प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके़े पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए एक बार फिर बड़े-बड़े सपने दिखाए हैं। देश के गंभीर आर्थिक संकट, बेरोज़गारी और लगातार टूटते सामाजिक ताने-बाने की अनदेखी करते हुए मोदी ने देश की जनता से भविष्य में बहुत कुछ कर दिखाने का वादा किया है। मोदी ने अपने वादों को पूरा करने की कोशिशों को गंगा की तरह पवित्र बताया है। लेकिन दुनिया जानती है कि आज गंगा कितनी पवित्र है?
लाल क़िले से 92 मिनट के अपने भाषण में पीएम मोदी ने बार-बार 130 करोड़ की जनता की बात की। लेकिन देश की आज़ादी की सालगिरह के मौक़े पर भी अपने ही शब्द जाल में कई बार उलझे मोदी देशवासियों के बीच आपसी एकता को मज़बूत करने के बजाय विभाजन की लकीर खींचते नज़र आए। हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करके जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद इसका विरोध कर रहे लोगों को आतंकवाद का समर्थक बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने अब छोटे परिवार वालों को देशभक्त बताकर बड़े परिवार वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाया है।
ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में कई ऐसे मंत्री हैं जिनके दो से ज़्यादा बच्चे हैं तो क्या वे सभी कम देशभक्त हैं?
पीएम मोदी ने लगातार छठी बार लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित किया है। ऐसा करने वाले वह अटल बिहारी वाजपेयी के बाद दूसरे ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन गए हैं। उनसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू 17 बार, इंदिरा गाँधी 16 बार और डॉ. मनमोहन सिंह 10 बार लाल क़िले की प्राचीर से देश को संबोधित कर चुके हैं। वैसे लाल क़िले की प्राचीर से अब तक 13 प्रधानमंत्री 72 बार स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहरा कर देश को संबोधित कर चुके हैं।
क़रीब ढाई महीने पहले प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी करने के बाद पीएम मोदी ने लाल क़िले से 'चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़' बनाने का बड़ा फ़ैसला किया। यह उनके भाषण का सबसे महत्वपूर्ण ऐलान रहा। हालाँकि इस बारे में एक दशक से ज़्यादा समय से चर्चा चल रही है।
रक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से पिछली सरकारें इस पर फ़ैसला नहीं कर पाईं। हालाँकि जानकारों का यह भी मानना है कि इसे लागू करने में काफ़ी दिक़्क़तें भी आ सकती हैं।
लाल क़िले से दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले देश के बुनियादी ढांचे के विकास पर 100 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने का वादा किया है। यह एक बड़ा सपना दिखाने जैसा है। अब तक के मोदी सरकार के रिकॉर्ड को देखते हुए यह वादा आसमान छूने जैसा लगता है। लाल किले की प्राचीर से किए गए इस तरह के कई वादे अभी भी पूरा होने की बाट जो रहे हैं। शायद यही वजह है कि यह वादा करने के बाद प्रधानमंत्री ने अपने तमाम वादों को पूरा करने करने की प्रतिबद्धता को बेहद अतिशयोक्ति पूर्ण शब्दों में बयान किया। प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमारा सामर्थ्य हिंद महासागर जितना अथाह है, हमारी कोशिशें गंगा की धारा जितनी पवित्र हैं, निरंतर हैं और सबसे बड़ी बात हमारे मूल्यों के पीछे हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति की प्रेरणा है।'
प्रधानमंत्री ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ख़रब डॉलर तक ले जाने का अपना इरादा दोहराया है। यह ऐलान उन्होंने सत्ता में वापसी के बाद पेश किए गए अपनी सरकार के पहले बजट के बाद किया था। तभी से देश में इस पर बहस चल रही है। तमाम आर्थिक जानकार इसे बेहद चुनौतीपूर्ण मानते हैं। बता दें कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है।
देश में बड़े पैमाने पर उद्योग-धंधे बंद हो रहे हैं। तमाम बड़े उद्योगपति भयंकर कर्ज में डूबे हुए हैं। हाल ही में कॉफ़ी कैफ़े डे संस्थापक ने ख़ुदकुशी कर ली है। जिससे उद्योग जगत में निराशा का माहौल है।
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री जबरदस्त मंदी की मार झेल रही है। बड़े पैमाने पर लोग बेरोज़गार हो रहे हैं। ऐसे में जाने-माने अर्थशास्त्री यह सवाल उठा रहे हैं कि आख़िर इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था आएगी कहाँ से। हाल ही में अपने निवेशकों की बैठक में बजाज ऑटो के प्रमुख राहुल बजाज ने व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा था कि क्या विकास आसमान से टपकेगा?
पीएम मोदी बड़ी-बड़ी बातें करने में माहिर हैं। बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान करते वक्त उसमें बड़ी चालाकी से वह उसे कामयाब बनाने के लिये जनभागीदारी को ज़रूरी बताते हैं। इससे एक फ़ायदा यह भी होता है कि अगर कोई योजना सफल रही तो वह ख़ुद वाह-वाही लूट लेंगे और सफल नहीं हो रही तो इसका ठीकरा जनता की कम हिस्सेदारी या कम दिलचस्पी के सिर पर आ जा सकता है।
बता दें कि नोटबंदी के फौरन बाद देश भर में मची अफरा-तफरी के बीच प्रधानमंत्री ने देश की जनता से 50 दिन का समय माँगा था। साथ ही ऐलान किया था कि 50 दिन के बाद जिस चौराहे पर कहोगे वह उस चौराहे पर सजा भुगतने के लिए तैयार हैं। लेकिन नोटबंदी के बाद पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है।
नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री ने जीएसटी लागू करने के दौरान कहा था कि नोटबंदी से उतरी अर्थव्यवस्था को जीएसटी से फायदा होगा लेकिन जीएसटी के बाद हालात बद से बदतर होते चले गए हैं। आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी और महँगाई से जूझ रही जनता को फौरी तौर पर राहत देने के उपाय करने के बजाय प्रधानमंत्री एक बार फिर लाल किले की प्राचीर से बड़े-बड़े सपने बेच गए।
प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 370 का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। उन्होंने अनुच्छेद 370 पर देश को दो हिस्सों में बांट दिया है। जो इस मुद्दे पर सरकार के साथ हैं वे देशभक्त हैं और जो इस पर सवाल उठा रहे हैं या पूछ रहे हैं उनकी देश के प्रति निष्ठा दाँव पर है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर हाय तौबा मचाने वालों से देश की जनता पूछ रही है कि अगर यह इतना ही ज़रूरी था तो इसे स्थाई क्यों नहीं बनाया गया।
प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि 370 जाने के बाद जम्मू-कश्मीर को आगे ले जाने की सबकी ज़िम्मेदारी है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इतना बड़ा फैसला करने से पहले उन्होंने किसी राजनीतिक दल से सलाह-मशविरा करना मुनासिब नहीं समझा। जम्मू-कश्मीर में घाटी के लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। वह आज भी अपने घरों में क़ैद हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में ट्रिपल तलाक़ क़ानून बनाकर मुसलिम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने पर अपनी ही पीठ थपथपाई है। लेकिन वह यह नहीं बता पाए कि लगातार मॉब लिन्चिंग (भीड़ हिंसा) का शिकार होने वाले मुसलमानों की बेवा औरतों को इंसाफ़ कब और कैसे मिलेगा? इस तरह की घटनाओं पर प्रधानमंत्री ने लाल क़िले की प्राचीर से ऐसा करने वालों को कोई सीख नहीं दी।
अलवर में मॉब लिन्चिंग का शिकार हुए पहलू ख़ान की हत्या के सभी आरोपी स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले अदालत से बरी हो गए हैं। मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के आरोपी भी बरी हो चुके हैं। ऐसे में जब अल्पसंख्यक समुदाय ख़ुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है तो यह कैसे कहा जा सकता है कि मोदी सरकार 'सबका विश्वास' जीतने में कामयाब हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास संसद में प्रचंड बहुमत है। अनुच्छेद 370 पर लिए फ़ैसले के बाद देशभर में उनका जनाधार बढ़ा है। ज़ाहिर है इससे उनका हौसला भी बढ़ा है। इसी वजह से उन्होंने बड़े-बड़े दावे किए हैं, बड़े-बड़े वादे किए हैं। उनके दावों पर मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर अर्ज है -
‘तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि खुशी से मर न जाते जो एतबार होता।’
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