राजा भैया ने नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। इससे यूपी की राजनीति में ख़लबली मच गई है। निर्दलीय विधायक राजा भैया ने यह साफ़ कर दिया है कि उनके राजनीतिक अजेंडे में सवर्ण मतदाता प्रमुख हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने एससी-एसटी ऐक्ट और आरक्षण के खिलाफ ज़ोरदार आवाज़ उठाने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि 30 नवंबर को लखनऊ के रमाबाई मैदान में वह बड़ी रैली करेंगे। माना जा रहा है कि राजा भैया अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अन्य राजनीतिक दलों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।
SC-ST ऐक्ट में संशोधन को ग़लत बताया
प्रतापगढ़ के कुंडा से छह बार विधायक का चुनाव जीत चुके पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने शुक्रवार को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को तीन नाम भेजे गए हैं। चर्चा है कि वे अपनी पार्टी का नाम जनसत्ता पार्टी रखेंगे। प्रेस कॉन्फ़्रेंस में वे केंद्र सरकार पर जमकर बरसे। उनके अनुसार एससी-एसटी ऐक्ट में संशोधन न्यायसंगत नहीं है। अन्य दलों पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि वे सिर्फ़ आरक्षण और जातिवाद की राजनीति कर रही हैं।माँग : योग्यता हो आरक्षण का आधार
बाहुबली विधायक के रूप में चर्चित राजा भैया ने कहा कि आरक्षण से लोगों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। आरक्षण योग्यता के आधार पर ही होना चाहिए न कि जाति के आधार पर। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए जो इससे फ़ायदा लेकर आर्थिक रूप से मज़बूत हो चुके हैं। दलितों और गैर-दलितों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं में भेदभाव हो रहा है, जिसका हम विरोध करेंगे। उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण का भी जमकर विरोध किया।राजा भैया ने कहा कि एससी-एसटी ऐक्ट में संशोधन से सवर्ण मतदाता नाराज़ हैं। उनके बयान से यह साफ़ है कि वे गैर-दलितों विशेषकर सवर्ण मतदाताओं को अपनी तरफ़ खींच कर एक मंच तैयार करना चाहते हैं। आपको मालूम होगा कि एससी-एसटी ऐक्ट में संशोधन के ख़िलाफ़ यूपी सहित कई राज्यों में सवर्ण समाज के लोगों ने प्रदर्शन किया था।सवर्णों का साथ मिलने की उम्मीद
अहम बात यह है कि संशोधन के ख़िलाफ़ अगर सवर्ण मतदाताओं में नाराज़गी है तो वे लोकसभा चुनाव में किसका साथ देंगे। बीजेपी से वे नाराज़ हैं, समाजवादी पार्टी (सपा) और बसपा के साथ भी वे नहीं जाएँगे क्योंकि ये दोनों पार्टियाँ क्रमशः पिछड़ों और दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं और आरक्षण की घोर समर्थक हैं। कांग्रेस एकमात्र विकल्प हो सकती थी मगर वह भी सवर्णों के पक्ष में खुलकर नहीं बोलेगी। इसलिए राजा भैया को लगता है कि किसी ठोस विकल्प के अभाव में नाराज़ सवर्ण मतदाता उनके साथ जुड़ सकते हैं।मात्र 26 साल की उम्र में पहली बार निर्दलीय विधायक बने राजा भैया की यूपी में ठाकुर मतदाताओं पर मज़बूत पकड़ मानी जाती है। राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह और अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री रह चुके राजा भैया के राजनीतिक दल बनाने से अन्य दलों के राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। अब जब लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने का समय बचा है तो राजा भैया के पार्टी गठन का ऐलान करने से यूपी की राजनीति में हलचल बढ़ गई है।
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