चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्त (ईसी) की नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई जारी रही। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के एम जोसेफ की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि हमे ऐसा सीईसी चाहिए जो प्रधानमंत्री पर भी कार्रवाई कर सके। संवैधानिक बेंच ने यह टिप्पणी मौखिक की है। उसने अभी कोई आदेश पारित नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि उसने अभी जिस प्रक्रिया से
ईसी अरुण गोयल की नियुक्ति की है, उस नियुक्ति से संबंधित फाइल को हमारे सामने पेश किया जाए। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि अभी हाल ही में ईसी की नियुक्ति पूरी प्रक्रिया से की गई है। कोर्ट ने कहा कि हमें वो प्रक्रिया दिखा दीजिए। बता दें कि चार दिनों पहले सत्य हिन्दी ने अरुण गोयल की नियुक्ति के बारे में विस्तार से रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
इस संबंध में चार जनहित याचिकाएं (पीआईएल) सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। इनमें मांग की गई है कि सीईसी और ईसी की नियुक्तियों के लिए राष्ट्रपति के पास नामों की सिफारिश करने के लिए एक तटस्थ और स्वतंत्र चयन पैनल बनाया जाए। इसके लिए अदालत केंद्र सरकार को निर्देश दे। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह कर रहे हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एजी के सामने साफ कर दिया था कि इस मामले में सरकार को कोई न कोई फैसला लेना ही पड़ेगा। बेहतर होगा कि अदालत को सूचित कर दिया जाए कि वो क्या कदम उठाने जा रही है।
पीटीआई के मुताबिक बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले सप्ताह चुनाव आयुक्त (ईसी) की नियुक्ति में अपनाई गई प्रक्रिया केंद्र सरकार अदालत के सामने रखें। बता दें कि केंद्र सरकार ने ईसी के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति की थी। गोयल की रिटायरमेंट अभी 6 हफ्ते बाकी थे लेकिन उन्होंने पिछले शुक्रवार को वीआरएस ले लिया। केंद्र सरकार ने अगले ही दिन शनिवार 19 नवंबर को गोयल को ईसी नियुक्त कर दिया। अरुण गोयल ने सोमवार को चुनाव आयुक्त का पद संभाल भी लिया। यह सब आनन-फानन में हुआ। इस साल मई से अब तक ईसी का पद सुशील चंद्रा के रिटायर होने के बाद से तीन सदस्यीय आयोग में खाली पड़ा था। बेंच ने बुधवार को कहा-
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हमें एक सीईसी की जरूरत है जो एक पीएम के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके। मान लीजिए उदाहरण के लिए, कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप हैं और सीईसी को कार्रवाई करनी है, लेकिन बाद वाला कमजोर है और कार्रवाई नहीं कर सकता है। तब क्या होगा। क्या यह पूरी तरह व्यवस्था का ध्वस्त होना नहीं है। सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से ऊपर माना जाता है और उसे आजाद होना चाहिए। ये ऐसे पहलू हैं जिन पर आपको (केंद्र के वकील) विचार करना चाहिए कि हमें चयन के लिए एक बड़े आजाद निकाय की जरूरत क्यों है।
-जस्टिस के.एम.जोसेफ की बेंच, 23 नवंबर 2022 को मौखिक रूप से
बेंच ने मौखिक रूप से कहा कि तमाम समितियां कहती हैं कि बदलाव की सख्त जरूरत है, और राजनेता भी चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता है।
सुनवाई के दौरान, एजी ने तर्क दिया कि परंपरा यह है कि राज्य और केंद्र सरकार के सभी वरिष्ठ नौकरशाहों और अधिकारियों को नियुक्ति के समय ध्यान में रखा जाता है और इसका पूरी तरह से पालन किया जाता है। एजी ने कहा-
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नियुक्ति परंपरा के आधार पर की जाती है और सीईसी की कोई अलग नियुक्ति प्रक्रिया नहीं है। एक को ईसी के रूप में नियुक्त किया जाता है और फिर वरिष्ठता के आधार पर एक सीईसी।
- तुषार मेहता, एजी, सुप्रीम कोर्ट में 23 नवंबर 2022 को
इस पर जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि ईसी की नियुक्ति में एक पारदर्शी सिस्टम होना चाहिए, और तंत्र ऐसा होना चाहिए कि लोग इस पर सवाल न उठाएं। उन्होंने कहा कि, आपने अभी दो दिन पहले किसी को ईसी के रूप में नियुक्त किया है ... हमें दिखाइए कि किस सिस्टम से आपने उनकी नियुक्ति की। इस पर, एजी ने जवाब दिया: तो क्या हम कह रहे हैं कि कैबिनेट में कोई विश्वास नहीं है? इस पर जस्टिस रस्तोगी ने जवाब दिया- नहीं, हम कह रहे हैं हमारी संतुष्टि वो तंत्र करता, जिसके जरिए आपने दो दिन पहले नियुक्ति की।
एजी ने जवाब दिया कि उन्होंने पहले ही बताया है कि कैसे एक परंपरा का पालन किया जाता है। नियुक्ति में शामिल प्रक्रिया और नियुक्तियां वरिष्ठता के आधार पर की जाती हैं। अभी हाल में जिस ईसी की नियुक्ति की गई, वो पद मई से खाली था। यह किसी सिविल सर्वेंट को चुनने का सिस्टम नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है। एजी ने कहा कि यह एक पूरी तरह से अलग बहस है, और क्या हम उम्मीदवारों को एक राष्ट्रीय पूल में ला सकते हैं, यह एक बड़ी बहस है। उन्होंने आगे कहा कि सिस्टम में एक अंतर्निहित गारंटी भी है, जब भी राष्ट्रपति सुझाव से संतुष्ट नहीं हैं तो कार्रवाई कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2018 में, सीईसी और ईसी के चयन के लिए कॉलिजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को पांच-जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की थीं। अदालत ने कहा था कि 1996 से कोई पूर्णकालिक सीईसी आया ही नहीं। केंद्र में जो भी सरकार रही, उसने सिस्टम को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्व. टीएन शेषन जैसे लोग कभी कभी आते हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने उसके बाद ऐसे सभी सीईसी की नियुक्ति अपने हिसाब से कम समय के लिए की। उसने नियम का फायदा उठाया।
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