क्या 'लव जिहाद' पर जैसा रूख उत्तर प्रदेश में योगी सरकार अपना रही है उससे केंद्र का रूख अलग है? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सुनेंगे तो शायद यह अंतर नहीं लगेगा। उन्होंने कहा है कि वह शादी के लिए धर्मांतरण के पक्षधर नहीं हैं और सामूहिक धर्मांतरण को रोका जाना चाहिए। रक्षा मंत्री का यह बयान तब आया है जब उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण के तहत की गई कार्रवाइयों पर सवाल उठ रहे हैं। एक दिन पहले ही 104 रिटायर्ड आईएएस अफ़सरों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिख कर कहा है कि "राज्य नफ़रत, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बन गया है।" चिट्ठी लिखने वालों में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव और प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार टी. के. ए. नैयर जैसे लोग भी शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश में भी एक दिन पहले ही ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण का अध्यादेश लाया गया है। बीजेपी शासित कई राज्यों में ऐसे ही क़ानून लाए जाने की तैयारी चल रही है। इसी बीच 'एएनआई' से एक साक्षात्कार में राजनाथ सिंह ने धर्मांतरण पर अपने विचार रखे।
रक्षा मंत्री सिंह ने एक सवाल के जवाब में 'एएनआई' से कहा, 'मैं पूछना चाहता हूँ कि धर्मांतरण क्यों होना चाहिए। सामूहिक धर्मांतरण बंद होना चाहिए। जहाँ तक मुझे पता है मुसलिम धर्म में कोई किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता है। मैं व्यक्तिगत रूप से विवाह के लिए धर्मांतरण का पक्षधर नहीं हूँ।'
उन्होंने यह भी कहा कि कई मामलों में देखा गया है कि जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है। उन्होंने दलील दी कि स्वभाविक शादी और शादी के लिए जबरन धर्मांतरण में बहुत बड़ा अंतर है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि राज्यों ने जो क़ानून बनाए हैं उन्होंने इन सभी चीजों पर विचार किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भले ही अंतरधार्मिक शादियों या शादी के लिए धर्मांतरण के ख़िलाफ़ बोलें, लेकिन अदालतें इसके पक्ष में हैं। हाल ही में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह में कोई महिला अपना धर्म बदल कर दूसरा धर्म अपना लेती है और उस धर्म को मानने वाले से विवाह कर लेती है तो किसी अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
जब अदालत कह रही है कि वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है तो फिर पुलिस या सरकार कैसे हस्तक्षेप कर सकती है? राजनेताओं के बयान अदालतों के नज़रिए से अलग क्यों?
इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा था कि धर्म की परवाह किए बग़ैर मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार किसी भी नागरिक के जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का ज़रूरी हिस्सा है। संविधान जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इसी तरह एक दूसरे मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी कहा था कि किसी व्यक्ति का मनपसंद व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान देता है। केरल हाई कोर्ट ने तो एक निर्णय में कहा था कि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह को 'लव-जिहाद' नहीं मानना चाहिए, बल्कि इस तरह के विवाहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अदालतों के ऐसे फ़ैसलों के बावजूद बीजेपी के नेता 'लव जिहाद' का ज़िक्र करते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक नवंबर को 'लव जिहाद' का ज़िक्र करते हुए कहा था कि जो कोई भी हमारी बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा उसकी 'राम नाम सत्य है' की यात्रा अब निकलने वाली है। उनके इस बयान के क़रीब महीने भर के अंदर योगी सरकार ग़ैर क़ानूनी धर्मांतरण पर अध्यादेश ले आई। इस क़ानून को ही 'लव जिहाद' से जोड़कर देखा जा रहा है।
जिस 'लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल किया गया है, वह दरअसल बहुत ही विवादास्पद शब्द है। इसको लेकर सरकारी तौर पर ऐसी कोई रिपोर्ट या आँकड़ा नहीं है जिससे इसके बारे में कोई पुष्ट बात कही जा सके। सरकार ने फ़रवरी में संसद को बताया था कि इस शब्द को मौजूदा क़ानूनों के तहत परिभाषित नहीं किया गया और किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था। लेकिन अधिकतर दक्षिणपंथी और ट्रोल इन शब्दों के माध्यम से यह बताने की कोशिश करते रहे हैं कि मुसलिम एक साज़िश के तहत हिंदू लड़कियों को फँसा लेते हैं, उनसे शादी करते हैं और फिर धर्म परिवर्तन करा लेते हैं।
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