ऐसे समय जब ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित मामले भारत में भी पाए जाने लगे हैं और कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों की तादाद बढ़ने लगी है, मास्क का प्रयोग बहुत ही कम हो गया। हालत इतनी बुरी हो गई है कि भारत को 'ख़तरनाक क्षेत्र' यानी 'डेंजर ज़ोन' मान लिया गया है।
खुद सरकारी एजेन्सी नीति आयोग ने माना है कि कोरोना की वजह से मास्क का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 60 प्रतिशत से भी कम हो गई है और देश 'ख़तरनाक क्षेत्र' बन गया है।
नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वी. के. पाल ने इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स के आँकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि,
“
हम कोरोना की पिछली लहर से बदतर स्थिति में पहुँच गए हैं। हम तकनीकी रूप से एक बार फिर ख़तरनाक क्षेत्र बन गए हैं। रोग के रोकथाम के नज़रिए से हम पहले से निचले स्तर और अस्वीकार्य स्तर पर हैं।
डॉक्टर वी. के. पाल, सदस्य, नीति आयोग
'मास्क छोड़ने का समय नहीं'
उन्होंने कहा, "वैज्ञानिक समुदाय के साथ ही हम भी यह चेतावनी दे रहे हैं कि मास्क छोड़ देने का समय अभी भी नहीं आया है।"
नीति आयोग के इस सदस्य ने सामाजिक टीकाकरण पर ज़ोर दिया कि जिन लोगों ने टीकाकरण करवा लिया है, उन्हें भी मास्क का इस्तेमाल करते रहना चाहिए।
इंस्टीच्यूट ऑफ़ हेल्थ मेट्रिक्स के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2020 के बाद से ही मास्क का इस्तेमाल करने वालों की संख्या गिरती चली गई और फरवरी 2021 में यह 60 प्रतिशत से भी नीचे चली गई।
ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले
बता दें कि देश में अब तक ओमिक्रॉन वैरिएंट के 33 मामलों की पुष्टि हुई है।ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच मास्क का इस्तेमाल कम किए जाने और सुरक्षा उपायों में ढील दिए जाने को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेताया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार को अपनी ब्रीफिंग में कहा कि देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के लगभग 25 मामलों का पता चला है और सभी में हल्के लक्षण पाए गए हैं। हालाँकि इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में 7 और नये मामले की पुष्टि की।
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इस तरह महाराष्ट्र में अब कुल 17 मामले आ चुके हैं और इसके अलावा राजस्थान में नौ, गुजरात में तीन, कर्नाटक में दो और दिल्ली में दो मामलों की पुष्टि हुई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अग्रवाल ने डब्ल्यूएचओ की चेतावनी का हवाला देते हुए कहा कि 'टीकाकरण के अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को बनाए रखा जाना चाहिए। पर्याप्त सावधानियाँ बरती जानी चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों में ढिलाई के कारण यूरोप में कोरोना के मामलों में वृद्धि हुई।'
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