अपने पेशेवर कामकाज और सैनिकों व अफ़सरों की प्रतिबद्धता के लिए मशहूर भारतीय सेना के एक शीर्ष अफ़सर पर गंभीर आरोप लगे हैं।
सेना के लेफ़्टीनेंट जनरल रैंक के अधिकारी और इसकी खुफ़िया सेवा मिलिटरी इंटेलीजेंस के पूर्व प्रमुख राकेश कुमार लूंबा पर आरोप लगा है कि उन्होंने सेशल्स में एक ऑफ़शोर कंपनी खोली और उसमें दस लाख डॉलर जमा कराए।
सेशल्स में इस तरह की ग़ैरक़ानूनी कंपनी खोलना तो ग़लत है ही, सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी के पास इतने पैसे कहाँ से आए, इस पर भी सवाल उठना लाज़िमी है।
यह अहम इसलिए भी है कि लेफ्टीनेंट जनरल लूंबा 2010 में रिटायर होने से पहले डाइरेक्टरेट जनरल ऑफ मिलिटरी इंटेलीजेन्स के प्रमुख थे, जो बेहद संवेदनशील माना जाता है और सेना के कामकाज का अहम हिस्सा है। वे उसके पहले तीन कोर के जनरल ऑफ़िसर इन कमांड यानी जीओसी यानी प्रमुख थे।
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, लेफ़्टीनेंट जनरल राकेश कुमार लूंबा का नाम पैंडोरा पेपर्स में पाया गया है और उसी में इस पूरे मामले का खुलासा किया गया है।
क्या है पैंडोरा पेपर्स?
बता दें कि वॉशिंगटन स्थित इंटरनेशनल कॉन्सोर्शियम ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स यानी आईसीआईजे ने लगभग 1.2 करोड़ फाइलें हासिल कीं। इसमें लगभग 64 लाख दस्तावेज़, लगभग 30 लाख तसवीरें, 10 लाख से अधिक ईमेल और लगभग पाँच लाख स्प्रेडशीट शामिल हैं।
इसके बाद 117 देशों के 600 पत्रकारों ने इन दस्तावेज़ों की पड़ताल की। 14 स्रोतों से मिले इन दस्तावेज़ों की कई महीने तक जाँच की गई और उसके आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई। इन रिपोर्टों को पैंडोरा पेपर्स कहा गया।
'इंडियन एक्सप्रेस' और बीबीसी उन मीडिया समूहों में शामिल है, जो इस परियोजना में थे।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, राकेश लूम्बा की कंपनी रेयरिंत पार्टनर्स लिमिटेड सेशेल्स में रजिस्टर्ड है। इसमें राकेश लूम्बा के बेटे राहुल लूम्बा भी साझेदार थे। यह कंपनी 2016 में पंजीकृत की गई।
ये दोनों पिता-पुत्र इस कंपनी के निदेशक थे। इस कंपनी के तार मॉरीशस एबीसी बैंकिंग कॉरपोरेशन से जुड़े हुए थे।
रेयरिंत पार्टनर्स लिमिटेड में जनवरी 2016 में एक लाख डॉलर जमा कराए गए और कहा गया कि यह कंपनी के साल भर का अनुमानित खर्च है। बाद में उसमें पाँच लाख डॉलर कंसलटेन्सी फीस के रूप में डाले गए।
यह तो साफ है कि यह एक ऑफ़शोर कंपनी है, जिसमें छह लाख डॉलर डाले गए।
ऑफ़शोर कंपनी?
ऑफ़शोर कंपनी फ़र्जी कंपनी या शेल कंपनी होती है। इसमें से ज्यादातर कंपनियाँ गुमनाम होती हैं। इनका मालिक कौन है, किसके पैसे लगे है ये सभी बातें गुप्त रखी जाती है।
इस तरह की कंपनी टैक्स हैवन में खोली जाती है। टैक्स हैवन उन देशों को कहते हैं जहां कारोबार पर टैक्स नहीं लगता है या बहुत ही कम लगता है और सबसे बड़ी बात यह कि किसी तरह का हिसाब किताब सरकार को नहीं देना होता है।
क्या होता है टैक्स हैवन?
कुछ जगहें टैक्स चुराने और काले धन को ठिकाने लगाने वालों के बीच काफ़ी प्रचलित है, मसलन, केमन आइलैंड, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, स्विट्ज़रलैंड और सिंगापुर। पैंडोरा पेपर्स की ज़्यादातर कंपनियाँ ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में खोली गईं।
पनामा पेपर्स लीक के बाद बार-बार ये आवाज़ उठी थी कि राजनेताओं के लिए टैक्स से बचना या संपत्ति छिपाना कठिन बनाया जाए।
उसके बाद से ही कुछ लोगों ने पैसे ऑफ़शोर कंपनियों में डाल दिए। पैंडोरा पेपर्स से इस तरह की कुछ कंपनियों का खुलासा हुआ है।
राकेश लूम्बा ने 'इंडियन एक्सप्रेस' को दी गई अपनी सफाई में कहा है कि 2016 के बाद उस कंपनी में पैसे जमा नहीं किए गए, और एबीसी बैंकिंग कॉरपोरेशन में कोई खाता नहीं खोला गया। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी ने कोई कारोबार नहीं किया।
लेकिन लूम्बा खुद कई कंपनियों से जुड़े रहे हैं और इस पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ के मुताबिक लूम्बा डिफेन्स वेलफेयर हाउसिंग लिमिटेड, सैनिक इनफ्रास्ट्रक्चर इंडिया लिमिटेड और कई कंपनियों से जुड़े रहे हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि वे मिलिटरी इंटेलीजेन्स के प्रमुख रहे हैं। इस पद पर बैठा व्यक्ति यदि कोई ऑफ़शोर कंपनी खोलता है और उसमें कई लाख डॉलर जमा कराता है तो शक की सूई घूमना स्वाभाविक है।
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