इसके पहले अदालत ने 29 अक्टूबर को एक फ़ैसले में कहा था कि इस मामले की सुनवाई जनवरी में होगी। उसके बाद एक याचिका दायर कर यह माँग की गई थी कि मामले का जल्द निपटारा किया जाए, पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। उसके पहले 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के खंडपीठ ने 2-1 के एक फ़ैसले मे 1994 के उस निर्णय पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि मसजिद इसलाम का ज़रूरी अंग नहीं है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में एक फ़ैसले में अयोध्या की विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों बाँट कर राम लला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्र वक़्फ़ बोर्ड को दे दिया था। लेकिन इन सभी ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो रही सुनवाई पर अटकलों का बाजॉरा गर्म है।कुछ लोगों का कहना है कि राम मंदिर विवाद पर लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ जाएगा और मंदिर निर्माण का काम भी शुरू हो जाएगा।
दूसरे तबक़े का मानना है कि यह मामला बहुत जटिल है, ऐसे में न तो लोकसभा चुनाव के पहले सुनवाई पूरी होगी और न ही मंदिर निर्माण का काम शुरू हो पाएगा। कुछ लोग तो यह भी शर्त लगाने को तैयार हैं कि यह मामला अभी बहुत लंबा खिंचेगा, हो सकता है कि इसमें सालों लग जाएँ।
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क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि राम मंदिर का मसला 70 साल से अटका पड़ा है, सुप्रीम कोर्ट अब देर न करे और जल्द से जल्द मामले का निपटारा करे।
सरकार पर बनाया दबाव
राम मंदिर के मसले पर पिछले कुछ महीनों से आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और बीजेपी की तरफ़ से ज़बरदस्त बयानबाज़ियाँ हुईं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी के दिन कहा कि हिंदुओं के सब्र की सीमा ख़त्म हो रही है और सरकार हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए जल्द से जल्द क़ानून बनाकर मंदिर निर्माण का काम शुरू करे।
इसी तरीके से रामलीला मैदान में आरएसएस के नंबर 2 नेता माने जाने वाले भैया जी जोशी ने कहा कि यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह लोगों की भावनाओं को समझे और राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। विश्व हिंदू परिषद ने तो सीधे तौर पर राम मंदिर निर्माण में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही कठघरे में खड़ा कर दिया।
मंदिर मुद्दा नहीं जिता सकता चुनाव
तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण के मसले को उठाने को राजनीति से जोड़कर देखा गया। लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार के बाद ऐसा लगता है कि संघ परिवार को यह अहसास हो गया है कि राम मंदिर की आड़ में लंबे समय तक चुनावी रोटियाँ नहीं सेंकी जा सकती।
प्रसाद ने कहा, जल्द सुलझे मसला
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने फिर भी यह कहने की हिम्मत की कि राम मंदिर का मसला 70 साल से अटका पड़ा है, सुप्रीम कोर्ट में भी 8 साल हो गए हैं, अब वह देर न करे और फ़ास्ट ट्रैक करके जल्द से जल्द मामले का निपटारा करे। क़ानून मंत्री ने कहा कि अगर समलैंगिकता से जुड़ी धारा 377, व्याभिचार और सबरीमला के मामले में जल्दी सुनवाई हो सकती है और अर्बन नक्सल के मसले पर आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुल सकता है तो राम मंदिर का मसला जल्दी क्यों नहीं सुलझाया जा सकता।
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लेकिन एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ़ कहा कि वह अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे और उसके बाद ही सरकार कोई क़दम उठाएगी।
उधर, दूसरे पक्षकार बाबरी मसजिद एक्शन कमिटी का कहना है कि सारे सबूतों की बारीकी से जाँच-पड़ताल करने के बाद ही फ़ैसला आना चाहिए। इतने महत्वपूर्ण मसले पर जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए।
ध्रुवीकरण की कोशिश
बाबरी मसजिद एक्शन कमिटी के संयोजक जफ़रयाब जिलानी का कहना है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता एक सोची-समझी रणनीति के तहत दबाव बनाने का काम कर रहे हैं ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। उनका आरोप है कि अगर बीजेपी के नेता वाक़ई सुप्रीम कोर्ट में तेज़ सुनवाई कराना चाहते हैं तो इसके लिए उन्हें अदालत में अपील करनी चाहिए, जो उन्होंने अभी तक नहीं की है।
उधर, ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि अगर सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए कोई क़ानून बनाती है तो वे फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएँगे। मुसलिम पक्ष का कहना है कि पूरा मामला ज़मीन के एक टुकड़े का है, जिस पर फ़ैसला सबूतों के आधार पर हो सकता है और अदालतें आस्था के आधार पर फ़ैसले नहीं करतीं।
फ़ैसले का करना होगा इंतज़ार
ज़ाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने के बाद भी दोनों पक्ष अपनी तरफ़ से पुरजोर दावे करेंगे, बयानबाजियाँ होंगी और लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश भी की जाएगी। लेकिन सच तो यह है कि ये सारी कोशिशें तब तक बेकार हैं जब तक कि सर्वोच्च अदालत कोई फ़ैसला नहीं करती, तब तक सभी को अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार करना होगा।
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