लीजिए, यही वह आँकड़ा है जिसे मोदी सरकार छुपा रही थी। देश में बेरोज़गारी 45 साल में सबसे ज़्यादा हो गई है। और बेरोज़गारी बढ़ने की यह दर पिछले आँकड़े के मुक़ाबले तीन गुना ज़्यादा है।
विडंबना यह है कि 2014 में अपनी चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी हर साल दो करोड़ नये रोज़गार देने का झन्नाटेदार वादा कर रहे थे। लेकिन हुआ बिलकुल उलटा। उनके शासन के पिछले पाँच सालों में नये रोज़गार तो पैदा हुए नहीं, बेरोज़गारी ज़रूर तीन गुना बढ़ गई।
- मोदी सरकार नहीं चाहती थी कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बेरोज़गारी की ऐसी ख़राब तसवीर सामने आये। इसीलिए वह एनएसएसओ यानी नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस की यह रिपोर्ट जारी नहीं करना चाहती थी। इसी कारण नेशनल स्टटिस्टिक्स कमीशन के कार्यवाहक अध्यक्ष सहित दो सदस्यों ने सोमवार को इस्तीफ़ा दे दिया।
लेकिन अंग्रेज़ी दैनिक बिज़नेस स्टैंडर्ड ने एनएसएसओ के आँकड़े छाप दिये हैं। एनएसएसओ के आँकड़े हर पाँच साल में एक बार आते हैं। एनएसएसओ देश भर में सर्वेक्षण कर रोज़गार, शिक्षा, ग़रीबी, स्वास्थ्य और कृषि की स्थिति पर रिपोर्ट देता है।
आइए हम आपको बताते हैं कि एनएसएसओ की रिपोर्ट में मोटे तौर पर क्या आँकड़े हैं जिससे मोदी सरकार परेशान है?
एनएसएसओ की अप्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 में बेरोज़गारी दर 6.1 फ़ीसदी रही। यह 1972-73 के बाद सबसे ज़्यादा है। इससे पहले के वित्तीव वर्ष 2011-12 में बेरोज़गारी दर सिर्फ़ 2.2 फ़ीसदी रही थी।
सर्वे की रिपोर्ट इसलिए भी काफ़ी अहम है कि नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई नोटबंदी के बाद किसी सरकारी एजेंसी द्वारा रोज़गार पर यह पहली विस्तृत रिपोर्ट है। तब नोटबंदी के बाद कई क्षेत्रों में व्यापारिक इकाइयों के बंद पड़ने की ख़बरें आई थीं। विपक्ष भी भारी संख्या में नौकरियाँ घटने का आरोप लगाता रहा है।
आँकड़े सत्यापित नहीं : नीति आयोग
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने बेरोज़गारी पर इन आँकड़ों को सत्यापित नहीं बताया है। उन्होंने कहा, 'अब डाटा जुटाने का तरीक़ा अलग है। नये सर्वे में हम कम्प्यूटर के ज़रिये लोगों से व्यक्तिगत सर्वे कर रहे हैं। दो अलग-अलग डाटा सेट की तुलना करना सही नहीं है। यह डाटा सत्यापित नहीं है। इस रिपोर्ट को अंतिम मान लेना सही नहीं है। सरकार ने इस डाटा को जारी नहीं किया है, क्योंकि अभी यह प्रक्रिया में है। जब डाटा तैयार हो जाएगा तो हम इसको जारी कर देंगे।'
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