अंग्रेजी अख़बार, 'द इकनॉमिक टाइम्स' में संघ के एक वरिष्ठ नेता की ओर से कहा गया है, ‘हम शुरू से कहते रहे हैं कि एनआरसी से कोई नतीजा नहीं निकलेगा और असम विदेशियों से आज़ाद नहीं हो पाएगा और एनआरसी की फ़ाइनल सूची से इस बात को सही साबित कर दिया है। बड़ी संख्या में हिंदू और कुछ अन्य स्थानीय समुदायों के लोग इससे बाहर रह गए हैं।’
संघ के नेता ने आगे कहा, ‘हम इस बात की माँग करेंगे कि केंद्र सरकार फ़ॉरनर्स ट्रिब्यूनल में अपील का समय पूरा होने के बाद दिसंबर में नागरिकता संशोधन विधेयक लेकर आए। यह एनआरसी अंतिम नहीं हो सकती।’ ख़बर में संघ के नेता ने नाम नहीं ज़ाहिर करने की इच्छा जताई है।
नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। विधेयक में प्रावधान है कि उन्हें 6 साल भारत में रहने पर भारत की नागरिकता मिल जाएगी और इसके लिए किसी दस्तावेज़ को दिखाने की ज़रूरत भी नहीं होगी। लोकसभा चुनाव से पहले पूर्वोत्तर में इस बिल का जोरदार विरोध हुआ था।
बीजेपी के सहयोगी दल असम गण परिषद के अलावा पूर्वोत्तर के 10 समर्थक राजनीतिक दलों ने नागरिकता विधेयक का जमकर विरोध किया था। लोकसभा में यह विधेयक फ़रवरी में पास हो चुका है। बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी कहा था कि वह पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्तियों के संरक्षण के लिए और उन्हें उत्पीड़न से बचाने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
संघ के नेता ने कहा कि कई संगठनों ने जुलाई 2018 में प्रकाशित हुए एनआरसी के ड्राफ़्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और इसमें बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले जिलों के 20 फ़ीसदी और अन्य जिलों के 10 फ़ीसदी लोगों के नामों की फिर से जाँच करने की माँग कहा था। 'द इकनॉमिक टाइम्स' के मुताबिक़, संघ के नेता ने कहा कि उनकी माँग पूरे देश में एनआरसी बनाने की है और संघ के स्वयंसेवकों से जो सही मायने में भारतीय नागरिक हैं उनकी मदद करने के लिए कहा गया है।
इस बीच ख़बर यह है कि संघ और बीजेपी के बीच राजस्थान के पुष्कर में 7 से 9 सितंबर तक होने वाली समन्वय बैठक में एनआरसी, कश्मीर और देश के आर्थिक हालात को लेकर चर्चा हो सकती है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह पहली समन्वय बैठक होगी।
बता दें कि संघ की लंबे समय से माँग थी कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया जाए, अब जब उसकी माँग पूरी हो चुकी है तो बैठक में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद बने हालात पर चर्चा हो सकती है। इसके अलावा संघ से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ ने माँग की है कि आर्थिक और श्रम सुधारों को जल्द से जल्द लागू किया जाए।
संघ से जुड़े एक और संगठन लघु उद्योग भारती ने भी केंद्र सरकार से माँग की है कि वह टेक्सटाइल, ऑटो और रियल इस्टेट सेक्टर के लिए ठोस क़दम उठाये। संघ के एक प्रचारक ने कहा, सितंबर में होने वाली संघ और बीजेपी की बैठक काफ़ी महत्वपूर्ण होती है और इसमें संघ से जुड़े सभी संगठन अपनी रिपोर्ट पेश करते हैं।
बता दें कि एनआरसी को लेकर असम बीजेपी भी नाराज है और वहाँ के हिंदू संगठन भी इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठा चुके हैं। असम की बीजेपी सरकार के मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इसे लेकर नाराज़गी जताई थी लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर और उत्तर-पूर्व की हरेक जनसभा में घुसपैठ को देश की सबसे गंभीर समस्या करार दिया था। अमित शाह ने तो ऐसे लोगों को दीमक तक बताया था।
ऐसे में बीजेपी के सामने हालात बेहद मुश्किल हैं। सुप्रीम कोर्ट का रुख एनआरसी के मुद्दे को लेकर बेहद कड़ा है तो बीजेपी एनआरसी से बाहर रहे हिंदुओं को किस तरह राहत देगी, यह सबसे बड़ा सवाल है।
अब इसमें मुसीबत बीजेपी के लिए खड़ी हो गई है क्योंकि वह घुसपैठियों को देश से बाहर करने की बात कहती रही है लेकिन अब जब एनआरसी में हिंदुओं के नाम बाहर रहने की ख़बरें आई हैं तो बीजेपी और हिंदू संगठनों में बेचैनी है। क्योंकि बीजेपी इस मसले को राष्ट्रवाद और देश की सुरक्षा के मसले से जोड़ती रही है। हालाँकि गृह मंत्रालय ने कहा है कि एनआरसी से बाहर रह गए लोगों को अपनी बात रखने का पूरा मौक़ा दिया जायेगा। लेकिन अगर असमी या बंगाली हिंदुओं को विदेशी घोषित कर देश से बाहर जाना पड़ा तो इससे बीजेपी के पूरे देश भर के हिंदू वोट बैंक के नाराज होने का ख़तरा है और इसका सियासी नुक़सान होने की आशंका है और संघ ने इसी आशंका के तहत सरकार से नागरिकता संशोधन विधेयक को फिर से लाने के लिए कहा है।
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