बीजेपी भले ही खुले तौर पर न माने कि लोकसभा चुनाव में उसे बहुत बड़ा झटका लगा है, लेकिन उसका मातृ संगठन आरएसएस तो कम से कम ऐसा ही मानता है। आरएसएस को ऐसा लगता है कि अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की वजह से पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन रहा है।
संघ से जुड़ी एक पत्रिका ऑर्गनाइजर ने एक लेख छापा है जिसमें कहा गया है कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव में मदद के लिए आरएसएस से संपर्क नहीं किया और इस वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पत्रिका में छपे लेख में संपर्क नहीं करने की जो बात कही गई है उसकी पुष्टि एक इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान ही की थी।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से इंटरव्यू में कहा था कि 'पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।'
शारदा ने कहा, 'अगर भाजपा के स्वयंसेवक आरएसएस से संपर्क नहीं करते हैं, तो उन्हें जवाब देना होगा कि उन्हें ऐसा क्यों लगा कि इसकी ज़रूरत नहीं है।'
ऑर्गनाइजर के लेख में चुनाव नतीजों को भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए अति आत्मविश्वास की हकीकत बताया गया है।
यह लेख संगठन के प्रति भाजपा के रवैये को लेकर संघ परिवार के भीतर की बेचैनी को दिखाता है। अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार शारदा ने लेख में कहा है, 'यह झूठा अहंकार कि केवल भाजपा के नेता ही वास्तविक राजनीति समझते हैं और आरएसएस के सहोदर गांव के गँवार हैं, हास्यास्पद है।' उन्होंने लिखा है, 'आरएसएस भाजपा की कोई फील्ड फोर्स नहीं है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के अपने कार्यकर्ता हैं। मतदाताओं तक पहुँचने, पार्टी के एजेंडे को समझाने, लिखा हुआ और मतदाता कार्ड आदि बाँटने जैसे नियमित चुनावी काम इसकी जिम्मेदारी है।'
शारदा ने लिखा है कि नए जमाने के सोशल मीडिया और सेल्फी वाले कार्यकर्ताओं द्वारा पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने भाजपा पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
लेख में यह भी कहा गया है कि मोदी जादू की भी अपनी सीमाएं हैं। उन्होंने कहा, 'यह विचार कि मोदीजी सभी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं, इसका सीमित प्रभाव का है। यह विचार तब आत्मघाती साबित हुआ जब उम्मीदवारों को बदल दिया गया, स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोपा गया और दलबदलुओं को अधिक महत्व दिया गया। देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले सांसदों की बलि देना दुखद है।'
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