प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही चुनाव प्रचार में यह कहते रहें कि उन्होंने पाकिस्तान के अंदर घुस कर मारा है, सच तो यह है कि पाकिस्तान चाहता है कि अगला लोकसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी ही जीते। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने यह खुले आम कहा है और इसकी वजह भी बताई है। क्रिकेटर से राजनेता बने ख़ान का यह बयान ऐसे समय आया है जब इसके पहले नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के दूसरे नेता बात-बात पर विपक्ष पर पाकिस्तान-परस्त होने का आरोप लगा रहे हैं। मोदी ने कई बार कहा कि विपक्ष की वही भाषा है जो पाकिस्तान की है। इसके भी पहले बिहार विधानसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार करते हुए कहा था कि जनता दल यूनाइटेड चुनाव जीती तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे, मिठाइयाँ बाँटी जाएँगी। मजेदार बात यह है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में वही जनता दल यूनाइटेड बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ रहा है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने
ख़बर दी है कि इमरान ख़ान का मानना है कि बीजेपी के चुनाव जीतने से दोनो देशों के बीच शांति की संभावना अधिक है क्योंकि हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी कश्मीर पर बातचीत करेगी, इसकी ज्यादा उम्मीद है। उन्होंने विदेशी पत्रकारों से कहा, 'यदि दक्षिणपंथी बीजेपी चुनाव जीतेगी तो कश्मीर पर किसी तरह का समझौता हो सकता है।'
हालाँकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की बात करते हुए मोदी की आलोचना भी की है। उन्होंने कहा, 'भारत में मुसलमान होने पर हमले हो रहे हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी भारत में यह होते हुए देखूँगा।' इमरान ने कहा कि कश्मीर दोनों देशों के बीच राजनीतिक मुद्दा है और इसका कोई सैनिक समाधान नहीं हो सकता है। यदि हथियारबंद आतंकवादी भारत से लगने वाली पाकिस्तान सीमा तक पहुँच जाएँगे तो कश्मीरियों की तक़लीफ़ बढेगी क्योंकि उस हालत में भारतीय सुरक्षा बल कार्रवाई करेगी।
इस पर भारत में ज़बरदस्त प्रतिक्रिया हुई है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, मोदी को वोट दरअसल पाकिस्तान को वोट है।
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने इस पर कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया, 'भक्त परेशान होकर सिर खुजला रहे होंगे। वे यह नहीं समझा पा रहे होंगे कि इस पर इमरान खान की तारीफ़ करें या निंदा।'
आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया और कहा कि नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने से पाकिस्तान में पटाखे छोड़े जाएँगे, मिठाइयाँ बाँटी जाएँगी। इसके बाद दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट कर कहा कि तमाम लोग यही सवाल पूछ रहे हैं।
यह बात ऐसे समय हो रही जब कुछ पर्यवेक्षकों का मानना रहा है कि पाकिस्तान वाकई चाहता है कि भारत में बीजेपी की सरकार रहे। पर्यवेक्षकों का तर्क यह है कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की सोच यह है कि भारत में कट्टरपंथी हिन्दू सोच की सरकार रहने से मुसलमान ख़ुद को ज़्यादा से ज़्यादा अलग-थलग महसूस करेंगे और यह पाकिस्तान के हित में है। इसी तरह पाकिस्तान का मानना है कि बीजेपी की सरकार रहने से कश्मीर समस्या पहले से अधिक उलझेगी और पाकिस्तान यही चाहेगा।
पाकिस्तान को भेजा था शुभकामना संदेश
इसके पहले नरेंद्र मोदी एक बार विवादों में फँस गए थे जब उन्होंने पाकिस्तान के स्थापना दिवस पर उसे शुभकामना संदेश भेजा था। हर बात को ट्वीट करने वाले मोदी ने इस पर चुप्पी साध रखी थी, पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर यह जानकारी सार्वजनिक कर दी। इमरान ने ट्वीट कर मोदी के संदेश को साझा किया है - 'उपमहाद्वीप के लोगों को एकजुट होकर लोकतंत्र, समृद्धि, शांति और विकास के लिए काम करना चाहिए। हिंसा और आतंक से मुक्त वातावरण में यह होना चाहिए।' इमरान ख़ान ने इस संदेश पर ट्वीट कर अपनी खुशी जताई।
करतारपुर पर बातचीत
इसी तरह भारत ने जब करतारपुर कॉरीडोर के मामले पर पाकिस्तान से बातचीत की तो नरेंद्र मोदी की खूब आलोचना हुई थी और पूछा गया कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चलने देने की बात करने वाले नरेंद्र मोदी पुलवामा आतंकवादी हमले के एक महीने के बाद ही क्यों इस्लामाबाद से बातचीत कर रहे हैं।
दरअसल, मामला यह है कि बीजेपी और ख़ास कर नरेंद्र मोदी ने एक तरह का छद्म राष्ट्रवाद का नैरेटिव गढ़ रखा है जिसके तहत पाकिस्तान की आलोचना करना और उससे दुश्मनी पालने को ही राष्ट्रवाद मान लिया गया है। चुनाव के पहले इस राषट्रवाद को स्थापित करने के लिए मोदी ने हर सभा में इस पर भड़काने वाली बातें कीं। अब वे ख़ुद इस जाल में फँसते नज़र आ रहे हैं।
बुरे फँसे थे आडवाणी
बीजेपी के इस पाकिस्तान विरोधी रवैए की वजह से ही उसका कोई नेता पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते की बात नहीं कर सकता। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी इसके शिकार हो चुके हैं। अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौराने वे जिन्ना की मज़ार पर गए और उनकी तारीफ़ करते हुए उन्हें निजी ज़िंदगी में धर्मनिरपेक्ष क़रार दिया था। भारत में इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और ख़ुद उनकी पार्टी के लोग बुरी तरह नाराज़ हो गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उन्होंने सफ़ाई दी थी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस घटना की वजह से ही आरएसएस ने आडवाणी से दूर कर ली और वे कभी प्रधानमंत्री पद के लायक नहीं समझे गए।
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