अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है, गाँवों में माँग घट गई है और इसी कारण ज़ोर इस बात पर है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूँकी जाए। लेकिन किसानों के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि यानी पीएम किसान योजना के रुपये ही समय पर नहीं पहुँच रहे हैं। उत्तर प्रदेश में तो ऐसी हालत है कि इस योजना की तीसरी किस्त के रुपये एक भी किसान को नहीं मिले हैं। ऐसा तब है जब सरकार की ओर से ज़ोर इस बात पर दिया जा रहा है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया जाए क्योंकि कृषि क्षेत्र की हालत ज़्यादा ही ख़राब है और जब तक किसानों की जेब में पैसे नहीं आएँगे तब तक अर्थव्यवस्था को मज़बूती नहीं मिलेगी।
पीएम किसान योजना से जुड़ी आधिकारिक वेबसाइट पर सोमवार रात तक अपडेट की गई जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के एक भी किसान को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की तीसरी किस्त के रुपये नहीं मिले हैं। देश भर में इस योजना के हर चार लाभार्थियों में से एक उत्तर प्रदेश का है। इस योजना में किसानों को सालाना छह हज़ार रुपये मिलने होते हैं जिन्हें तीन किस्तों में दो-दो हज़ार रुपये दिए जाने होते हैं।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, तीसरी किस्त एक अगस्त से 30 नवंबर के लिए मिलनी है और देश भर में कुल मिलाकर अब तक 94.88 लाख किसानों में से प्रत्येक को 2000-2000 रुपये का भुगतान कर दिया गया है। तीसरी किस्त के रुपये भुगतान करने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, गुजरात और तेलंगाना अव्वल हैं। आंध्र प्रदेश के 16.35 लाख, गुजरात 13.99 लाख और तेलंगाना 11.03 लाख किसानों को तीसरी किस्त का भुगतान किया जा चुका है।
अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत और गाँवों में माँग गिरने से सरकार चिंतित है। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, माना जाता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे इसका कारण ढूंढें कि कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय से आख़िर किसानों को भुगतान में देरी क्यों हो रही है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने कृषि सचिव से इस मामले को देखने को कहा है और जो राज्य धीमी गति से काम कर रहे हैं उन्हें भुगतान में तेज़ी लाने को कहा है।’ अधिकारी ने कहा कि यह महत्वपूर्ण था कि इस योजना का धन किसान-लाभार्थियों तक पहुँचे, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। पीएम-किसान के आँकड़ों से पता चलता है कि पहली किस्त के दौरान 6.47 करोड़ किसानों को योजना का लाभ मिला। दूसरी किस्त के दौरान लाभार्थियों की संख्या घटकर 3.83 करोड़ रह गई।
सरकार चिंतित क्यों?
दो साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि गाँवों में खपत बढ़ने के बजाय कम हुई है। इसकी वजह मज़दूरी और लोगों के पास नकद पैसे का कम होना है। इसकी वजहों में प्रमुख हैं सरकारी खर्च में कमी, लोगों के पास नकद पैसे की कमी, सरकार की ओर से फ़सल की कम ख़रीद और कम लोगों का पीएम किसान स्कीम का फ़ायदा उठाना।
पीएम किसान योजना के तहत, 2,000 रुपये की तीन किस्तों में पात्र किसानों को हर साल 6,000 रुपये सीधे खाते में दिए जाने हैं। 1 दिसंबर, 2018 से 31 मार्च, 2019 की अवधि के लिए पहली किस्त 2018-19 में मई में लोकसभा चुनाव से पहले ही दी गई थी। बड़ी संख्या में किसानों को दूसरी किस्त का भुगतान किया गया था। योजना की दूसरी किस्त की रक़म अप्रैल महीने में भी बड़ी संख्या में किसानों को दी गई थी।
तीसरी किस्त में कम कैसे हो गए किसान?
पीएम किसान लाभार्थी आँकड़ों के अनुसार, देश भर में प्रत्येक चार लाभार्थियों में से एक उत्तर प्रदेश का किसान है। पहली किस्त प्राप्त करने वाले 6.47 करोड़ किसानों में से यूपी में सबसे अधिक लाभार्थियों की संख्या 1.58 करोड़ किसानों की रही जो कुल मिलाकर क़रीब 25 प्रतिशत हैं। यूपी में केवल 1.08 करोड़ किसानों को दूसरी किस्त मिली जहाँ पहली किस्त 1.58 करोड़ किसानों को मिली थी। कुल मिलाकर देशभर में पहली किस्त में 6.47 करोड़ किसानों की तुलना में दूसरी किस्त में 3.83 करोड़ किसानों को योजना के रुपये दिए गए।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी सरकार के अधिकारियों ने कहा कि 37 लाख किसानों के लिए भुगतान के आदेश कृषि मंत्रालय को दे दिए गए हैं। यूपी सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि इन किसानों को 2-3 दिनों में तीसरी किस्त मिलनी चाहिए।
क्यों हो रही है देरी?
पहली किस्त देते समय योजना के दिशा-निर्देशों ने किसानों को 'आधार' नहीं होने की स्थिति में पहचान के सत्यापन के लिए वैकल्पिक दस्तावेज़ों की अनुमति दी थी। इसलिए पहली किस्त में लाभार्थियों की संख्या सबसे अधिक थी। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने यूपी सरकार के अधिकारी के हवाले से लिखा है कि बाद की किस्तों के लिए भुगतान आदेश जारी करने में देरी योजना के तहत एक शर्त के कारण हुई। शर्त यह थी कि डाइरेक्ट बेनेफ़िट ट्रांसफ़र के लिए बैंक खातों के साथ किसानों की 'आधार' संख्या जुड़े होने के बाद ही रुपये खाते में डाले जाएँगे।
आधार नहीं होने की स्थिति में लाभार्थियों को विशिष्ट पहचान संख्या के लिए नामांकन अनिवार्य रूप से कराना ज़रूरी है। क्योंकि अब किस्त के रुपये केवल आधार से जुड़े खातों में ही दिए जा रहे हैं। शायद इसी कारण दूसरी किस्त (1 अप्रैल से 31 जुलाई) के दौरान यूपी और अन्य राज्यों के लाभार्थियों की संख्या कम हो गई। लोकसभा चुनाव से पहले पहली किस्त देने के लिए 'आधार' की जगह दूसरे वैकल्पिक दस्तावेज़ को मान्य किया गया था।
अपनी राय बतायें