सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद की सुनवाई के लिए शुक्रवार को पांच जजों के नए खंडपीठ का गठन कर दिया। यह संविधान खंडपीठ होगा। इसमें जस्टिस रंजन गोगोई, एस. ए. बोबडे, डी. वाई. चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. ए. नज़ीर हैं। जस्टिस यू. यू. ललित के ख़ुद को अलग करने के बाद नए खंडपीठ का गठन किया गया।
मामले की सुनवाई 10 जनवरी को करने वाले जस्टिस एन. वी. रमण भी इस बेंच में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस में कहा है कि इस मामले की सुनवाई 29 जनवरी को होगी। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के समय बनी तीन सदस्यों की बेंच में भी जस्टिस नज़ीर और जस्टिस भूषण थे। बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने कुछ संगठनों की इस माँग को ठुकरा दिया था कि राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद का जल्द निपटारा किया जाए और इसकी सुनवाई प्राथमिकता के साथ की जाए।
विवाद के केंद्र में 2.7 एकड़ का ज़मीन का टुकड़ा है, जिस पर बनी मसजिद को विश्व हिन्दू परिषद के उकसावे पर उग्र हिन्दुओं की भीड़ ने 6 दिसंबर 1992 को ढ़हा दिया था। इस मामले के तीन दावेदार हैं-राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सेंट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड। यह मूलत: भूमि विवाद है और सुप्रीम कोर्ट ने कह रखा है कि वह इसकी सुनवाई टाइटल सूट के रूप में ही करेगा। लेकिन कुछ संगठन इसे हिन्दू-मुसलिम विवाद के रूप में पेश करते आए हैं।
इसके पहले 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फ़ैसले में विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बाँट कर तीन दावेदारों को देने का आदेश दिया था। पर उसे किसी ने नहीं माना और सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए। यह एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी के कुछ लोग सरकार पर यह दबाव बना रहे हैं कि अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार किए बग़ैर ही अध्यादेश लाकर या संसद में क़ानून बना कर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ किया जाए। नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अदालत की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही संसद का रास्ता चुना जा सकता है। बहरहाल, यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में है।
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