पश्चिम बंगाल के इसलामी नेता अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ़) के साथ चुनाव क़रार करने के मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व बैकफुट पर दिख रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर खुल कर कुछ कहने से बच रहे हैं, लेकिन वे यह ज़रूर कह रहे हैं कि गठबंधन के दलों के साथ सभी मुद्दों पर एकराय नहीं है, मतभेद हैं, लेकिन सब मिल कर काम कर रहे हैं।
असम के गुवाहाटी में चुनाव प्रचार करने गई कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से यह सवाल किया गया कि उनकी पार्टी ने असम में बदरुद्दीन अज़मल के आईयूडीएफ़ और पश्चिम बंगाल में आईएसएफ़ के साथ चुनावी क़रार किया है। इस पर उन्होंने कहा, 'यदि आप कल की गई कुछ टिप्पणियों का जिक्र कर रहे हैं तो हमारे पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख इस पर पहले ही जवाब दे चुके हैं। लेकिन असम में जो लड़ाई चल रही है, वह असम को बचाने के लिए है। यह असमिया लोगों की पहचान और असमिया राज्य के लिए है।"
कांग्रेस नेता ने कहा,
“
"हमारी विचारधाराओं में अंतर है, हमारे गठबंधन सहयोगी दलों के जो विचार हैं, हम उससे 100 प्रतिशत सहमत नहीं हो सकते, लेकिन इस लड़ाई के लिए हम साथ हैं क्योंकि हर कोई जानता है कि यह जंग असम को बचाने के लिए हैं।"
प्रियंका गांधी, महासचिव, कांग्रेस
इससे यह साफ है कि प्रियंका गांधी ने पार्टी के असंतुष्ट धड़े के किसी नेता का नाम नहीं लिया और उन पर कुछ नहीं कहा। बता दें कि पश्चिम बंगाल में कोलकाता के नज़दीक फुरफुरा शरीफ दरगाह के अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी आईएसएफ़ से कांग्रेस ने चुनावी क़रार किया है। इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाया।
क्या है मामला?
आनंद शर्मा ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता के अधार पर पार्टी सेलेक्टिव नहीं हो सकती, यानी अपनी सुविधा से अलग-अलग जगह अलग-अलग रवैया नही चुन सकती। उन्होंने यह भी कहा था कि आईएसएफ़ के साथ कांग्रेस का गठबंधन पार्टी की मूल विचारधारा, गांधीवाद और नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जो कांग्रेस पार्टी की आत्मा है। इन मुद्दों को कांग्रेस कार्यसमिति में चर्चा होनी चाहिए थी।
इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी और आनंद शर्मा में ट्विटर पर नोक-झोक भी हुई। अधीर रंजन चौधरी ने यहाँ तक कह डाला कि कांग्रेस के लोग प्रधानमंत्री की तारीफ करने में अपना समय जाया न करें। वे ग़ुलाम नबी आज़ाद की ओर इशारा कर रहे थे, जिन्होंने कुछ दिन पहले ही नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी।
कांग्रेस में यह घमासान धर्मनिरपेक्षता के प्रति चिंता की वजह से कम और केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बढ़ाने के लिए ज़्यादा है।
आईयूएमएल के साथ कांग्रेस
केरल में कांग्रेस इंडियन यूनियन मुसलिम लीग के साथ लंबे समय से काम करती रही है। आईयूडीएफ यूडीएफ़ में लंबे समय से रहा है और सरकार में उसके मंत्री भी रहे हैं। इस समय भी आईयूएमएल यूडीएफ़ में है और केरल का अगला विधानसभा चुनाव वह कांग्रेस के साथ मिल कर ही लड़ेगा।
इसी तरह असम में बदरुद्दीन अज़मल की पार्टी इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटक फ्रंट के साथ मिल कर कांग्रेस विधानसभा चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस में इन दोनों दलों से चुनाव क़रार करने पर कोई सवाल किसी ने नहीं उठाया, आनंद शर्मा ने भी नहीं।
पश्चिम बंगाल के इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता अब्बास सिद्दीक़ी का राज्य के चार ज़िलों में अच्छा ख़ासा असर है। हावड़ा, हुगली, उत्तर चौबीस परगना और मेदिनीपुर के मुसलमानों पर फुरफुरा शरीफ की दरगाह की पकड़ है। कांग्रेस ने यही बात सोच कर उसके साथ क़रार किया है।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस बिल्कुल हाशिए पर है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। उसके कैडर का बड़ा हिस्सा बीजेपी में जा चुका है और वोटरों का उसका जनाधार खिसक कर बीजेपी में जाने की आशंका है।
आमसभा चुनाव के समय तृणमूल कांग्रेस के वोट शेयर में कमी नहीं आई, फिर भी बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा तो इसलिए कि कांग्रेस के वोटरों ने उसे वोट दिया। कांग्रेस ने अपने वोट शेयर को बीजेपी की ओर खिसकने से बचाने के लिए सीपीआईएम के साथ क़रार किया है। सीपीआईएम ने इसमें आईएसएफ़ को भी शामिल कर लिया है। यह कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी है।
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