परमाणु हथियार के पहले इस्तेमाल नहीं करने की भारतीय नीति को बदलने का संकेत देकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल तो यह है कि क्या भारत पाकिस्तान को चेतावनी देना चाहता है? पाकिस्तान की ऐसी कोई नीति नहीं नहीं है। इसके उलट वह कई बार भारत को परमाणु हमले की धमकी खुले आम दे चुका है। बदलते भारत-पाक रिश्तों के बीच क्या दिल्ली पाकिस्तान को यह बताना चाहता है कि वह जैसे को तैसा के व्यवहार के लिए तैयार रहे? या इसके उलट दिल्ली पाकिस्तान के जाल में जानबूझ कर फँस गया है?
राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को राजस्थान के पोकरण में कहा, 'पोखरण वह इलाक़ा है, जो भारत को परमाणु ताक़त बनाने की अटल जी के पक्के निर्णय का साक्षी बना, इसके बावजूद भारत पहले इस्तेमाल नहीं करने की नीति का पालन सख़्ती से करता आया है। भविष्य में क्या होगा, यह परस्थितियों पर निभर करता है।'
रक्षा मंत्री ने एक झटके में भारत का पूरी युद्ध नीति और परमाणु नीति बदल कर रख दी। भारत को शांतिप्रिय और ज़िम्मेदार देश माना जाता है। यह माना जाता है कि भारत ने किसी पर हमला नहीं किया है और सिर्फ़ हमले का जवाब देता आया है। इसी तरह यह माना जाता है कि इसकी परमाणु नीति अनुकरणीय है क्योंकि यदि सारे देश इसी नीति पर चलें तो कभी परमाणु युद्ध होगा ही नहीं। क्या है भारत की परमाणु नीति, एक नज़र डालते हैं।
परमाणु नीति क्या है?
- भारत युद्ध की स्थिति में भी पहले परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं करेगा। यह सिर्फ़ पलट वार करने के लिए इसका इस्तेमाल करेगा।
- परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने की अनुमति सिर्फ़ नागरिक प्रतिनिधि ही दे सकेंगे और वह परमाणु कमान अथॉरिटी के ज़रिए ही देंगे।
- परमाणु कमान अथॉरिटी में एक राजनीतिक परिषद और एक कार्यकारी परिषद यानी एग़्जक्यूटिव अथॉरिटी होगी। राजनीतिक परिषद के प्रमुख प्रधानमंत्री होंगे।
- परमाणु ग़ैर-परमाणु देशों के ख़िलाफ़ परमाणु हथियार का प्रयोग किसी सूरत में नहीं करेगा। भारत परमाणु और मिसाइल से जुड़ी चीजों और प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण रखेगा। भारत परमाणु प्रयोगों पर रोक लागू रखेगा।
- भारत विखंडनीय पदार्थों से जुड़े समझौते यानी फ़िसाइल कटऑफ़ ट्रिटी पर बातचीत जारी रखेगा। भारत परमाणु हीन विश्व के लक्ष्य को हासिल करने के प्रति वचनबद्ध है।
- यह अंतरराष्ट्रीय, ग़ैर भेदभाव वाले परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति कृतसंकल्प है।
बीजेपी के घोषणापत्र में था!
इस परमाणु नीति से हटे की बात बीजेपी ही करती आई है। ऐसी बात करने वाले पहले व्यक्ति राजनाथ सिंह नहीं है। पार्टी की यह औपचारिक नीति रही है कि परमाणु नीति की समीक्षा की जाएगी और उसे ज़रूरत के मुताबिक ढाला जाएगा, यानी उसे बदला जाएगा।
साल 2014 के बीजेपी के चुनाव घोषणापत्र में कहा गया था कि पार्टी की सरकार बनी तो वह परमाणु नीति का विस्तार से अध्ययन करेगी, उसे अपडेट करेगी और समय के मुताबिक़ उसमें ज़रूरी बदलाव भी करेगी।
लेकिन उसके तरन्त बाद नरेंद्र मोदी ने कहा कि पहले परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं करना हमारी 'सांस्कृतिक विरासत' है। मोदी उस समय तक एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बन चुके थे। मोदी ने 2019 लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कहा था, 'हमने परमाण बम कोई दीवाली के लिए तो बनाया नहीं है।' लेकिन उस बयान को चुनावी फ़ायदा उठाने के लिए कहा गया एक राजनीतिक जुमला माना जा सकता है।
मोदी सरकार के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने 2016 में इस नीति का विरोध किया था, लेकिन यह भी कहा था कि यह उनकी निजी राय है।
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ढेर सारे लोग यह क्यों कहते हैं कि भारत की नीति पहले परमाणु प्रयोग की नहीं है? मैं क्यों अपने आप को इससे बाँध कर रखूँ...मैं कहूं कि मैं ज़िम्मेदार परमाणु ताक़त हूँ और इसका इस्तेमाल ग़ैर-ज़िम्मेदारी से नहीं करूँगा?
मनोहर पर्रीकर, पूर्व रक्षा मंत्री
बाद में उन्होंने परमाणु नीति बदलने से इनकार किया था और यह कहा था कि यह निजी राय है। इसके पहले नेशनल सुरक्षा सलाहकार परिषद (एनएसएबी) के प्रमुख श्याम सरण ने परमाणु सिद्धांत पर काफ़ी कड़ी बात कही थी।
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भारत पहले परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं करेगा। पर यदि इस पर परमाणु हमला हुआ तो यह बदले की कार्रवाई करेगा और वह कार्रवाई इतनी व्यापक स्तर पर होगी और इस तरह होगी कि विरोधी को इतना नुक़सान पहुँचाएगी कि वह इसे झेल नहीं सकेगा।
श्याम सरण, पूर्व नेशनल सुरक्षा सलाहकार परिषद प्रमुख
पाकिस्तान उठाएगा फ़ायदा?
पाकिस्तान ने कभी भी पहले परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करने की बात नहीं कही है। उसकी नीति इस मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाए रखने की। इसलामाबाद बार-बार परमाणु हथियारों का प्रचार कर भारत को ब्लैकमेल करता रहा है। वह बार-बार कहता है कि कश्मीर एक सुलगता हुआ मुद्दा है और दोनों देशों के पास परमाणु बम है तो कभी कश्मीर की वजह से दुनिया में परमाणु युद्ध भी हो सकता है।
पाकिस्तान राजनाथ सिंह के बयान का भरपूर फ़ायदा उठा सकता है। वह कह सकता है कि हम तो कहते ही आए हैं कि कश्मीर सुलगता हुआ विवाद है और अब भारत ने परमाणु बम की धमकी देकर हमारी आशंका को यकीन में बदल दिया है।
सवाल यह भी उठता है कि भारत को परमाणु नीति बदलने की बात कहने की ज़रूरत ही क्या थी? एक तो युद्ध की रणनीति जितनी गोपनीय रहे, उतना अच्छा है। दूसरे, जिस समय पाकिस्तान कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उछाल रहा हो, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस पर बैठक हो रही हो, उसी दिन, ठीक उसी समय इस तरह की बात कहना पाकिस्तान के हाथों खेलना है, उसके जाल में जानबूझ कर फँसना है। पाकिस्तान इस पर क्या कहता है, यह देखना दिलचस्प होगा।
राजनाथ सिंह के बयान पर चीन भी तिलमिला सकता है क्योकि वह भी परमाणु संपन्न है, उसने भी पहले परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करने की बात कह रखी है। वह पाकिस्तान का मित्र है और कश्मीर के एक हिस्से पर उसका भी दावा है। वह अक्साई चिन को अपना कहता है, लद्दाख को दक्षिण तिब्बत कहता हुआ उस पर दावा भी ठोकता है। देश को भले ही कूटनीतिक स्तर पर नुक़सान हुआ हो, देश चलाने वाली पार्टी को फ़ायदा हो सकता है।
सत्तारूढ़ बीजेपी को राजनीतिक लाभ ज़रूर मिल सकता है। इससे उसकी राष्ट्रवादी छवि और मजबूत होगी। अब वह ज़्यादा ज़ोर देकर कह सकता है कि हम किसी से डरते नहीं, किसी की परवाह नहीं करते। अब वह कह सकता है, जो काम 70 साल में नहीं हुआ, मोदी जी ने कुछ दिनों में ही कर दिखाया। पर क्या परमाणु हथियार इसी लिए बनाए गए थे?
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