भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज 7 दिसंबर को रेपो रेट में 35 आधार अंक (बीपी) की बढ़ोतरी की घोषणा की। यह 5.4 से बढ़कर 6.25 फीसदी पर पहुंच गया है। 2023 में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7 फीसदी से घटकर 6.8 फीसदी हो गया है। यानी अर्थव्यव्था के बढ़ने की रफ्तार सुस्त रहेगी। रेपो रेट उसे कहते हैं, जिस दर पर आरबीआई बाकी बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है। एक बीपी प्वाइंट का मतलब है एक फीसदी प्वाइंट का सौवां हिस्सा। रेपो रेट बढ़ने का सीधा असर होम लोन और अन्य लोन लेने वालों पर पड़ेगा, क्योंकि बैंक जब आरबीआई से बढ़ी दर पर पैसा उधार लेंगे तो वो पब्लिक को उसे कुछ बढ़ाकर ही ऑफर करेंगे।
आरबीआई की असली चिन्ता महंगाई को लेकर है, जिस पर सरकार काबू नहीं कर पा रही है। महंगाई का असर आरबीआई की मौद्रिक नीति (RBI Monetary Policy) पर साफ दिखाई दे रहा है। अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 6.77 फीसदी रही थी, जो आरबीआई की सहनशीलता स्तर (टॉलरेंस लेवल) 6 फीसदी से काफी ऊपर है।
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आरबीआई ने मई में 190 बीपी रेपो रेट बढ़ाने के बाद आज पांचवीं बार 7 दिसंबर को दरों में फिर से बढ़ोतरी क्यों की? इस सवाल का उठना जरूरी है। मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट में इसकी वजह यह बताई गई है कि अभी तक महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सका है। महंगाई को उसके टारगेट लेवल पर वापस लाने के लिए आरबीआई पर बहुत ज्यादा दबाव है। आरबीआई को इसके लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत थी।
मौद्रिक नीति की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शशिकांत दास ने महंगाई के खिलाफ लड़ाई पर आरबीआई का फोकस और इसकी फौरी जरूरत को दोहराया। दास ने जोर देकर कहा, "हम महंगाई पर अर्जुन की नजर रखेंगे।" तो आरबीआई गवर्नर का यह संदेश साफ-साफ बताता है कि फरवरी 2023 में रेपो रेट में कम से कम 25-35 बीपीएस प्वाइंट की बढ़ोतरी का एक और दौर आएगा।
मालूम हो कि कुछ महीने पहले आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर महंगाई दर को 6% पर नहीं रख पाने पर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की थी। उस नाकामी को स्वीकार करने के बाद मौद्रिक नीति समिति यानी MPC की यह पहली समीक्षा है। आरबीआई ने जब महंगाई को लेकर अपनी नाकामी की घोषणा की तो मोदी सरकार को इस नाकामी पर औपचारिक स्पष्टीकरण देने के लिए मजबूर होना पड़ा। जिसमें भविष्य को लेकर तमाम उम्मीदें जगाई गई थीं। उस स्पष्टीकरण के बाद आरबीआई को महंगाई पर काबू पाने का दबाव और बढ़ गया।
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इतनी सारी बातों के बावजूद आरबीआई गवर्नर शशिकांत दास ने कहा कि भारत अभी भी तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और उसमें लगातार सुधार जारी है। हालांकि जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7 से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया गया है, इसके बावजूद आरबीआई गवर्नर की उम्मीदें बनी हुई हैं। जनता भी रिजर्व बैंक के गवर्नर की उम्मीदों के साथ अपनी उम्मीदें जोड़कर देख सकती है। इसके अलावा उसके पास क्या चारा है।
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