कोरोना संकट के कारण किये गये संपूर्ण लॉकडाउन की सबसे ज़्यादा मार दिहाड़ी मजदूरों और छोटे काम-धंधों में लगे लोगों पर पड़ी है। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, मुंबई, पुणे, पिंपरी-चिंचवाड़ और अन्य औद्योगिक इलाक़ों में लाखों दिहाड़ी मजदूर राशन की समस्या से जूझ रहे हैं। एक तो इन लोगों के पास काम नहीं है और दूसरा राशन कार्ड भी नहीं हैं। ऐसे में ये लोग सामाजिक संस्थाओं के द्वारा दिये गये भोजन पर ही निर्भर हैं। यही हाल देश के बाक़ी प्रदेशों में रह रहे दिहाड़ी मजदूरों का भी है। चाहे वह पंजाब हो या दक्षिण के राज्य।
गोरेगांव के संतोष नगर में रहने वाले 45 साल के संजय सिंह एक छोटे कमरे में 9 अन्य लोगों के साथ रहते हैं। इनके पास राशन खरीदने के पैसे नहीं हैं। एक संस्था इन दिनों इन लोगों को खिचड़ी बांट रही है। लेकिन संजय कहते हैं कि उन्हें पूरा राशन चाहिए जिससे वे कुछ और खाना बना सकें। संजय मूल रूप से बिहार के अररिया के रहने वाले हैं। इसी इलाक़े में 60 लोग ऐसी ही मुश्किल में हैं और बीते 12 दिनों से बिना काम के हैं।
बांद्रा के खेरवाड़ी इलाक़े में लगभग 400 मजदूरों के पास काम नहीं है और वे भोजन के लिये स्वयंसेवी संस्थाओं पर ही निर्भर हैं। इसी तरह नवी मुंबई के खोपोली, ऐरोली में 300 लोग ऐसे हैं, जो पिछले 12 से 15 दिनों से बिना काम के बैठे हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि 1 अप्रैल से 80 करोड़ ग़रीब परिवारों को हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल मिलेगी। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार 3 महीने तक यह राशन देगी। लेकिन दूसरे प्रदेशों में काम कर रहे लाखों दिहाड़ी मजूदर, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उन्हें यह अनाज कैसे मिलेगा।
इस तरह के हालात निश्चित रूप से चिंताजनक हैं और काम न होने और खाने की दिक्कत के कारण ही दिहाड़ी मजदूर बीते कुछ दिनों में महानगरों से गांवों की ओर पलायन करने के लिये मजबूर हुए हैं।
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