आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के बालाकोट स्थित कैंप को ध्वस्त करने के भारत के दावे पर अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने एक बार फिर सवाल उठाए हैं। रॉयटर्स ने हाई रिज़ाल्यूशन सैटलाइट इमेज जारी कर यह दावा किया है कि जैश-ए-मुहम्मद का मदरसा अभी भी उसी जगह मौजूद है और इसे कोई नुक़सान नहीं पहुँचा है। रॉयटर्स ने दावा किया है कि यह मदरसा पहले जैसी स्थिति में ही है।
इससे पहले बुधवार को भी रॉयटर्स ने सैटलाइट तसवीर जारी करके भारत की ओर से आतंकी संगठन के ठिकानों को बरबाद करने के दावे पर सवाल खड़े किए थे।
रॉयटर्स की टीम ने गुरुवार को मदरसे के आसपास के इलाक़े का जायजा लिया। टीम मदरसे से 100 मीटर की दूरी तक पहुँची। रॉयटर्स के मुताबिक़, चारों ओर से पेड़ों से घिरी इस मदरसे की इमारत को देखकर कहीं से यह नहीं लगता कि इसे हमले में किसी तरह का नुक़सान हुआ है।
ग़ौरतलब है कि भारतीय वायुसेना ने 26 फ़रवरी को पाकिस्तान में घुसकर हवाई हमला किया था और दावा किया था कि पायलट अपने लक्ष्य पर यानी जैश-ए-मुहम्मद के मदरसे पर निशाना लगाने में सफल रहे थे। वायुसेना की कार्रवाई के बाद विदेश सचिव विजय गोखले ने दावा किया था कि इस हवाई हमले में जैश के कई आतंकी, ट्रेनर मारे गए हैं। लेकिन रॉयटर्स ने एक बार फिर इस बात पर सवाल खड़े किए हैं कि क्या वास्तव में जैश के कैंप को उतना नुक़सान हुआ है, जिसका दावा किया जा रहा है।
एक स्थानीय ग्रामीण के हवाले से रॉयटर्स कहता है कि बालाकोट कस्बे के जाबा गाँव में मौजूद यह मदरसा पिछले साल जून में ही बंद कर दिया गया था। बता दें कि बालाकोट कस्बा पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में है। ग्रामीण ने बताया कि यह मदरसा जाबा के आसपास की पहाड़ियों की चोटी पर एक सफ़ेद इमारत के रूप में था।
एक अन्य ग्रामीण मुहम्मद नसीम ने रॉयटर्स की टीम से कहा कि यह मदरसा पूर्व राष्ट्रपति जनरल ज़िया-उल-हक़ के कार्यकाल (1978-88) के दौरान खोला गया था लेकिन अब यह यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। रॉयटर्स के मुताबिक़, मदरसे के पास जाने पर पता चलता है कि सैटलाइट तसवीर पूरी तरह सही है।
रॉयटर्स की टीम को मदरसे के पास जाने की इज़ाजत नहीं दी गई। पाकिस्तान की सेना के अधिकारियों को इस मदरसे के आसपास तैनात किया गया है।
रॉयटर्स के मुताबिक़, इन अधिकारियों ने इस बारे में ज़्यादा बात करने से मना कर दिया। लेकिन उन्होंने इतना ज़रूर कहा कि भारतीय हमले में यहाँ की किसी भी इमारत को कोई नुक़सान नहीं हुआ है और न ही किसी की जान गई है। बता दें कि ऐसा ही दावा ग्रामीणों की ओर से भी किया गया है।
भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद मारे गए आतंकवादियों की संख्या को लेकर ख़ासा विवाद खड़ा हो गया था। भारत सरकार और वायुसेना की ओर से मारे गए आतंकवादियों की कोई संख्या नहीं बताई गई थी। वायुसेना ने स्पष्ट कहा था कि सेना का काम लक्ष्य को हिट करना है न कि मारे गए आतंकवादियों की संख्या को गिनना।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया था कि इस हवाई हमले में 250 आतंकवादी मारे गए हैं। भारतीय मीडिया में भी कई ख़बरें आईं थी कि वायुसेना की कार्रवाई में 300 आतंकवादी मारे गए हैं।
डीएफ़आर लैब ने भी उठाए सवाल
300 आतंकियों के मारे जाने के दावे की सुरक्षा मामलों के अमेरिकी थिंक टैंक अटलाँटिक काउंसिल की डिजिटल फ़ॉरेन्सिक रिसर्च लैब (डीएफ़आर लैब) ने भी पड़ताल की थी। डीएफ़आर लैब ने सैटलाइट इमेज़री के ज़रिये भारत की कार्रवाई के एक दिन पहले यानी 25 फ़रवरी और एक दिन बाद यानी 27 फ़रवरी की सैटलाइट तस्वीरों का मिलान किया था।
डीएफ़आर लैब ने पाया था कि बम गिरने से हुआ नुक़सान सिर्फ़ पेड़-पौधों वाले इलाक़े में ही हुआ, किसी इमारत को उससे नुक़सान नहीं पहुँचा है।
ऑस्ट्रेलिया स्थित इंटरनेशनल साइबर पॉलिसी सेंटर का भी कहना है कि उसने प्लैनेट लैब इंक से मिली 27 फ़रवरी की सुबह की सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया और पाया कि जिस जगह बम गिराने की बात कही जा रही है, उस जगह किसी तरह के नुक़सान होने का कोई लक्षण नहीं है। सेंटर ने ज़ोर देकर कहा कि लगता है कि 300 लोगों के मारे जाने की बात ग़लत है।
एनडीटीवी के मुताबिक़, मिडिलबरी इंस्टीट्यूट में निदेशक जेफ़री ल्यूस ने रॉयटर्स की रिपोर्ट पर कहा, 'सैटलाइट तसवीरों को देखने के बाद ऐसा नहीं लगता कि बमबारी से किसी तरह का नुक़सान हुआ है।' हालाँकि बमबारी से पहले और बाद की तसवीरों को गहराई से देखने पर पता चलता है कि जैश के कैंप की इमारत की छत पर भारत की ओर से छोड़ी गई मिसाइलों से चार जगहों पर हमला हुआ है। सैटलाइट तसवीरों के विशेषज्ञ, (रिटायर्ड) कर्नल विनायक भट के अनुसार न्यूज़ वेबसाइट ‘द प्रिंट’ को मिली तसवीरों को देखें तो इमारत की छत पर चार गहरे धब्बे दिखाई देते हैं। इसके अलावा तंबू भी ग़ायब हैं लेकिन दीवार और इमारत को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
मीडिया में आई ख़बरों और सरकार के सूत्रों का यह दावा कि हवाई हमले में जैश के ठिकाने ध्वस्त हो गए और वहाँ 300 आतंकवादी मारे गए, इस पर सवाल खड़े होते हैं। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़, बालाकोट में जैश के मदरसे को वैसा नुक़सान नहीं हुआ है, जिसका दावा किया जा रहा है।
मारे गए आतंकवादियों की संख्या को लेकर जब विवाद बढ़ा तो 4 मार्च को न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने राष्ट्रीय तकनीकी शोध संस्थान (एनटीआरओ) के हवाले से एक ख़बर की। इस ख़बर में कहा गया कि भारत की ओर से किए गए हवाई हमले से पहले उस इलाक़े में 300 मोबाइल नंबर सक्रिय थे।
सवाल यह है कि क्या ऐसा संभव है कि भारत से 80 किमी. दूरी पर मौजूद बालाकोट में यह पता लगा लिया जाए कि वहाँ कितने मोबाइल फ़ोन सक्रिय थे।
न्यूज़ वेबसाइट 'द क्विंट' ने इस बारे में एनटीआरओ के पूर्व अधिकारी से बातचीत की है। एनटीआरओ के एक पूर्व अधिकारी, जिन्होंने जीवन भर कॉल इंटरसेप्ट करने का ही काम किया है, उन्होंने क्विंट को बताया कि तकनीकी रूप से यह अंसभव है और यह फ़िजिक्स के नियमों को भी चुनौती देता है।
पूर्व अधिकारी ने 'द क्विंट' से कहा कि भारत के पास कॉल इंटरसेप्ट करने की सबसे आधुनिक तकनीक मौजूद है लेकिन फिर भी सवाल यह है कि एनटीआरओ को यह कैसे पता चला कि जैश-ए-मुहम्मद के कैंप में 300 मोबाइल नंबर सक्रिय थे। पूर्व अधिकारी ने कहा कि वह इस बात पर विश्वास नहीं कर सकते हैं और वह इसका कारण भी समझा सकते हैं।
पूर्व अधिकारी ने कहा कि दुनिया भर में कॉल इंटरसेप्ट करने की सबसे सफल तकनीक जीएसएम (ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन) है। लेकिन ज़मीन पर रखने पर यह कुछ किमी. तक ही कॉल इंटरसेप्ट कर सकती है। बालाकोट जो कि भारत की सीमा से 80 किमी. दूर है, वहाँ सक्रिय मोबाइल नंबरों के बारे में पता करने के लिए इसे सीमा के नज़दीक किसी पहाड़ी पर 5000-6000 की ऊंचाई पर रखना होगा।
पूर्व अधिकारी ने बातचीत में कहा कि जीएसएम तकनीक किसी इलाक़े में मौजूद कई सारे सक्रिय नंबरों के बारे में पता लगाती है और हम यह मान लेते हैं कि इस तकनीक ने 80 किमी. दूर सक्रिय मोबाइल फ़ोन या नंबरों को इंटरसेप्ट कर लिया। लेकिन फिर भी यह सवाल उठता है कि एनटीआरओ उस इलाक़े के आसपास मौजूद हज़ारों कनेक्शंस में से सिर्फ़ इन 300 नंबर्स के बारे में कैसे बता सकता है कि यह उस दौरान उसी इलाक़े में सक्रिय थे। पूर्व अधिकारी ने कहा कि ऐसा संभव ही नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बालाकोट एक पहाड़ी इलाक़ा है, इसलिए वहाँ मोबाइल के अच्छे सिग्नल मिलना भी मुश्किल काम है।
रॉयटर्स की दो बार की रिपोर्ट, डीएफ़आर लैब, इंटरनेशनल साइबर पॉलिसी सेंटर के दावे तो पूरी तरह यही कहते हैं कि जिस तरह के नुक़सान का दावा भारतीय मीडिया के एक वर्ग ने और सरकार के सूत्रों ने किया, वह ग़लत है। यानी 300 आतंकवादियों के मारे जाने की बात भी पूरी तरह ग़लत साबित होती है। क्योंकि रॉयटर्स ने जो सैटलाइट इमेज जारी की है, उसके मुताबिक़ तो वहाँ किसी भी तरह का कोई नुक़सान हुआ ही नहीं है।
मारे गए आतंकवादियों की संख्या को लेकर बार-बार उठ रहे सवालों के बाद यह सवाल पूछा जाना लाजिमी है कि आतंकवादियों के मरने की मनगढ़ंत संख्या क्यों बताई जा रही है। क्या लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय वायुसेना की इस कार्रवाई का राजनीतिकरण करने की कोशिश की जा रही है। इन सभी सवालों का सही जवाब तभी मिल सकता है जब सरकार इस बारे में स्पष्टीकरण दे।
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