नया संसद भवन और विवाद
नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा का हिस्सा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को इसका शिलान्यास किया था। उस समय देश में कोरोना चरम पर था। विपक्ष ने उस समय भी कहा था कि इस पर खर्च किए जा रहे करोड़ों रुपये गैर जरूरी हैं। बताते चलें कि नए संसद भवन के बनाने पर करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।सेंट्रल विस्टा परियोजना राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के बीच का क्षेत्र है, जहां केंद्र सरकार से संबंधित सभी महत्वपूर्ण भवन स्थित हैं। इस परियोजना के दो मुख्य भाग हैं, एक नया संसद भवन और केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों को एक स्थान पर लाने के लिए एक नया सचिवालय परिसर। तीसरे भाग में राजघाट और उसके आसपास के क्षेत्र का विकास शामिल है, जो आम जनता के लिए उपलब्ध है, जिसमें सार्वजनिक सुविधाओं का विकास भी शामिल है। इस परियोजना में क्षेत्र में कुछ गैर-विरासत भवनों को ध्वस्त करना और उनके स्थान पर नए भवनों का निर्माण शामिल है।
नया संसद भवन और उसकी जरूरत
सेंट्रल विस्टा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नया संसद भवन है। नए संसद भवन की जरूरत की कई वजहें हैं। सबसे खास है, संसद के आकार का विस्तार। समय समय पर हुए या आगे होने वाले परिसीमन के मद्देनजर लोकसभा क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है। उसी के मद्देनजर नए संसद भवन का निर्माण किया गया है। लोकसभा क्षेत्रों का अगला परिसीमन 2026 के लिए तय है, जो ज्यादा दूर नहीं है। सांसदों की संख्या पर 50 साल की लंबी रोक के साथ, यह उम्मीद की जाती है कि अब इसे एक बार और स्थगित नहीं किया जाएगा। 1976 के बाद से राज्यों और भारतीय जनसंख्या की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है, और लोकसभा सदस्यों की संख्या में वृद्धि करने की भी फौरन जरुरत है ताकि हर सांसद जनसंख्या के एक तय आकार का प्रतिनिधित्व करे। यह अनुमान लगाया गया है कि लोकसभा की मौजूदा संख्या 543 के वर्तमान से बढ़कर 800 से अधिक हो जाएगी।
लोकसभा की संख्या बढ़ाने से पहले एक बड़ी समस्या है, संसद भवन में लोकसभा हॉल का आकार। वर्तमान सदन में केवल 552 सीटें हैं, कोई नई सीट जोड़ने की गुंजाइश नहीं है। वास्तव में, लोकसभा के पीछे की दीवार को पहले ही गिरा दिया गया था, और इसके बगल के गलियारे को सांसदों के लिए अतिरिक्त कुर्सियों के लिए अधिक जगह बनाने के लिए लोकसभा हॉल में शामिल किया गया था। इसलिए, सभी सांसदों को समायोजित करने के लिए जगह बनाए बिना लोकसभा की ताकत नहीं बढ़ाई जा सकती थी। इसीलिए नए संसद भवन की जरूरत पड़ी।
नए संसद भवन में क्या-क्या
नए संसद भवन में एक लोकसभा हॉल, एक राज्यसभा हॉल, एक आंगन के चारों ओर एक लाउंज और एक केंद्रीय स्थान होगा जिसे संविधान गैलरी कहा गया है। इसमें एक अलग सेंट्रल हॉल नहीं होगा, क्योंकि लोकसभा में संयुक्त सत्र आयोजित करने के लिए बैठने की पर्याप्त क्षमता होगी। त्रिकोणीय भवन में लोकसभा उत्तर-पश्चिम कोने में, राज्यसभा दक्षिण-पश्चिम कोने पर और लाउंज पूर्वी कोने में है। भवन के बाहरी किनारों पर, घरों के आसपास और लाउंज में कार्यालय होंगे। नए लोकसभा हॉल की क्षमता 876 सीटों की है। लेकिन सीटें आकार में बहुत बड़ी हैं, और वे वास्तव में 1350 व्यक्तियों को समायोजित कर सकती हैं। इसलिए, यहां संसद के संयुक्त सत्रों को आसानी से आयोजित किया जा सकेगा। संयुक्त सत्र के लिए अलग हॉल की आवश्यकता अब नहीं होगी।
लोकसभा की तरह ही नए संसद भवन में राज्यसभा भी काफी बड़ी है। इसमें 400 सीटें हैं।
बहिष्कार की खास वजह
नए संसद भवन का जब शिलान्यास हुआ था तो केंद्र की मोदी सरकार ने उस कार्यक्रम में भी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया था। विपक्षी दलों ने कोरोना काल में इसके निर्माण को फिजूलखर्ची यह कहकर बताया था कि अभी जब पुरानी बिल्डिंग से काम चल रहा है तो नए की जरूरत क्या है। वो भी जब देश में भयानक आपदा आई हो। आपदा के बाद भी अभी भी अर्थव्यवस्था की हालत सुधरी नहीं है। लेकिन विपक्ष ने अब जो 28 मई के कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा की है, वो राष्ट्रपति को नहीं बुलाने को लेकर है।Parliament is not just a new building; it is an establishment with old traditions, values, precedents and rules - it is the foundation of Indian democracy. PM Modi doesn’t get that
— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) May 23, 2023
For him, Sunday’s inauguration of the new building is all about I, ME, MYSELF. So count us out
कांग्रेस सहित 19 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की जगह पीएम मोदी द्वारा नई संसद खोलने पर आपत्ति जताई है। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति को उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं करके सरकार पर "बार-बार मर्यादा का अपमान" करने का आरोप लगाया है।
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