जिस करतारपुर गलियारे को लेकर पाकिस्तान पहले बढ़चढ़ कर दावे कर रहा था अब उसी ने इसमें अड़ंगा डालना शुरू कर दिया है। दरअसल, इस गलियारे को चालू करने पर पाकिस्तान तरह-तरह की आनाकानी कर रहा है, वह भारत के तमाम प्रस्तावों को या तो पूरी तरह खारिज कर रहा है या कड़ी शर्तें थोप रहा है। इसके अलावा इसी परियोजना से जुड़े पुल निर्माण से भी वह पीछे हट रहा है। इसीलिए सिखों के सबसे पवित्र धर्म स्थलों में से एक पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत से जोड़ने वाला करतारपुर गलियारा एक बार फिर ख़बरों में है। इस पर अब यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि चमकाने के लिए पहले इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखा दी थी?
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सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान ने सिर्फ़ दिखावे के लिए और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अपनी छवि सुधारने के लिए करतारपुर परियोजना में दिलचस्पी दिखाई थी? क्या पाकिस्तान करतारपुर स्थित गुरुद्वारे के बहाने भारत पर दबाव डालने की राजनीति कर रहा है?
वादा, तेरा वादा!
पाकिस्तान अपने वायदे से पीछे हट रहा है, यह इससे ही साफ़ है कि वह वीज़ा-मुक्त प्रवेश से अब इनकार कर रहा है।- पहले पाकिस्तान ने ही प्रस्ताव दिया था कि करतारपुर तक जाने वाले श्रद्धालुओं को वीज़ा या किसी तरह के काग़ज़ात की ज़रूरत नहीं होगी। पर अब वह इस पर अड़ा है कि इन लोगों को स्पेशल परमिट तो लेनी ही होगी।
- इसी तरह इस्लामाबाद पहले बग़ैर किसी फ़ीस के प्रवेश देने की बात करता था, लेकिन अब उसे इसके लिए फ़ीस की माँग कर रहा है।
- भारत का कहना है कि सिख तीर्थयात्रियों को करतारपुर तक जाने की छूट रोज़ाना हो, लेकिन पाकिस्तान का कहना है कि ख़ास मौक़ों पर ही यह अनुमति दी जा सकती है, रोज़ नहीं।
- भारत चाहता है कि रोज़ाना कम से कम 5 हज़ार सिख श्रद्धालुओं को करतारपुर जाने दिया जाए, ख़ास मौक़ों पर इसे बढ़ा कर 10 हज़ार कर दिया जाए। पर पाकिस्तान 700 से अधिक लोगों को अनुमति देने पर राज़ी नहीं है।
- इसी तरह भारत का कहना है कि भारतीय नागरिकों के अलावा ओवरसीज़ इंडियन कार्ड धारकों को भी यह सुविधा मिले, विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोग भी उस स्थान का दर्शन कर सकें, जहाँ गुरु नानक ने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। पर इस्लामाबाद का कहना है कि यह सुविधा सिर्फ़ भारतीय नागरिकों के लिए है।
पानी और पुल!
गलियारे से जुड़ी परियोजना में पाकिस्तान दूसरे तरीकों से भी अड़ंगा डाल रहा है। एक मामला दोनों देशों के बीच बहने वाली रावी नदी पर प्रस्तावित पुल को लेकर भी है। पहले पाकिस्तान इस पर राज़ी था कि गलियारे को रावी नदी से जोड़ने के लिए नदी पर एक पुल बनाया जाए ताकि बाढ़ का पानी भारतीय सीमा में घुस कर यात्रियों की आवाजाही को प्रभावित न करे। पर अब उसने अपने पैर पीछे खींच लिए।पूरी तरह धर्म से जुड़े इस मामले का पाकिस्तान राजनीतिक फ़ायदा उठाने की कोशिश में है, यह भी साफ़ है। भारत का आरोप है कि इस्लामाबाद ने पाकिस्तान के गुरुद्वारों के रख रखाव के लिए जो कमेटी बनाई है, उसमें भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक तत्वों को रखा है। इसमें गोपाल सिंह चावला प्रमुख हैं। करतारपुर गलियारे की नींव रखने के कार्यक्रम में उन्हें बुलाया गया था और भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्धू से मिलवा दिया गया था। बाद में सिद्धू ने सफ़ाई देते हुए कहा था कि न तो इसके बारे में उन्हें कुछ पता था न ही वह चावला को पहचानते थे।
पाकिस्तान की मंशा?
पर सबसे अहम सवाल यह है कि पाकिस्तान के रवैए में यह बदलाव क्यों है? दरअसल, जिस समय पाकिस्तान ने आगे बढ़ कर करतारपुर गलियारे का प्रस्ताव दिया था, कुछ लोगों को उसी समय शंका हुई थी कि यह दरियादिली क्यों दिखाई जा रही है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पूरी तरह अलग-थलग पड़ा हुआ था, इमरान ख़ान प्रधानमंत्री बन चुके थे और वह इस स्थिति को बदलना चाहते थे। वह नया पाकिस्तान की बात कर रहे थे और ज़मीनी स्तर पर कुछ दिखाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने यह तुरुप का पत्ता फेंका जिससे यह संकेत दे सकें कि वह भारत से रिश्ते सुधारना चाहते हैं। भारत में इसे शंका की निगाह से देखा गया था, पर उसके पास कोई विकल्प नहीं था।अब सवाल यह भी है कि ऐसे में भारत क्या करे? नई दिल्ली की कोशिश है कि गुरु नानक के 550वें जन्म दिन के पहले काम पूरा हो जाए। सरकार ने परियोजना पर 178 करोड़ रुपये खर्च करना तय किया है। वह इससे पीछे नहीं हट सकती। एक ही रास्ता बचता है कि वह पाकिस्तान पर दबाव डाल कर सभी पुरानी बातें मनवाए। इमरान ख़ान का ‘नया पाकिस्तान’ कितना सहयोग करेगा और वह कितना ‘नया’ है, यह भी इससे साफ़ हो जाएगा।
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