loader

'इंडिया हटाकर देश का नाम भारत कर दो'

क्या जिस तरह से भारतीय लोकाचार और संस्कृति के अनुकूल देश में शहरों के नाम बदले जा रहे हैं उसी तरह से अब देश का नाम भी बदलेगा? यह सवाल अनूठा है, लेकिन एक व्यक्ति ने ऐसी ही अनूठी माँग रख दी है। उस व्यक्ति को लगता है कि संविधान में जो India शब्द इस्तेमाल किया गया है वह अंग्रेज़ों की ग़ुलामी का प्रतीक है और इससे वैसी राष्ट्रीय भावना पैदा नहीं होती है। उन्होंने माँग क्या रखी है, सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है और इसकी सुनवाई भी होनी है। मामला कितना बड़ा है, इसका अंदाज़ा इसी से लगता है कि ख़ुद मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे इसकी सुनवाई करने वाले हैं। अब तक दो बार इस पर सुनवाई टल चुकी है। मंगलवार को भी सुनवाई टल गई है।

मुख्य न्यायाधीश के छुट्टी पर होने के कारण 'इंडिया' शब्द को हटाकर और देश का नाम भारत करने की माँग वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई नहीं हो सकी। फ़िलहाल, इसके लिए अगली तारीख़ तय नहीं हो पाई है। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होनी थी, लेकिन जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अनुपलब्धता के कारण सुनवाई को 2 जून के लिए स्थगित कर दिया था। 

ताज़ा ख़बरें

यह याचिका अनूठी है और देश के नाम को बदलने की माँग भी। नाम बदलना कोई आसान मामला नहीं है। यह इसलिए कि देश के संविधान में इंडिया और भारत दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है, 'India जो कि भारत है, वह राज्‍यों का एक संघ होगा। पहले शेड्यूल में राज्‍य और क्षेत्र निर्धारित किए जाएँगे। India के क्षेत्र में शामिल होंगे।...'

इसी India यानी इंडिया शब्द पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति की है। नमाह नाम के व्यक्ति ने वकील राज किशोर चौधरी के माध्यम से यह याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि अनुच्छेद 1 में संशोधन यह सुनिश्चित करेगा कि इस देश के नागरिक अपने औपनिवेशिक अतीत को 'अंग्रेज़ी नाम को हटाने' के रूप में प्राप्त करेंगे, जो एक राष्ट्रीय भावना पैदा करेगा। उन्‍होंने कहा क‍ि इंडिया नाम हटाने में नाकामी अंग्रेजों की ग़ुलामी की प्रतीक है। उन्होंने कहा है, 'प्राचीन समय से ही देश भारत के नाम से जाना जाता रहा है। अंग्रेज़ों की 200 साल की ग़ुलामी के बाद मिली आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी में देश का नाम इंडिया कर दिया गया। इतिहास को भुलाना नहीं चाहिए।'

‘शहरों के नाम बदले गए, देश का भी बदल दें’

याचिकाकर्ता ने देश में शहरों के नाम बदले जाने का भी ज़िक्र किया है। याचिका में कहा गया है, 'समय अपने मूल और प्रामाणिक नाम से देश को पहचानने के लिए सही है, ख़ासकर जब हमारे शहरों का भारतीय लोकाचार के साथ पहचानने के लिए नाम बदल दिया गया है....’ 

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि वास्तव में इंडिया शब्द की जगह भारत कर दिया जाना हमारे पूर्वजों द्वारा स्वतंत्रता की लड़ाई उचित ठहराएगा।

याचिकाकर्ता ने ‘एएनआई’ से बातचीत में एक और दलील दी। उन्होंने कहा, ‘इंडिया का नाम एक होना चाहिए। कई नाम हैं जैसे रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया, भारत, इंडिया, भारत गणराज्‍य वगैरह। इतने नाम नहीं होने चाहिए। अलग कागज पर अलग नाम है। आधार कार्ड पर भारत सरकार लिखा है, ड्राइविंग लाइसेंस पर यूनियन ऑफ़ इंडिया, पासपोर्ट पर 'रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया, इससे कन्‍फ्यूजन होता है।’

देश से और ख़बरें

संविधान में India अर्थात भारत क्यों लिखा है?

बता दें कि देश की आज़ादी के समय भी देश का नाम रखने को लेकर ख़ूब विवाद हुआ था। तब भारत, हिंदुस्तान, भारतवर्ष, हिंद, इंडिया जैसे शब्दों पर संविधान सभा में मंथन हुआ। कहा जाता है कि तब भारत या भारतवर्ष नाम का समर्थन करने वाले सारे नेता उत्तर भारतीय थे। एक नाम पर सहमति नहीं बनने का बड़ा कारण यह था कि संविधान सभा में देश के अलग-अलग क्षेत्रों और भाषाओं के लोग शामिल थे। तब कहा गया था कि नाम जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के भौगोलिक क्षेत्र को एक सूत्र में पिरोने वाला होना चाहिए। सभी नामों पर चर्चा के बाद एक आम सहमति बनी थी। इसके बाद ही संविधान के अनुच्छेद 1 में यह लिखा गया कि India अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें