सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में भी अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को आरक्षण मिलेगा।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस यू. यू. ललित के खंडपीठ ने बी. के. पवित्र और दूसरों की याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। इन याचिकाओं में 2018 के उस क़ानून को चुनौती दी गई थी, जिसे 2017 के फ़ैसले को दरकिनार करने के लिए लाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान को उचित ठहराते हुए कहा है कि यह ‘प्रतिभा के सिद्धांत’ के ख़िलाफ़ नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि यह दरअसल लोग जिन स्थितियों में जन्म लेते हैं, उनसे उपजे असमानता को दुरुस्त करने की कारगर कोशिश है।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस यू. यू. ललित के खंडपीठ ने इस मामले में कर्नाटक विधानसभा की ओर से इस मुद्दे से जुड़े पारित क़ानून को वैध पाया। इसके पहले साल 2002 में बने क़ानून को 2017 में रद्द कर दिया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए फ़ैसले में इसे सही पाया।
इसके पहले अदालत ने भारतीय संघ बनाम एम. नागराज मामले में साल 2006 में इस कमी की ओर ध्यान दिलाया था कि पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर प्रतिनिधित्व, पिछड़ापन और कार्यकुशलता पर पड़ने वाले प्रभाव का सही अध्ययन और इससे जुड़ा आँकड़ा नहीं है।
क्या महत्व है इस फ़ैसले का?
यह फ़ैसला इस मामले में बहुत महत्वपूर्ण है कि इसमें प्रतिभा की नई व्याख्या की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रतिभा का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ़ वे लोग ही प्रतिभावान हैं जो सफल हैं, बल्कि वे लोग भी प्रतिभावान हैं, जिनके चुने जाने से एससी-एसटी समुदाय के लोगों का सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है और इस समुदाय के लोगों के विकास होने के संवैधानिक दायित्व का पालन होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फ़ैसले में 1995 के संवैधानिक बेंच के पंजाब राज्य बनाम आर. के. सबरबाल मामले में दिए फ़ैसले का हवाला दिया। इस फ़ैसले में कहा गया था कि यह राज्य पर निर्भर करता है कि वह एससी-एसटी के विकास और सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए पदोन्नति में आरक्षण से जुड़ा क़ानून पारित करवाए।
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एससी-एसटी के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था प्रतिक्षा के सिद्धांत के उलट नहीं है। प्रतिभा किसी परीक्षा में पाए गए नंबर के संकीर्ण दायरे में सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज की उस कोशिश में भी होनी चाहिए, जिससे समाज के सभी वर्गों का बराबर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए किसी का चयन किया गया हो।
डी. वाई. चंद्रचूड़, जज, सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फ़ैसला इस आधार पर किया गया सबके बराबर प्रतिनिधत्व को सुनिश्चित करने से जुड़े संवैधानिक दायित्व का पालन हो के।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला इस मायन में अहम है कि इसमें प्रतिभा से जुड़े कई सवालों का जवाब दिया गया है। प्रतिभा को नए ढंग से परिभाषित किया गया है। इसके साथ ही प्रतिभा के हनन का बहाना बना कर आरक्षण का विरोध करने की मानसिकता को जवाब दिया गया है। यह साफ़ कर दिया गया है कि आरक्षण से प्रतिभा की कमी नहीं होती है।
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