राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी यानी एनआईए ने भीमा कोरेगाँव मामले में अमेरिकी डिजिटल फ़ोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसलटिंग के साक्ष्यों को मानने से इनकार कर दिया है।
उसने अदालत में कहा है कि जब मामला न्यायालय के विचाराधीन है और मुक़दमा चल ही रहा है, इस अमेरिकी कंपनी का कोई क़ानूनी अधिकार या वैधता नहीं है कि वह इस तरह के साक्ष्य पेश करे।
भीमा कोरेगाँव मामले में गिरफ़्तार रोना विल्सन ने यह आरोप लगाया है कि उनके लैपटॉप बाहर से हमला कर उसके अंदर फ़ाइल डाले गए और उस आधार पर उन्हें फंसाया गया। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस इससे इनकार करती है।
क्या कहना है महाराष्ट्र-एनआईए का?
एनआईए ने हाई कोर्ट में कहा कि पुणे पुलिस ने जाँच के जो तौर-तरीके दूसरे संदिग्धों के लिए अपनाए, वे ही रोना विल्सन के लिए भी अपनाए, उनके लिए कुछ अलग से नहीं किया गया।
यह मामला जनवरी 2020 में राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी (एनआईए) को सौंप दिया गया। एनआईए का कहना है कि ख़ुद रोना विल्सन के मुताबिक़ जिस समय उनके लैपटॉप पर हमला हुआ था, उसने उस मामले की जाँच शुरू भी नहीं की थी।
एनआईए ने कहा कि चार्जशीट में आर्सेनल कंसलटिंग के साक्ष्यों को शामिल नहीं किया गया, लिहाज़ा, अब उस पर विचार नहीं किया जा सकता है। उसने रोना विल्सन की ज़मानत याचिका खारिज कर देने की अपील की।
इसके साथ ही एनआईए का कहना है कि वह माओवादी हिंसा से जूझ रही है और नक्सलियों की भूमिका की जाँच कर रही है, यह मामूली बात नहीं है। यह दूसरे मामलों से हट कर है क्योंकि देश माओवादी हिंसा से लड़ रहा है।
इसके ठीक पहले आर्सेनल कंसलटिंग ने यह भी कहा था कि भीमा कोरेगाँव मामले के एक और संदिग्ध सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर को भी हैक किया गया था और उसमें मैलवेअर डाला गया था।
कंप्यूटर हैक
आर्सेनल कंसलटिंग के अनुसार, ये मैलवेअर सुधा भारद्वाज और फ़ादर स्टैन स्वामी के कंप्यूटरों में भी डाले गए थे, उनके कंप्यूटर भी हैक किए गए थे।
बता दें कि स्टैन स्वामी को ज़मानत नहीं दी गई थी और पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई।
दूसरी ओर, एनआईए ने नक्सली हिंसा के आधार पर ही गाडलिंग और सुधीर धवले याचिका को खारिज करने की अपील अदालत से की। इन दोनों अभियुक्तों ने उनके मामलों की जाँच एनआई को सौंपने का विरोध किया था।
उन्होंने कहा था कि एफ़आईआर दर्ज होने के दो साल बाद नई एजेंसी को मामला सौंपने की ज़रूरत नहीं है।
रोना विल्सन का मामला
बता दें कि इसके पहले रोना विल्सन के वकील सुदीप पसबोला ने अमेरिकी अख़बार 'वाशिंगटन पोस्ट' में छपी खबर के हवाले से अदालत से कहा था कि रोना को फँसाया गया है, वे निर्दोष हैं।
'वाशिंगटन पोस्ट' की खबर में कहा गया था कि रोना विल्सन के लैपटॉप पर साइबर हमला कर बाहर से आपत्तिजनक सामग्री डाली गई और उस आधार पर ही उनके ख़िलाफ मामला चलाया गया।
विल्सन के वकील ने अमेरिका स्थित एक डिजिटल फोरेंसिक लैबोरेटरी आर्सेनल कंसलटिंग से लैपटॉप की जाँच करवाई तो साइबर हमले की बात का खुलासा हुआ। 'वाशिंगटन पोस्ट' ने ख़बर छापने के पहले तीन निष्पक्ष लोगों से जाँच करवाई और उस रिपोर्ट को सही पाया।
हुआ क्या था?
6 जनवरी, 2018 को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, सुधीर धवले, शोमा सेन और महेश राउत को देश के अलग-अलग हिस्से से गिफ़्तार किया। उन पर 1 जनवरी, 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में भड़काऊ भाषण देने का मामला लगाया। उन पर 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट' (यूएपीए) के तहत मामला चलाया गया।
इसके बाद 28 अगस्त, 2018, को पुलिस ने और पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया। ये थे, अकादमिक जगत की हस्ती सुधा भारद्वाज, जनकवि वरवर राव, दिल्ली के मानवाधिका कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वरनॉन गोंज़ालविस और अरुण फ़रेरा। इन लोगों पर भी भीमा कोरेगाँव में हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था।
इस मामले में कुल 16 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है, इनमें से स्टैन स्वामी की मौत हो गई है।
पुलिस ने कहा कि इन लोगों को 'प्रतिबंधित माओवादी गुटों से साँठगाँठ रखने' और 31 दिसंबर, 2017, को 'हिंसा भड़काने के मामले में शामिल' होने की वजह से गिरफ़्तार किया गया है।
बता दें कि महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में दलित संगठन एल्गार परिषद के कार्यक्रम में हिंसा हुई थी। भीमा कोरेगाँव में हर साल दलित एकत्रित होते हैं और 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों पेशवाओं की हार पर जश्न मनाते हैं। इस बार उस घटना के 200 साल पूरे हो रहे थे और इसलिए कार्यक्रम भी बड़ा था।उस युद्ध में दलित महार जाति के मुट्ठी भर सैनिकों ने पेशवाओं की बड़ी सेना को शिकस्त दी थी। पेशवाओं के समय दलितों पर सामाजिक अत्याचार होते थे और वे पेशवाओं की पराजय को अपनी मुक्ति की ओर बढ़ा हुआ कदम मानते हैं।
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