कोरोना वायरस का एक और नया स्ट्रेन गंभीर चिंता पैदा करने वाला हो सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी यानी एनआईवी पुणे ने ब्रिटेन और ब्राज़ील से भारत आने वाले यात्रियों के सैंपल में जीनोम सिक्वेंसिंग के ज़रिए एक नये स्ट्रेन का पता लगाया है। संकेत मिले हैं कि इस नये वैरिएंट से ज़्यादा गंभीर लक्षण दिखते हैं।
एनआईवी की इस ताज़ा रिपोर्ट से इसलिए चिंता पैदा होती है कि भारत में सबसे पहले मिले दूसरे स्ट्रेन बी.1.617 को कोरोना की दूसरी लहर के लिए ज़िम्मेदार माना जा रहा है। दूसरी लहर में भारत में कोरोना बेकाबू हो गया था और हर रोज़ 4 लाख से ज़्यादा केस और 4500 से ज़्यादा मौतें होने लगी थीं। दुनिया भर में यह रिकॉर्ड है। श्मशान-कब्रिस्तानों में शवों की कतारें लग गई थीं। गंगा नदी में हज़ारों लाशें तैरती हुई और रेत में दबाई हुई मिली थीं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी पुणे की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन व ब्राज़ील से आने वाले यात्रियों में बी.1.1.28.2 वैरिएंट मिले हैं। 'टीओआई' की रिपोर्ट के अनुसार, बीमारी की स्थिति के मूल्यांकन के निष्कर्ष रोग की गंभीरता बढ़ी हुई दिखाते हैं। इसके निष्कर्ष इस नये स्ट्रेन पर वैक्सीन की प्रभाविकता की जाँच की ज़रूरत की ओर भी इशारा करते हैं। इसके अध्ययन के निष्कर्ष को ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन में कहा गया है कि बी.1.1.28.2 स्ट्रेन से शरीर के वजन में कमी, साँस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में गंभीर दिक्कतें आ रही हैं। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इस स्ट्रेन पर जीनोमिक निगरानी की ज़रूरत है और इसके अनुसार ही इससे बचने की तैयारी किए जाने की ज़रूरत है।
बता दें कि जीनोम सिक्वेंसिंग प्रयोगशालाएँ ऐसे म्यूटेंट पर नज़र रख रही हैं जो संक्रमण को तेज़ी से फैलाने की क्षमता रखते हैं। इस काम में लगी देश की 10 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं ने अब तक क़रीब 30,000 नमूनों की सिक्वेंसिंग की है। सरकार ने अब ऐसी प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाकर 18 कर दी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज़्यादा से ज़्यादा जीनोम सिक्वेंसिंग पर जोर दिया जा रहा है ताकि नये मिलने वाले स्ट्रेन की घातकता को पहचान कर उसको फैलने से रोकने के प्रभावी तरीक़े समय पर अपनाएँ जा सकें।
भारत में इससे पहले जो घातक नया स्ट्रेन मिला था उसकी पहचान बी.1.617 के रूप में की गई थी। कुछ रिपोर्टों में आरोप लगाया गया कि विशेषज्ञों ने इसको लेकर चेताया था लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया। इस पर त्वरित क़दम नहीं उठाए गए और इसी का नतीजा हुआ कि दूसरी लहर बेकाबू हो गयी थी।
वैसे, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बी.1.617 को चिंतित करने वाले स्ट्रेन की श्रेणी में रखा है। पिछले हफ़्ते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने कहा कि भारत में मिले वैरिएंट में से सिर्फ़ एक स्ट्रेन ही चिंतित करने वाला है। इसे ही भारत में दूसरी लहर में तेज़ी से संक्रमण के लिए ज़िम्मेदार माना गया। दुनिया भर में इस तरह के ख़तरनाक वैरिएंट चार हैं। डब्ल्यूएचओ की यह रिपोर्ट तब की है जब एनआईवी की ओर से नये स्ट्रेन बी.1.1.28.2 का खुलासा नहीं किया गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले भारत के इस मूल वैरिएंट को ही 'वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न' यानी 'चिंता वाला वैरिएंट' बताया था लेकिन बाद में इसने साफ़ किया कि इसमें से बी.1.617.2 ही 'चिंता वाला वैरिएंट' है। बाक़ी वैरिएंट में इतना ख़तरा नहीं है जितना कि इस बी.1.617.2 वाले में। इसी कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वैरिएंट के ख़तरों पर ज़्यादा पैनी नज़र रख रहा है और इस पर अपेक्षाकृत ज़्यादा शोध भी किया जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार फ़िलहाल दुनिया में 4 वैरिएंट को 'वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न' बताया गया है। ये चारों वैरिएंट सबसे पहली बार यूके, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और भारत में मिले।
डब्ल्यूएचओ ने भारत में मिले बी.1.617.2 वैरिएंट को डेल्टा नाम दिया है। भारत में ही सबसे पहले मिले बी.1.617.3 को वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट बताया गया है और इसको कप्पा नाम दिया गया है।
'चिंता वाले वैरिएंट' में शामिल यूके में मिले वैरिएंट को अल्फा, दक्षिण अफ्रीका में मिले वैरिएंट को बीटा और ब्राज़ील में मिले वैरिएंट को गामा नाम दिया गया है। इसके अलवा 'वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट' में 6 वैरिएंट हैं और इन्हें भी अलग-अलग नाम दिया गया है जिसमें से एक भारत में मिले कप्पा वैरिएंट भी है।
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