रूस और यूक्रेन में जारी युद्ध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ फोन पर बात की। उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति से कहा कि यूक्रेन संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता है, साथ ही इस पर भी जोर दिया कि परमाणु फैसिलिटीज के ख़तरे के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
टेलीफोन पर बातचीत के दौरान मोदी और ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में चल रहे संघर्ष पर चर्चा की। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री ने शत्रुता को जल्द से जल्द समाप्त करने और बातचीत व कूटनीति के मार्ग को आगे बढ़ाने की आवश्यकता को दोहराया है।
यूक्रेन ने रूस के कब्जे वाले चार क्षेत्रों में से दो में महत्वपूर्ण प्रगति की है। कुछ दिन पहले ही रूस ने 'जनमत संग्रह' कराने के बाद शुक्रवार को यूक्रेन के चार क्षेत्रों को अपने कब्जे में लेने की घोषणा कर दी थी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने क्रेमलिन समारोह में डोनेट्स्क, लुहान्स्क, खेरसॉन और ज़ापोरिज्जिया को औपचारिक रूप से रूस में शामिल कर लिया। इस पर पश्चिमी देशों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। अमेरिका ने रूस पर ताज़ा प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी।
इस बीच ख़बर है कि उन कब्जा किए गए दो क्षेत्रों में यूक्रेनी सेना काफ़ी आगे बढ़ी है। यूक्रेन की सेना ने दक्षिण के कई इलाकों पर फिर से कब्जा कर लिया है। उसने नीप्रो नदी के किनारों पर कब्जा करके रूसी फौज की सप्लाई लाइन काट दी है।
इससे पहले यूक्रेन ने लाइमन शहर की फतह का ऐलान कर दिया। यूक्रेन का यह शहर जुलाई से रूस के कब्जे में था। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेनी सैनिकों ने कहा कि उन्होंने कब्जे वाले पूर्वी यूक्रेन में लाइमैन के प्रमुख गढ़ पर कब्जा कर लिया है।
बहरहाल, बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ज़ेलेंस्की से कहा कि यूक्रेन संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता, भारत किसी भी शांति प्रयास में योगदान देने को तैयार है।
उन्होंने कहा, 'परमाणु सुविधाओं के खतरे के सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण के लिए दूरगामी, विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।' बता दें कि पुतिन ने रूस के अस्तित्व के लिए परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी दी थी।
भारत इस मामले में सधे हुए क़दम रख रहा है और यह 30 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए एक मसौदा प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा था। उसमें रूस के 'अवैध जनमत संग्रह' और चार यूक्रेनी क्षेत्रों के कब्जे की निंदा की गई थी। भारत रूसी तेल भी खरीद रहा है, जिसकी पश्चिम ने आलोचना की थी। इसके जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संवाददाताओं से कहा था कि रूस से एक महीने में भारत की कुल तेल खरीद शायद यूरोप की एक दिन की तुलना में भी कम है।
अपनी राय बतायें