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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें ठीक से काम नहीं कर रही हैं या भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में इसमें वोट पड़ रहे हैं। यह आपराधिक लापरवाही है।
अखिलेश यादव, अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी
दो बातें उभर कर सामने आती हैं। एक, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की प्रोग्रामिंग में छेड़छाड़ कर पार्टी विशेष के पक्ष में वोटिंग करवाई जा सकती है। दो, ईवीएम को बाहर से नियंत्रित किया जा सकता है और उसके नतीजे बदले जा सकते हैं।
क्या है ईवीएम?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन चार तरह की होती हैं- पंच कार्ड वोटिंग, डाइरेक्ट रिकॉर्ड इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग, इंटरनेट वोटिंग और ऑप्टिकल स्कैन वोटिंग। भारत में डाइरेक्ट रिकॉर्ड इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन है।चुनाव आयोग का दावा है कि बैलट यूनिट की प्रोग्रामिंग से छेड़छाड़ किसी कीमत पर नहीं की जा सकती है। ये मशीनें वाई-फ़ाई या इंटरनेट या किसी दूसरे तरीके से बाहर से कहीं से नहीं जुड़ी होती हैं। लिहाज़ा, बाहर से किसी तरह प्रभावित नहीं किया जा सकता है। यह मुमकिन ही नहीं है।
सच क्या है?
जानकारों का कहना है कि इस मशीन के सोर्स कोड के रूप में लॉजिकल कमान्ड्स की एक सूची होती है, जिससे प्रोग्राम बनता है और यह प्रोग्राम ही मशीन चलाता है। इस सोर्स कोड को मशीन के माइक्रो कंट्रोलर से जोड़ा जाता है ताकि सोर्स कोड सुरक्षित रहे।ईवीएम हैक कर दिखाया
आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने 2017 में दिल्ली विधानसभा में ईवीएम को हैक कर दिखाया और पूरे देश में तहलका मचा दिया। लेकिन चुनाव आयोग ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वह मशीन चुनाव आयोग की ईवीएम से सिर्फ देखने में एक समान है, मिलती-जुलती है, लेकिन उसके फ़ीचर ईवीएम जैसे नहीं हैं। इसलिए ईवीएम हैक करने का दावा ग़लत है।“
आयोग लोगों से कहता है कि वह उनके सामने ईवीएम हैक करे, यानी सुरक्षा प्रोटोकॉल के रहते ईवीएम हैक कर दिखाए। जो हैक करेगा, वह पहले सुरक्षा प्रोटोकॉल में ही सेंध लगाएगा। इसलिए आयोग के दावे में सच्चाई नहीं है।
हरि के प्रसाद, तकनीकी सलाहकार, आंध्र प्रदेश सरकार
ईवीएम की सुरक्षा
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए अलग-अलग तर्क दिए हैं। उसका कहना है कि हार्डवेअर से सॉफ़्टवेअर सब कुछ फूलप्रूफ़ है, इसके अलावा सुरक्षा प्रोटोकॉल अपनी जगह सही है। ऐसे में किसी तरह का छेड़छाड़ मुमकिन ही नहीं है। उसका कहना है:- सभी ईवीएम दो तालों में बंद रखे जाते हैं और बीच बीच में उनकी जाँच होती रहती है।
- ज्योंही किसी ईवीएम को खोलने की कोशिश की जाएगी, वह काम करना बंद कर देगा। जब चुनाव नहीं होते हैं, ईवीएम की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था रहती है।
- हर ईवीएम की सालाना जाँच परख होती है। उसकी रिपोर्ट चुनाव आयोग को दी जाती है।
- इसमें ख़ुद की जाँच करने के फ़ीचर लगे हुए हैं, जिसके तहत जितनी बार इसे स्विच ऑन किया जाएगा, इसके हार्डवेअर और सॉफ़्टवेअर की जाँच हो जाएगी।
- दो सरकारी कंपनियाँ ईवीएम बनाती हैं। उनका प्रोग्राम कोड इन कंपनियों में ही तैयार किया जाता है, उसे आउटसोर्स नहीं किया जाता है।
- देश में माइक्रोचिप नहीं बनती है। इसलिए भारत सिर्फ अमेरिका और जापान से ही माइक्रोचिप खरीदता है। सॉफ़्टवेअर कोड देश में ही लिखा जाता है, उसे मशीन कोड में बदला जाता है और वह बदला हुआ कोड जापान या अमेरिका को दिया जाता है। इसलिए कोड से छेड़छाड़ की कोई गुंजाइश नहीं है।
- हर माइक्रोचिप का एक पहचान नंबर होता है और उसे बनाने वाली कंपनी के पास उसका डिजिटल सिग्नेचर होता है। इसलिए माइक्रोचिप को बदलने की संभावना नहीं है।
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