मोदी सरकार ने नीरव मोदी मामले की जाँच कर रहे अधिकारी सत्यब्रत कुमार को शुक्रवार को हटा दिया। न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ के मुताबिक़, जैसे ही इस मामले ने तूल पकड़ना शुरू किया, सरकार को कुछ ही घंटों बाद अपना फ़ैसला पलटना पड़ा। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के संयुक्त निदेशक सत्यब्रत कुमार शुरुआत से ही इस मामले से जुड़े रहे हैं। बता दें कि शुक्रवार को ही लंदन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट ने भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी की ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी और वह फ़िलहाल जेल में ही रहेंगे। इस मामले में अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी।
ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक़, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को सत्यब्रत कुमार को हटाए जाने के बारे में पूरी जानकारी थी। अधिकारियों का कहना है कि यह बेहद आश्चर्यजनक बात है कि आख़िर सरकार ने इस मामले के जाँच अधिकारी को हटाने का फ़ैसला क्यों किया।अधिकारियों का कहना है कि वित्त मंत्रालय को इस बात का डर था कि सत्यब्रत कुमार को हटाए जाने से उन्हें सुप्रीम कोर्ट के ग़ुस्से का सामना करना पड़ सकता है।
‘द वायर’ के मुताबिक़, प्रधानमंत्री कार्यालय विशेष रूप से नीरव मोदी मामले की निगरानी कर रहा था और सत्यब्रत कुमार इस मामले में किसी भी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ थे।
इससे पहले रफ़ाल मामले में भी अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ ने यह ख़बर छापी थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय फ़्रांस से इस सौदे में समानांतर बातचीत कर रहा था। बता दें कि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को भी देर रात को उनके पद से हटा दिया गया था। बताया जाता है कि आलोक वर्मा रफ़ाल मामले की जाँच शुरू करने वाले थे।
‘द वायर’ के मुताबिक़, ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बेहद ग़ुस्से में कहा, ‘वह ख़ुद को चौकीदार बताते हैं तो फिर वह धोखाधड़ी करने वालों को क्यों बचा रहे हैं।’
Certain Media reports have been appearing that Joint Director supervising investigation in the case of Nirav Modi has been relieved. This report is not correct and denied
— ED (@dir_ed) March 29, 2019
भारत सरकार ने नहीं दिया था जवाब
कुछ समय पहले ब्रिटेन के अधिकारियों ने कहा था कि लंदन स्थित सीरियस फ़्रॉड ऑफ़िस (एसएफ़ओ) की ओर से नीरव मोदी को भारत वापस लाने के संबंध में कई बार जानकारियाँ माँगी गईं, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया। ब्रिटेन की ओर से एक क़ानूनी टीम ने भी नीरव मोदी के ख़िलाफ़ कार्रवाई में मदद करने के लिए भारत आने की पेशकश की थी, लेकिन भारत की ओर से उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। इस जानकारी के सामने आने के बाद भी मोदी सरकार को लेकर सवाल उठे थे कि वह आख़िर क्यों नीरव मोदी को बचाने की कोशिश कर रही है।
एसएफ़ओ ने भारत को बताया था कि मार्च तक नीरव मोदी ब्रिटेन में ही थे। एनडीटीवी की एक ख़बर के मुताबिक़, एसएफ़ओ इस मामले में कार्रवाई करना चाहता था और इसीलिए उसने भारत की मदद के लिए अपने एक वकील बैरी स्टेनकोम्ब को भी कार्रवाई के लिए नियुक्त किया था। स्टेनकोम्ब को धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है।
एनडीटीवी के मुताबिक़, कार्रवाई के दौरान बैरी स्टेनकोम्ब और उनकी टीम को कई और दस्तावेज़ों की ज़रूरत थी। उन्होंने इस बारे में भारत को तीन बार पत्र भी लिखा लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
ख़बर कहती है कि स्टेनकोम्ब और उनकी टीम इस मामले में ज़्यादा से ज़्यादा सबूत जुटाने के लिए भारत आना चाहती थी, जिससे कि वह नीरव मोदी को गिरफ़्तार कर सके लेकिन भारत की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया।
जब ब्रिटेन की ओर से और अधिक दस्तावेज़ माँगे जाने के बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से पूछा गया था तो कहा गया था कि भारत को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। एनडीटीवी के मुताबिक़, दिसंबर 2018 तक भारत की ओर से इस मामले में सही जवाब न मिलने के कारण एसएफ़ओ ने इस बारे में कार्रवाई बंद कर दी थी।
नीरव मोदी की ही तरह कारोबारी विजय माल्या ने भी कई बैंकों से क़र्ज़ लिया और वह ब्रिटेन चले गए। उन्हें गिरफ़्तार भी किया गया लेकिन ज़मानत मिल गई और उनका मामला लंदन की एक अदालत में चल रहा है। माल्या आराम से लंदन में रह रहे हैं। इंडियन प्रीमियर लीग के पूर्व अध्यक्ष ललित मोदी पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो वह भी लंदन चले गए और कई साल से वहाँ रह रहे हैं।
राहुल गाँधी रफ़ाल मामले में उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी को 30 हज़ार करोड़ रुपये का फ़ायदा पहुँचाने का भी आरोप प्रधानमंत्री मोदी पर लगाते रहे हैं।
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