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अति आत्मविश्वासी भाजपा नेताओं के कारण निराशाजनक प्रदर्शन: संघ नेता

बीजेपी भले ही खुले तौर पर न माने कि लोकसभा चुनाव में उसे बहुत बड़ा झटका लगा है, लेकिन उसका मातृ संगठन आरएसएस तो कम से कम ऐसा ही मानता है। आरएसएस को ऐसा लगता है कि अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की वजह से पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन रहा है।

संघ से जुड़ी एक पत्रिका ऑर्गनाइजर ने एक लेख छापा है जिसमें कहा गया है कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव में मदद के लिए आरएसएस से संपर्क नहीं किया और इस वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पत्रिका में छपे लेख में संपर्क नहीं करने की जो बात कही गई है उसकी पुष्टि एक इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान ही की थी।

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बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्‍होंने इंडियन एक्सप्रेस से इंटरव्यू में कहा था कि 'पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।'

शारदा ने कहा, 'अगर भाजपा के स्वयंसेवक आरएसएस से संपर्क नहीं करते हैं, तो उन्हें जवाब देना होगा कि उन्हें ऐसा क्यों लगा कि इसकी ज़रूरत नहीं है।' 

लेख में चुनाव नतीजों का ठीकरा भाजपा पर फोड़ा गया है। इसमें कहा गया है, '2024 के आम चुनाव के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक का मौक़ा है। उन्हें यह एहसास नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का 400+ का आह्वान भाजपा के लिए एक लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था। लक्ष्य मैदान में कड़ी मेहनत से हासिल किए जाते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि वे अपनी धुन में खुश थे, मोदीजी के आभामंडल से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, इसलिए वे जमीन पर आवाज नहीं सुन रहे थे।'
ऑर्गनाइजर के लेख में चुनाव नतीजों को भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए अति आत्मविश्वास की हकीकत बताया गया है।
लेख में कहा गया है कि नेता सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने में व्यस्त थे और जमीनी स्तर पर नहीं उतरे। इसमें यह भी कहा गया है कि वे 'अपनी ही धुन में खुश थे'। लेख में कहा गया है कि वे जमीनी स्तर पर आवाजों को नहीं सुन रहे थे। आरएसएस के आजीवन सदस्य रहे रतन शारदा ने यह लेख लिखा है। 

यह लेख संगठन के प्रति भाजपा के रवैये को लेकर संघ परिवार के भीतर की बेचैनी को दिखाता है। अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार शारदा ने लेख में कहा है, 'यह झूठा अहंकार कि केवल भाजपा के नेता ही वास्तविक राजनीति समझते हैं और आरएसएस के सहोदर गांव के गँवार हैं, हास्यास्पद है।' उन्होंने लिखा है, 'आरएसएस भाजपा की कोई फील्ड फोर्स नहीं है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के अपने कार्यकर्ता हैं। मतदाताओं तक पहुँचने, पार्टी के एजेंडे को समझाने, लिखा हुआ और मतदाता कार्ड आदि बाँटने जैसे नियमित चुनावी काम इसकी जिम्मेदारी है।'

शारदा ने लिखा है कि नए जमाने के सोशल मीडिया और सेल्फी वाले कार्यकर्ताओं द्वारा पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने भाजपा पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
लेखक ने भाजपा के सांसदों और मंत्रियों की भी आलोचना की है कि वे पहुंच से बाहर हो गए हैं। उन्होंने लिखा, 'भाजपा या आरएसएस के किसी भी कार्यकर्ता और आम नागरिक की सबसे बड़ी शिकायत सालों से स्थानीय सांसद या विधायक से मिलना मुश्किल या असंभव है, मंत्रियों की तो बात ही छोड़िए। उनकी समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता एक और पक्ष है। भाजपा के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा व्यस्त क्यों रहते हैं? वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कभी दिखाई क्यों नहीं देते? संदेशों का जवाब देना इतना मुश्किल क्यों है?'
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लेख में यह भी कहा गया है कि मोदी जादू की भी अपनी सीमाएं हैं। उन्होंने कहा, 'यह विचार कि मोदीजी सभी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं, इसका सीमित प्रभाव का है। यह विचार तब आत्मघाती साबित हुआ जब उम्मीदवारों को बदल दिया गया, स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोपा गया और दलबदलुओं को अधिक महत्व दिया गया। देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले सांसदों की बलि देना दुखद है।'

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क़मर वहीद नक़वी
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