जिस बात की आशंका पिछले कुछ वक़्त से जताई जा रही थी, वैसा ही हुआ है। गुरूवार को हुई प्रसार भारती बोर्ड की बैठक में फैसला लिया गया है कि पीटीआई और यूएनआई के सब्सक्रिप्शन को समाप्त कर दिया जाए। लेकिन इसके पीछे क्या कारण है। आख़िर क्यों देश की सबसे बड़ी न्यूज़ एजेंसियों की सेवा की ज़रूरत अब प्रसार भारती को नहीं है।
प्रसार भारती ने अपनी सफाई में कहा है कि यह फ़ैसला आर्थिक कारणों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। प्रसार भारती के अफ़सरों ने इस फ़ैसले का पीटीआई की कवरेज से किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार किया है और कहा है कि वह न्यूज़ एजेंसियों से नए प्रस्ताव मंगाएगा। अफ़सरों ने यह भी कहा है कि पीटीआई और यूएनआई फिर से आवेदन करने के लिए आज़ाद होंगे।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने प्रसार भारती बोर्ड के इस फ़ैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि सरकार और उनकी एजेंसियों ने मीडिया से बदला लेने की नीयत से यह काम किया है।
पीटीआई राष्ट्र विरोधी?
पीटीआई का सब्सक्रिप्शन ख़त्म करने को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं तब उठी थीं जब इस साल जून महीने में प्रसार भारती ने पीटीआई को राष्ट्र विरोधी बताया था। चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री ने पीटीआई को दिए इंटव्यू में कहा था कि चीन तनाव कम करने और इलाक़े को खाली करने में अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा और एलएसी में अपनी ओर को पीछे हट जाएगा।
इस पर प्रसार भारती ने एक अफ़सर ने कहा था, 'पीटीआई की राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग की वजह से यह स्वीकार्य नहीं है कि उसके साथ संबंध बरक़रार रखा जाए। पीटीआई के व्यवहार की वजह से प्रसार भारती उसके साथ संबंध पर पुनर्विचार कर रहा है। उसे जल्द ही अंतिम फ़ैसले की जानकारी दे दी जाएगी।'
ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि विक्रम मिस्री का बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के उलट था जिसमें उन्होंने कहा था कि 'भारत की सीमा के अंदर न कोई घुसा है न ही घुस कर बैठा हुआ है।'
प्रसार भारती की धमकी
तब प्रसार भारती ने पीटीआई को धमकाया था कि सरकार उसे जो 9.15 करोड़ रुपये की वार्षिक फ़ीस देती है, उसे वह बंद कर सकती है। यह राशि पीटीआई को विभिन्न सरकारी संस्थान जैसे आकाशवाणी, दूरदर्शन, विभिन्न मंत्रालय, हमारे दूतावास आदि, जो उसकी समाचार सेवाएं लेते हैं, वे देते हैं।शिकंजा कसने की कोशिश
'द वायर' की एक ख़बर के मुताबिक़, 2016 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पीटीआई के निदेशक मंडल में अपने तीन चहेते पत्रकारों को बैठाना चाहा था। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के मौजूदा प्रेस सचिव अशोक मलिक, हिन्दुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता और फाइनेंशियल क्रॉनिकल्स के के. ए. बदरीनाथ की नियुक्ति की कोशिश की थी। लेकिन पीटीआई के निदेशक मंडल ने ऐसी कोशिशों को पूरा नहीं होने दिया था।
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