विपक्षी गठबंधन इंडिया ने 26 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है। हालांकि इसे लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने पेश किया है लेकिन 26 दलों के इंडिया का उन्हें समर्थन हासिल है। इसी तरह केसीआर की पार्टी बीआरएस ने भी अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। बीआरएस इंडिया में शामिल नहीं है।
क्या है इसकी शर्तें
अविश्वास प्रस्ताव दरअसल, एक ऐसा संसदीय हथियार है जिसका इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया जाता है कि सत्तारूढ़ सरकार के पास अब लोकसभा में बहुमत नहीं है। यदि अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाता है तो सरकार गिर जाती है। अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। इसे सदन शुरू होने के समय से एक घंटा पहले लोकसभा स्पीकर के पास पेश किया जाता है।
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इसके साथ शर्त यह है कि सदन के कम से कम 50 सदस्यों का प्रस्ताव को समर्थन हो। उसके बाद ही लोकसभा स्पीकर प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार करने के लिए तैयार होते हैं। अगर अविश्वास प्रस्ताव को 50 लोकसभा सांसदों का समर्थन नहीं है तो नोटिस खारिज कर दिया जाता है। एक बार जब 50 सांसदों का समर्थन तय हो जाता है, तो लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के अनुसार, अध्यक्ष को नोटिस स्वीकार करने के 10 दिनों के भीतर प्रस्ताव पर चर्चा के लिए एक तारीख तय करनी होती है। बहस के बाद प्रस्ताव को वोटिंग के लिए रखा जाता है। यदि प्रस्ताव बहुमत से पारित हो जाता है (सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले 50 प्रतिशत सदस्य) तो सरकार गिर जाती है।
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अविश्वास प्रस्तावों ने बहस के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की आजादी के बाद ऐसे 27 प्रस्ताव लाए जा चुके हैं। आधे से ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना अकेले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। हालाँकि, केवल दो सरकारों को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटाया गया है। इन प्रस्तावों में से पहला 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के खिलाफ था और दूसरा अविश्वास प्रस्ताव 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ था।
2018 में पीएम मोदी की सरकार के खिलाफ टीआरएस ऐसा प्रस्ताव लाई थी। इसे अन्य विपक्षी दलों का समर्थन था लेकिन अविश्वास प्रस्ताव 126 वोटों से गिर गया था।
क्या मौजूदा अविश्वास प्रस्ताव सफल होगा?
लोकसभा में संख्या के आधार पर बीजेपी 301 सीटों के साथ प्रमुख स्थान पर है। सहयोगियों और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ उसकी ताकत बढ़कर 340 वोटों तक पहुंच जाती है।
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हालांकि इस तादाद में वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी, बीएसपी, अकाली दल और जेडी (एस) जैसे एनडीए के मित्र दल शामिल नहीं है। इंडिया गठबंधन और अन्य विपक्षी दल लोकसभा में 149 वोट तक जुटा सकते हैं।
इस बार अविश्वास प्रस्ताव का मकसद सरकार मोदी सरकार गिराना नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को घेरकर मणिपुर समेत तमाम मुद्दों पर बहस कराना है। प्रधानमंत्री को विपक्ष के आरोपों का जवाब देने के लिए संसद में आना होगा और बोलना भी होगा। पीएम मोदी अभी तक संसद में मणिपुर पर बयान देने से कन्नी काट रहे हैं।
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