क्या पाकिस्तान और इज़रायल की तरह भारत की सेना की पहचान भी धर्म विशेष या ख़ास विचारधारा के रूप में की जाएगी? क्या भारतीय सेना के पेशेवर, धर्मनिरपेक्ष और हर तरह के लोगों को लेकर चलने वाली इमेज ख़तरे में है? क्या हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का उद्येश्य लेकर चलने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब सेना पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि आरएसएस ने अपना पहला आर्मी स्कूल खोलने का फ़ैसला किया है। इस स्कूल में बच्चों को इस तरह प्रशिक्षित किया जाएगा कि वे अधिक से अधिक तादाद में भारतीय सेना में दाखिले की परीक्षा पास कर सकें और वहां प्रवेश कर सकें।
विद्या भारती का अजेंडा
शिक्षा से जुड़ा आरएसएस का संगठन
विद्या भारती यह स्कूल खोलेगा और पहले स्कूल को राजेंद्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया के नाम से जोड़ा जाएगा। रज्जू भैया संघ के सरसंघचालक यानी प्रमुख थे। रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर की स्थापना उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के शिकारपुर में की जाएगी। रज्जू भैया का जन्म इसी ज़िले में हुआ था।
यह स्कूल सेंट्र बोर्ड ऑफ़ सेकंडरी एजुकेशन यानी सीबीएसई के तहत चलेगा। इसमें कक्षा 6 से 12 तक की पढ़ाई होगी। स्कूल भवन बनने का काम चल रहा है और अगले सत्र में यह चालू हो जाएगा।
विद्या भारती सरस्वती शिशु मंदिर पूरे देश में लगभग 30 हज़ार स्कूल चलाता है, जिसमें 30 लाख से अधिक बच्चों की पढ़ाई का दावा करता है। इसका दावा है कि इसमें 1.50 लाख शिक्षक हैं।
ख़ुद विद्या भारती का कहना है कि ये स्कूल विचारधारा विशेष के लिए चलाए जाते हैं और भारतीय मूल्यों को स्थापित करने के लिए हैं। इसलिए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसका मक़सद सेना में अपनी विचारधारा के लोगों को भेजना है।
आरएसएस की विचारधारा बिल्कुल साफ़ है, वह
हिन्दुत्व के अजेंडे पर काम करता है, हिन्दुत्व को देश में स्थापित करना चाहता है और देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है।
इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि आरएसएस ने अपनी स्थापना के कुछ साल बाद ही यानी 1937 में महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में भोंसला मिलिटरी स्कूल की स्थापनी की थी। इसकी स्थापना बी. एस. मुंजे ने की थी, वह आरएसएस संस्थापक बी. एस. हेडगवार के गुरू माने जाते थे। फ़िलहाल इस स्कूल को सेंट्रल हिन्दू मिलिटरी एजुकेशन सोसाइटी चलाती है।
पाक इस्लामी, भारतीय हिन्दू सेना?
ऐसे में यह सवाल बिल्कुल स्वाभाविक है कि क्या यह पाकिस्तान और इजरायल जैसा नहीं होने जा रहा है। जनरल ज़िया उल हक़ के समय तक पाकिस्तानी सेना का इस्लामीकरण नहीं हुआ था। पर उनके समय जिस तरह हज़ारों की तादाद में मदरसे खुले और वहाँ से निकले बच्चे सेना समेत तमाम जगहों पर छाते चले गए, अगले कुछ सालों में पाकिस्तानी सेना पर इस्लाम का रंग चढ़ने लगा। आज वह पूरी तरह इस्लामी सेना बन चुकी है। इज़रायल शुरू से यहूदियों की सेना रही है। वहाँ ऐसे रंगरूट ज़्यादा हैं जो यहूदी स्कूलों या से भले न निकले हों, इज़रायल पर यहूदियों के वर्चस्व के हिमायती रहे हैं। इज़रायली सेना में अरब, फ़लीस्तीनी मूल के मुसलमान सैनिक भी हैं, पर वे भी यहूदी वर्चस्व को मानते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि इज़रायल में सेना में काम करना अनिवार्य है। इसके बिना किसी को विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं मिलती।
तो क्या
भारतीय सेना में भी ऐसे लोगों की तादाद ज़्यादा होगी जो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की भावना से ओतप्रोत होंगे? क्या भारतीय सेना में ऐसे लोग ज़्यादा होंगे जो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के मक़सद से सेना में भर्ती होंगे?
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