loader

SC कॉलिजियमः चेतावनी के बावजूद नहीं बदल रहा सरकारी रवैया

सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम और सरकार के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। कॉलिजियम द्वारा भेजे गए नामों को क्लियर नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। अदालत ने न्याय सचिव और अतिरिक्त सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई 28 नवंबर को करने का फैसला किया है। मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई थी और उसी समय से कॉलिजियम को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में टकराव चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट उस समय से लेकर अब तक सरकार को करीब 8-10 बार इस मुद्दे पर चेतावनी दे चुका है।
जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा, सरकार न तो जजों की नियुक्ति करती है और न ही कॉलिजियम द्वारा भेजे गए नामों पर अपनी राय के बारे में कोई सूचना देती है। सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम तमाम जजों के नामों को पेंडिंग रखने को नामंजूर करती है। सरकार योग्य उम्मीदवारों और प्रमुख वकीलों को उनकी सहमति वापस लेने के लिए उनकी चुप्पी और निष्क्रियता को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। अपने आदेश में, बेंच ने यह भी कहा कि न्यायिक नियुक्तियों की मौजूदा कॉलिजियम सिस्टम में पर्याप्त "चेक एंड बैलेंस" का इंतजाम है।
ताजा ख़बरें
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय आया है जब पिछले कुछ दिनों से कानून मंत्री किरण रिजिजू ने पारदर्शिता की कमी के लिए कॉलिजियम सिस्टम पर लगातार हमला किया है। इसीलिए शुक्रवार को सरकार को फटकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से कानून मंत्री किरण रिजिजू को जवाब दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि कॉलिजियम सिस्टम में पर्याप्त चेक एंड बैलेंस है। यानी पूरी तरह से पारदर्शिता है।  

हमने पिछले साल एक व्यापक टाइमलाइन तैयार की थी जिसके द्वारा न्यायिक नियुक्तियां वैकेंसी से छह महीने पहले शुरू हो सकती हैं। यह उस तर्क पर आधारित था कि सरकार नामों को क्लियर कर देगी और वैकेंसी से पहले जजों की नियुक्तियां की जा सकेंगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम द्वारा भेजे गए 11 नाम अभी भी सरकार के पास पेंडिंग हैं।


-सुप्रीम कोर्ट, 11 नवंबर को

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उनमें से सबसे पुराने नामों की सूची 4 सितंबर, 2021 को भेजी गई थी और अंतिम दो 13 सितंबर, 2022 को भेजा गया है। नियुक्ति के लिए कॉलिजियम द्वारा फिर से भेजे गए 10 अन्य नाम 4 सितंबर, 2021 से 18 जुलाई, 2022 तक सरकार के पास लंबित हैं। 
मौजूदा स्थितिः सुप्रीम कोर्ट में 34 जजों के स्वीकृत पदों में से सात जजों की कुर्सी खाली है। 1 नवंबर तक, 1,108 जजों की कुल स्वीकृत संख्या में से 335 पद खाली थे। जजों के पद खाली होने से मुकदमों का अंबार बड़ी अदालतों में लगता जा रहा है।

कॉलिजियम पर लगातार हमले

पिछले पांच वर्षों में सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम सिस्टम पर लगातार हमले हो रहे हैं। कॉलिजियम वो सिस्टम है, जहां जजों के नाम तय करके सरकार को भेजे जाते हैं और सरकार उनकी मंजूरी देती है। कई बार सरकार उनमें कुछ नामों पर आपत्ति करती है, कई बार फेरबदल करती है। लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि सरकार कॉलिजियम सिस्टम से भेजे गए नामों को रोककर बैठ जाती है। इस समय  कानून मंत्री किरण रिजिजू न्यायिक नियुक्तियों को लेकर कॉलिजियम सिस्टम के खिलाफ लगातार बोल रहे हैं। उनके इस बयान पर गौर फरमाइएः 

जज अपना आधा समय यह तय करने में लगाते हैं कि इंसाफ देने के बजाय किसे जज के रूप में नियुक्त किया जाए।... कॉलिजियम सिस्टम "अपारदर्शी" है।... ऐसा सिर्फ भारत में होता है कि जहां जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं।...


किरण रिजिजू, कानून मंत्री, 17 अक्टूबर 2022. अहमदाबाद

शुरुआत...क्या हुआ था 2014 में 

केंद्र की सत्ता में आते ही सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम सिस्टम पर हमले शुरू हो गए थे।11 अगस्त 2014 को तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए एक वैकल्पिक सिस्टम नेशनल जूडिशल अप्वाइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी - राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अधिनियम पास किया, लेकिन 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने उसे असंवैधानिक करार दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उस कानून को क्यों असंवैधानिक घोषित किया था, यह जानना जरूरी है। मोदी सरकार उस आयोग के जरिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, जजों, हाईकोर्ट के जजों की सारी नियुक्ति का अधिकार अपने हाथ में लेना चाहती थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर जो नाम भेजता है, सरकार के अड़ंगा लगाने पर अदालत को चेतावनी देना पड़ती है। सुप्रीम अदालत ने 2021 के फैसले में तय की गई समय-सीमा के उल्लंघन के विभिन्न उदाहरणों का हवाला दिया गया। कई बार तो कॉलिजियम ने सरकार के मना करने पर नामों को फिर से भेजा। जजों की नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई है, उसमें यही कहा गया है कि अदालत के फैसलों का खुला उल्लंघन न्यायपालिका की आजादी के सिद्धांत के लिए हानिकारक है और इससे कानून के शासन पर उल्टा असर पड़ेगा।
कॉलिजियम कई बार कुछ वरिष्ठ वकीलों को भी जूडिशरी ज्वाइन करने का मौका देता है। लेकिन जिन वरिष्ठ वकीलों की प्रैक्टिस बहुत अच्छी चल रही होती है, वे मना भी कर देते हैं। लेकिन न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए तमाम जज कई बार वरिष्ठ वकीलों को मनाने में भी सफल रहते हैं। अदालत का मानना है कि काबिल वकीलों के जूडिशरी में आने से उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है।
अभी जो ताजा तनातनी हुई, उसमें दो उदाहरणों से कॉलिजियम के महत्व और मोदी सरकार की हठधर्मिता को समझा जा सकता है। 
जानकारी के मुताबिक वरिष्ठ वकील आदित्य सोंधी ने अपनी नियुक्ति के लिए सरकार की पुष्टि का एक साल तक इंतजार करने के बाद फरवरी में कर्नाटक हाईकोर्ट के जज के रूप में अपनी सहमति वापस ले ली। कर्नाटक हाईकोर्ट में जज के रूप उनकी नियुक्ति के लिए 2021 में उनका नाम दो बार सरकार को भेजा गया। यानी कॉलिजियम इस प्रतिष्ठित वकील को नियुक्त कराना चाहता था लेकिन सरकार क्लियर नहीं कर रही थी। एक अन्य जाने-माने वकील जयतोष मजूमदार, जिनके नाम को पहली बार जुलाई 2019 में सरकार के भेजा गया था, केंद्र सरकार ने उनके नाम को पेंडिंग रखा और इस साल की शुरुआत में मजूमदार का निधन भी हो गया। 
देश से और खबरें
अदालत का कहना है कि जब तक कि काबिल वकील जज बनकर बेंचों में नहीं आएंगे, कानून और इंसाफ की प्रक्रिया ही प्रभावित होती है।

अदालत के सामने वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने एक शिकायत भी पेश की। कोर्ट ने उस शिकायत का संज्ञान लिया और शुक्रवार के फैसले में जिक्र भी किया। उस शिकायत में कहा गया था कि सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता को सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में पदोन्नत करने को भी मंजूरी नहीं दी है। कॉलिजियम ने 26 सितंबर को उनका नाम दिया था।
बहरहाल, कोर्ट कॉलिजियम और केंद्र सरकार के बीच टकराव एक तरफ है। कई बार तमाम जज भी कॉलिजियम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुके हैं। लेकिन आलोचना करने वाले जजों ने कॉलिजियम को कभी खराब नहीं बताया। देखना है कि मौजूदा चीफ जस्टिस चंद्रचूड जो लंबे समय तक सीजेआई रहने वाले हैं, कॉलिजियम के मुद्दे पर क्या रुख दिखाते हैं।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें