सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्रा की जमानत को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि आशीष मिश्रा हफ्ते भर के अंदर सरेंडर करें। आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे हैं और लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में उन्हें बीते साल 9 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन फरवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आशीष को जमानत दे दी थी।
आशीष की जमानत के खिलाफ लखीमपुर हिंसा के पीड़ित परिवारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि पीड़ितों को सुनने से इनकार कर दिया गया और हाई कोर्ट ने जल्दबाजी दिखाई जिस वजह से जमानत दिए जाने के आदेश को रद्द किया जाता है। बेंच ने कहा कि पीड़ितों को जमानत के मामले की सुनवाई सहित बाकी प्रक्रियाओं में शामिल होने का पूरा अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने फैक्चुअल मैरिट पर ध्यान दिया जबकि यह जांच का विषय है।
शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने कई गैर जरूरी बातों और मुद्दों पर विचार किया। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अनुरोध किया कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस इस मामले को किसी और बेंच के पास भेज दें। लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा करना जरूरी नहीं है और इस मामले को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास जाने के लिए छोड़ दिया गया है।
दवे ने पिछली सुनवाइयों में अदालत से कहा था कि हाई कोर्ट ने जमानत दिए जाने के मामले में कई अहम बातों को नजरअंदाज कर दिया था।
लखीमपुर खीरी की घटना में कुल 8 लोगों की मौत हुई थी। इन में से 4 किसान भी थे। किसानों के साथ ही बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं शुभम मिश्रा, श्याम सुंदर निषाद और हरि ओम मिश्रा की भीड़ ने जान ले ली थी। एक पत्रकार की भी मौत इस घटना में हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च को आशीष मिश्रा की जमानत को रद्द न करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर खिंचाई की थी। सीजेआई ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा था, “मामले की निगरानी कर रहे जज की रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्होंने जमानत को रद्द करने की सिफारिश की थी और यह भी सिफारिश की थी कि इसके लिए आवेदन किया जाना चाहिए तो फिर ऐसा क्यों नहीं किया गया।”
पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज जस्टिस राकेश कुमार जैन को इस मामले की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया था।
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