट से बताया है। लेकिन क्या सरकार पहले भी यही उद्देश्य बताती रही थी? क्या प्रधानमंत्री मोदी ने छह साल पहले नोटबंदी की घोषणा करते वक़्त यही मक़सद बताया था?
8 नवंबर 2016 को रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी, 'देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त क़दम उठाना ज़रूरी हो गया है। आज मध्य रात्रि यानी 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानी ये मुद्राएं क़ानूनन अमान्य होंगी। 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों के ज़रिये लेन-देन की व्यवस्था आज मध्य रात्रि से उपलब्ध नहीं होगी।'
तब उन्होंने आगे कहा था, 'भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोट के क़ारोबार में लिप्त देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों के पास मौजूद 500 एवं 1,000 रुपये के पुराने नोट अब केवल कागज़ के एक टुकड़े के समान रह जायेंगे। ऐसे नागरिक जो संपत्ति, मेहनत और ईमानदारी से कमा रहे हैं, उनके हितों की और उनके हक़ की पूरी रक्षा की जायेगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था,
“
हमारा यह कदम देश में भ्रष्टाचार, काला धन एवं जाली नोट के ख़िलाफ़ हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं, सामान्य नागरिक जो लड़ाई लड़ रहा है, उसको इससे ताक़त मिलने वाली है।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री (8 नवंबर 2016 का भाषण)
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के आख़िरी हिस्से में दिवाली का ज़िक्र करते हुए कहा था, 'पूरे विश्व को भारत की इस ईमानदारी का उत्सव दिखाएँ, पूरे देश में प्रमाणिकता का पर्व मनाएं जिससे भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके। काले धन पर नकेल कस सके, जाली नोटों का खेल खेलने वालों को नेस्तनाबूद कर सके, जिससे कि देश का धन गरीबों के काम आ सके, हर ईमानदार नागरिक को देश की सम्पन्नता में उसकी उचित हिस्सेदारी मिल सके, आने वाली पीढ़ी गर्व से अपना जीवन जी सके। मैं आप सबके सहयोग के लिए पूरे विश्वास के साथ सवा सौ करोड़ देशवासियों की मदद से भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को और आगे ले जाना चाहता हूँ।'
प्रधानमंत्री मोदी ने छह साल पहले नोटबंदी की घोषणा के दौरान जो भाषण दिया था इसमें मुख्य तौर पर भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोट को ख़त्म करने और आतंकवाद पर लगाम लगाने का ज़िक्र था। लेकिन इसके बाद उनके मंत्री, बीजेपी नेता-समर्थक, अधिकारी अलग-अलग मक़सद जोड़ते गए।
कालेधन, नकली नोटों को ख़त्म करने के साथ ही, देश को कैशलेस इकॉनमी बनाने, बड़े नोटों को कम करने, आतंकियों और नक्सलियों की कमर तोड़ने, नशीली दवाओं का क़ारोबार तबाह करने जैसे मक़सद गिनाए गए।
ये मक़सद तब बताए जा रहे थे जब नोटबंदी को लेकर सरकार की आलोचना की जा रही थी। ऐसा इसलिए कि नोटबंदी लागू होने से पहले ही घोषणा के तुरत बाद देश में अफरा-तफरी मच गई थी। बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गईं। सोने की दुकानों पर भीड़ लग गई। बैंकों के बाहर लाइनें लगाकर नोटों को बदलवाने के लिए लोगों को हफ्तों तक परेशान होना पड़ा था। बाद में 500 के नए नोट और 2000 रुपए के नये नोट जारी किए गए थे। एक तरफ़ लोग अपने पुराने नोटों को जमा करने के लिए परेशान हो रहे थे वहीं दूसरी तरफ़ लोगों को हर रोज़ की ज़रूरत की चीजों के लिए पैसों की किल्लत हो गई थी। चाहे बैंक हों या फिर एटीएम लंबी-लंबी लाइनें लग रही थीं। ठिठुराती सर्द रात में भी लोग लाइनों में इंतज़ार कर रहे थे। पैसे के बिना इलाज नहीं होने, शादियाँ टूटने जैसी दिक्कतें आई थीं। लाइनों में लोगों के मरने की ख़बरें भी आई थीं।
तो सवाल है कि ये सब कष्ट झेलने के बाद भी क्या नोटबंदी के मक़सद को हासिल किया जा सका?
काला धन
क्या नोटबंदी से काला धन ख़त्म करने का लक्ष्य हासिल हुआ? भारतीय रिजर्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, 99 प्रतिशत से अधिक यानी क़रीब पूरा पैसा बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गया जिसे अमान्य क़रार दे दिया गया था। 15.41 लाख करोड़ रुपये के जो नोट अमान्य हो गए, उनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट वापस आ गए थे। नोटबंदी की कवायद के बाद से कितना काला धन बरामद हुआ है? इस पर अब तक कोई आँकड़ा सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया है। हालाँकि फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि नोटबंदी सहित विभिन्न काला धन विरोधी उपायों के माध्यम से काला धन के रूप में 1.3 लाख करोड़ रुपये की वसूली की गई है। इस बीच काला धन की बरामदगी के मामले लगातार आते रहे हैं।
नकली नोट
नकली नोटों पर क्या लगाम लगा? आरबीआई ने 27 मई को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि मार्च को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में जाली नोटों में 10.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। केंद्रीय बैंक ने 500 रुपये के नकली नोटों में 101.93 प्रतिशत की वृद्धि का पता लगाया, जबकि 2,000 रुपये के नकली नोटों में 54 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई। 10 रुपये और 20 रुपये के नकली नोटों में 16.45 और 16.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 200 रुपये के नकली नोट 11.7 फीसदी बढ़े। रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 रुपये और 100 रुपये के नकली नोटों में क्रमशः 28.65 और 16.71 प्रतिशत की गिरावट आई है।
कैशलेस इकॉनमी का जो लक्ष्य बताया गया था उसका हस्र क्या हुआ यह छुपा नहीं है, क्योंकि चलन में अब पहले से भी 72 फ़ीसदी से ज़्यादा नोट हैं। इसके अलावा न तो आतंकवादियों व नक्सलियों की कमर टूटी और न ही नशीली दवाओं का कारोबार ख़त्म हुआ। आतंकवाद आज भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। आज भी पाकिस्तान के आतंकवादी कश्मीर में हिंसा का घिनौना खेल खेल रहे हैं। आज भी नागरिकों और भारतीय सुरक्षा बलों को जान माल का नुक़सान हो रहा है। नक्सली गतिविधियों के मामले में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है।
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