राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित किया। सूत्रों ने बताया कि ट्रस्ट के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा, आरएसएस के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख राम लाल और वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने सोनिया और खड़गे से मुलाकात की और उन्हें समारोह में आमंत्रित किया। पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को भी निमंत्रण दिया गया था। लेकिन खराब सेहत के कारण किसी से मिलते नहीं हैं। लेकिन उनके घर पर निमंत्रण पत्र पहुंच गया है।
कांग्रेस की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अभी तक कोई निमंत्रण नहीं पहुंचा है। लेकिन इस निमंत्रण पत्र ने कांग्रेस को कई वजहों से दुविधा में डाल दिया है।
पिछले कुछ वर्षों से वो सॉफ्ट हिन्दुत्व का चेहरा लेकर सामने आती रही है। खासकर चुनाव के दौरान या उसके आगे पीछे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मंदिरों में जाते देखा जा सकता है। मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले प्रियंका गांधी की इंदौर रैली में विशाल हनुमान गदा का प्रदर्शन किया गया। राहुल गांधी को उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उज्जैन के महाकाल मंदिर ले जाया गया। वहां राहुल ने बड़ा सा तिलक लगवाने में कोई परहेज नहीं किया। यह सब भूतपूर्व हो चुके मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का कारनामा था। दोनों मिलकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सॉफ्ट हिन्दुत्व की छवि पेश करने चले थे लेकिन कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं हुआ।
भाजपा के ध्रुवीकरण मुहिम के आगे कांग्रेस का सॉफ्ट हिन्दुत्व कभी नहीं टिका। कांग्रेस के कुछ बौद्धिक नेताओं ने यह बात पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से कही भी कि भाजपा की पिच पर कांग्रेस नहीं खेल सकती। चुनाव के आगे-पीछे भाजपा का हिन्दुत्व ही मतदाताओं पर भारी पड़ता है, उसे कांग्रेस के जनेऊधारी राहुल या पूजा करती प्रियंका गांधी याद नहीं रहते। इसलिए कांग्रेस को भाजपा की पिच पर जाने के लिए मना किया गया। इसके बावजूद सिलसिला जारी है। यह अलग बात है कि सोनिया गांधी और खड़गे को कभी किसी पूजा स्थल में सार्वजनिक रूप से जाते नहीं देखा गया।
कांग्रेस का यही सॉफ्ट हिन्दुत्व अब दुविधा में डाल रहा है कि अयोध्या में खड़गे और सोनिया तो जाने से रहे तो आखिर वहां पार्टी की ओर से किसे भेजा जाएगा या पार्टी निमंत्रण पर चुप होकर बैठी रहेगी। लेकिन ऐसा होगा नहीं। तमाम ऐसे नेता सामने आएंगे जो 22 जनवरी को अयोध्या जाने के लिए लालायित होंगे। वैसे भी लोकसभा चुनाव नजदीक है, यूपी मुख्य केंद्र होने वाला है। ऐसे में कांग्रेस के कई नेता इस अवसर को भुनाने का मौका नहीं छोड़ने को कहेंगे।
कांग्रेस की एक दुविधा तो उसके सॉफ्ट हिन्दुत्व के कारण है। दूसरी दुविधा 22 जनवरी के इवेंट को लेकर भाजपा और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पैदा कर दी है। देखने में तो यह धार्मिक कार्यक्रम की तरह नजर आ रहा है, क्योंकि इसे प्राण प्रतिष्ठा समारोह नाम दिया गया है। लेकिन इस पूरे कार्यक्रम पर दरअसल पीएमओ का नियंत्रण है। पीएमओ ने अपने आदमी के रूप में पूर्व आईएएस नृपेंद्र मिश्रा को पहले ही राम मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष और पदेन सदस्य बनवा दिया है। मिश्रा ट्रस्ट का काम संभालने से पहले पीएमओ में थे और आज भी वो पीएमओ के संपर्क में रहते हैं। इस तरह 22 जनवरी के कार्यक्रम का फायदा भाजपा को राजनीतिक रूप से मिलना है। शेष कोई भी राजनीतिक दल अयोध्या कार्यक्रम में शामिल होता है तो उसको किसी भी तरह का राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला है।
कांग्रेस अगर सोनिया गांधी और खड़गे या किसी अन्य नेता को अधिकृत तौर पर अयोध्या नहीं भेजती है तो उसकी वजह यही होगी कि वो इसे एक राजनीतिक कार्यक्रम बताकर किनारा कर लेगी। 22 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी इसका उद्घाटन करने वाले हैं। इसलिए यह कार्यक्रम पूरी तौर पर राजनीतिक है। अगर कार्यक्रम में सिर्फ पुजारी और सभी पीठों के शंकराचार्य होते तो कांग्रेस के पास बहाने का कोई मौका नहीं था।
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कार्यक्रम शेड्यूल के मुताबिक इस मौके पर प्रधान मंत्री मोदी, आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगभग 8,000 लोगों की सभा को संबोधित करेंगे। कांग्रेस मात्र इसी आधार पर मंदिर ट्रस्ट के निमंत्रण को ठुकरा सकती है। क्योंकि अगर यह धार्मिक कार्यक्रम है तो फिर राजनीतिक लोगों का संबोधन क्यों हो रहा है। जाहिर है कि भाजपा इसे लोकसभा चुनाव के नजरिए से भुनाने जा रही है। लेकिन क्या कांग्रेस पूरी तरह खुलकर इस बात को कह पाएगी।
भाजपा ने कम्युनिस्टों की भी परीक्षा करने का फैसला किया है। सूत्रों ने बताया कि सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई महासचिव डी. राजा, बीएसपी प्रमुख मायावती और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को निमंत्रण भेजा जा रहा है। इन सभी नामों में केजरीवाल पर शक है। वो जा सकते हैं। लेकिन कम्युनिस्ट और मायावती वहां जाने से परहेज करेंगे।
वीएचपी के प्रवक्ता विनोद बंसल का कहना है कि “देश के सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के प्रमुखों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को निमंत्रण भेजा गया है। जिन लोगों ने हमें समय दिया उन्हें व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण दिया गया, अन्य को डाक के माध्यम से निमंत्रण भेजा गया है। वीएचपी ने हमेशा कहा है कि जिसे भी श्री राम में आस्था है और देश की सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है, उसका दर्शन के लिए स्वागत है।'' लेकिन यहां याद दिला दें कि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने पहले कहा था कि मंदिर आंदोलन के प्रणेता लालकृष्ण आडवाणी और डॉ मुरली मनोहर जोशी को उनकी उम्र के कारण निमंत्रित नहीं किया गया है और न ही उन्हें आना चाहिए। इस पर जब विवाद बढ़ा तो वीएचपी और संघ के टॉप लीडर आडवाणी और जोशी के पास निमंत्रण पत्र लेकर पहुंचे और उसकी फोटो खिंचवाकर मीडिया को जारी किया। समझा जाता है कि पीएमओ की ओर से इन दोनों नेताओं के आने को हरी झंडी नहीं मिली है।
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