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ओडिशा रेल हादसे को भी सांप्रदायिक रंग देने की हुई कोशिश!

ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को हुए रेल हादसे में अब तक 275 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है। वहीं करीब एक हजार लोग घायल भी हुए हैं। इस दुखद हादसे के बाद इसे भी हिंदू- मुस्लिम रंग देने की कोशिश हो रही है। इसके लिए झूठी खबरें या फेक न्यूज़ फैलाए जा रहे हैं। 

रेल हादसे को सांप्रदायिक रंग देने के लिए दावा किया गया कि घटनास्थल के पास मस्जिद है और इसके पीछे मुस्लिम समुदाय के लोगों का हाथ है। जबकि पड़ताल में सामने आया है कि जिस तस्वीर को कुछ लोग सोशिल मीडिया पर शेयर कर उसे मस्जिद बता रहे हैं वह वास्तव में मस्जिद की नहीं, बल्कि मंदिर की है। यह एक इस्कॉन मंदिर है। 

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मंदिर के प्रमुख चैतन्य चंद्रदास ने मीडिया को दिए अपने बयान में कहा है कि यह मंदिर 2004 से बना हुआ है। जिसका काम है कृष्ण भावना का प्रचार प्रसार करना। उन्होंने कहा कि इसका मस्जिद और मुस्लिम से कोई संपर्क नहीं है।

ऑल्ट न्यूज़ समेत फैक्ट चेक करने वाली कई वेबसाइटों और न्यूज़ एजेंसियों ने भी अपनी पड़ताल में स्पष्ट कर दिया कि मस्जिद बता कर शेयर की जा रही फोटो में दिख रही इमारत मंदिर है। हालांकि यह सच्चाई सामने आते-आते अनेकों लोगों ने इस फेक न्यूज़ को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर कर दिया था।

रेल हादसे को सांप्रदायिक रंग देने वाले ऐसे लोगों को ओडिशा पुलिस ने चेतावनी भी दी है। ओडिशा पुलिस ने ट्विटर पर लिखा है कि कुछ सोशल मीडिया हैंडल शरारती तरीके से बालासोर में हुए रेल हादसे को सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं। ओडिशा जीआरपी हादसे के कारणों और अन्य सभी पहलुओं की जांच कर रही है। पुलिस ने ट्विटर पर लिखा है कि हम सभी से यह अपील करते हैं कि वे इस तरह के झूठे और दुर्भावनापूर्ण पोस्ट को प्रसारित करने से बचें। 

ओडिशा पुलिस ने ट्विटर पर यह चेतावनी भी दी है कि अफवाह फैलाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

पहले भी हो चुकी है ऐसी कोशिशें!

2020 में जब कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ तो इसके लिए भी सांप्रदायिक सोच रखने वालों ने हिंदू - मुस्लिम एंगल तलाश लिया। अफवाह फैलाई गई कि भारत में इसके फैलने के लिए मुसलमान जिम्मेदार हैं। तबलीगी जमात और इसके लोगों पर जमकर निशाना साधा गया। तबलीगी जमात के बहाने टीवी चैनलों और दूसरे मीडिया ने जमकर सांप्रदायिकता फैलाई और मुसलमानों को कटघरे में खड़ा किया। ग़लत जानकारी और फेक न्यूज़ के कारण जगह-जगह मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार की अपील की गई। वाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया माध्यमों से इस दौरान मुस्लिमों को लेकर फेक न्यूज़ और नफ़रत खूब फैलायी गयी। 

कोविड वैक्सीनेशन

कोविड वैक्सीनेशन के शुरुआती दिनों में भी वैक्सीनेशन को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई। मीडिया चैनलों ने लगातार ऐसी खबरें चलाई जिससे यह गलतफहमी फैलने लगी कि मुस्लिम समुदाय वैक्सीनेशन के खिलाफ है या वैक्सीन नहीं लेना चाहता है। जबकि सच्चाई यह थी कि वैक्सीनेशन के शुरुआती दिनों में हर तबके और धर्म के लोगों में इससे जुड़े कई सवाल थे। सभी तबके में कुछ लोग वैक्सीन लेने से डर रहे थे और धीरे-धीरे उनके मन से गलतफहमियां खत्म हो गईं।

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जनसंख्या पर भी सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश

सांप्रदायिक सोच के लोगों के लिए जनसंख्या से जुड़ा मुद्दा भी हिंदू -मुस्लिम ऐंगल का हो जाता है। जब-जब इससे जुड़े आंकड़े आते हैं तो मीडिया और कुछ लोगों के द्वारा जनसंख्या बढ़ने का जिम्मेदार मुस्लिम समुदाय को बता दिया जाता है। अक्सर ख़बरों में यह ऐंगल दिया जाता है कि मुस्लिमों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। ऐसी आधी अधूरी और भ्रामक खबरों को दिखाकर सांप्रदायिक मीडिया समाज में नफ़रत फैलाता है।

विज्ञापनों में भी खोज लिया मुस्लिम ऐंगल

हिंदू- मुस्लिम के नाम पर समाज का बंटवारा किस हद तक हो गया है इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि हाल के वर्षों में क्रिएटिव सोच के साथ बनाए गये सर्फ एक्सेल और तनिष्क के विज्ञापन भी हिंदू - मुस्लिम ऐंगल से देखे गये और इनका जमकर विरोध हुआ। इसके साथ ही हाल के दिनों में फिल्में भी हिंदू - मुस्लिम ऐंगल से बन और देखी जा रही हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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