कोरोना वायरस से संक्रमित होने का ऐसा ख़ौफ़ पसरा हुआ है कि इससे मरे लोगों को कोई दफ़नाने को तैयार नहीं होता है, कोई क़ब्र खोदने को तैयार नहीं होता है, किसी क़ब्रिस्तान में इन्हें जगह नहीं मिल रही है।
दिल्ली में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार, राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कुछ कर्मचारी जब एक लाश लेकर क़ब्रिस्तान पहुँचे, क़ब्र खोदने वालों ने क़ब्र खोदने से इनकार कर दिया, उन्होंने लाश के पास खड़े होना तक मुनासिब नहीं समझा।
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गड्ढे में फेंकनी पड़ी लाश
अंत में परिवार के लोगों ने दो पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट खरीदे, ख़ुद अंतिम संस्कार किया और लाश को 15 फीट गहरे गड्ढे में दफ़ना दिया। उसके साथ ही वे पीपीई भी उसी क़ब्र में फेंक दिए गए।मृतक के बेटे ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'किसी ने हमारा साथ नहीं दिया, हम मंगलोपुरी और बाड़ा हिन्दू राव इलाक़ों में भटकते रहे, एक क़ब्रिस्तान से दूसरे क़ब्रिस्तान का चक्कर लगाते रहे, किसी ने लाश दफ़नाने नहीं दिया।'
अलग क़ब्रिस्तान
दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड ने कोरोना वायरस से मरे लोगों के लिए मिलेनियम पार्क में अलग क़ब्रिस्तान बनाया है। पर वहाँ तक जाने वाली गली इतनी पतली है कि उसमें बुलडोज़र दाखिल नहीं हो सकता। इसलिए कोरोना से मरे लोगों को जदीद कब्रिस्तान में ही दफ़ना दिया जाता है।लेकिन तबलीग़ी जमात के लोगों को यहाँ भी क़ब्र नसीब नहीं होती। जमात के चार लोगों के शव को यहाँ दफ़नाने की इजाज़त नहीं दी गई और उन्हें द्वारका के सेक्टर 4 स्थित क़ब्रिस्तान ले जाया गया।
'दफ़नाने से इनकार नहीं कर सकते'
वक़्फ़ बोर्ड के एक सदस्य ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'कोई क़ब्रिस्तान में किसी के शव को दफ़नाने से इनकार नहीं कर सकता है, तबलीग़ी जमात के सदस्य ही वह क्यों न हो। लेकिन यदि क़ब्र खोदने वाले ऐसा करने से इनकार कर दें तो यह उनका विशेषाधिकार है, यह उनका स्वैच्छिक काम है। ऐसे में बुलडोज़र से क़ब्र खोदी जा सकती है।'क़ब्रिस्तान की देखभाल करने वाले मसकूर आलम अपनी मजबूरी बताते हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि क़ब्रिस्तान में काम करने के लिए सिर्फ 7 लोग बचे हुए हैं, बाकी सभी छोड़ कर जा चुके हैं।
उन्होंने अख़बार से कहा, 'दफ़नाने में परिजनों की मदद करने का सवाल ही नहीं है। हम कोरोना वायरस से संक्रमित होना नहीं चाहते।' उन्होंने आगे कहा,
'तबलीग़ी जमात के किसी सदस्य को यहाँ दफ़नाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती, पर वे बड़ी तादाद में आते हैं और हमारी मुसीबतें बढ़ा सकते हैं।'
पीपीई किट नहीं
क़ब्रिस्तान की देखभाल करने वाले ने कहा कि उन्हें दफ़नाने के लिए पीपीई किट नहीं दी जाती है, बस मास्क, साबुन, दस्ताने और एक बोतल सैनिटाइज़र दे दिया जाता है।क़ब्र खोदने के लिए बुलडोज़र वाले 6,000 रुपए लेते हैं और क़ब्रिस्तान कमेटी वालों को 2,000 रुपए देने होते हैं। कमेटी वालों ने यह रकम नहीं लेने की बात कही है। पर बुलडोज़र वाले को तो पैसे देने ही होंगे।
सवाल यह है कि कोरोना से मरने वालों को दफ़नाने के लिए दो गज़ ज़मीन भी नसीब न हो, यह निश्चित रूप से दुर्भाग्य की बात है। यह तो न्यूनतम है और यह हर मुसलमान को मिलना चाहिए, भले ही वह तबलीग़ी जमात का ही क्यों न हो।
पर कोरोना के डर ने सबकुछ बदल कर रख दिया है।
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