नयी शिक्षा नीति 2019 के मसौदे से दक्षिणी राज्यों में एक बार फिर से 60 के दशक जैसा हिंदी विरोधी आंदोलन तो नहीं खड़ा हो जाएगा? यह सवाल इसलिए अहम हो गया है क्योंकि बीजेपी की नयी शिक्षा नीति के मसौदे के ख़िलाफ़ दक्षिण भारत के अधिकतर नेताओं ने विरोध तेज़ कर दिया है। तमिलनाडु में आम लोगों ने भी हिंदी को थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया है और सोशल मीडिया पर भी इसका असर दिखने लगा है। तमिलनाडु ही नहीं, देश के कुछ दूसरे हिस्सों में भी हिंदी पढ़ाने को अनिवार्य किए जाने का विरोध हो रहा है। हालाँकि इस विरोध को शांत करने के लिए केंद्र की बीजेपी सरकार में मंत्री निर्मला सीतारमण और एस. जयशंकर उतर गये हैं, इसके बावजूद विरोध और तेज़ होते जा रहा है। केंद्र सरकार यह भी सफ़ाई दे रही है कि केंद्र का उद्देश्य किसी भाषा को जबरन थोपने का नहीं है।
अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने कहा कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए किसी पर भी दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए और जो लोग अन्य भाषाएँ सीखने के इच्छुक हैं, वह इसे वैसे भी सीख लेंगे।
शशि थरूर ने जताया विरोध
केरल से सांसद और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी कहा कि सरकार का यह कदम घातक साबित हो सकता है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि तीन भाषा के फ़ार्मूले का समाधान इससे भागने से नहीं होगा, बल्कि ठीक से लागू करने से होगा। यह फ़ॉर्मूला 1960 से है लेकिन इसे सही से लागू नहीं किया गया। पत्रकारों के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दक्षिण में अधिकतर लोग दूसरी भाषा के रूप में हिंदी सिखते हैं, लेकिन उत्तर भारत में कोई भी तमिल या मलयालम भाषा नहीं सिखता है।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि अगर वे तीन भाषा की नीति बना रहे हैं तो यह जबरन लागू करने जैसा होगा। उन्होंने कहा, 'क्या हमने हिंदी की माँग की। अगर यह हमारी सहमति के बिना किया जाएगा तो यह जबरन होगा। यह एकतरफ़ा फ़ैसला होगा। हम भी विरोध करेंगे।'
बचाव में सरकार ने दक्षिण भारतीय नेताओं को उतारा
The National Education Policy as submitted to the Minister HRD is only a draft report. Feedback shall be obtained from general public. State Governments will be consulted. Only after this the draft report will be finalised. GoI respects all languages. No language will be imposed
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) June 2, 2019
नई शिक्षा नीति पर क्यों हो रहा है विवाद?
नई शिक्षा नीति 2019 प्रस्ताव की शक्ल में ड्राफ़्ट पेपर है जिसमें शुरुआती शिक्षा से ही 3 भाषाएँ पढ़ाने का प्रस्ताव है। 3 भाषा के पक्ष में प्रमुख तर्क है कि इससे शुरुआती जीवन से ही बच्चों में 'बहुभाषीय संवाद क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। मसौदे के अनुसार ग़ैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेज़ी के साथ हिंदी पढ़ाने की सिफ़ारिश की गई है। हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ कोई तीसरी आधुनिक भारतीय भाषा को पढ़ाने की सिफ़ारिश की गई है।
क्या यह पहली बार हो रहा है विरोध?
हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में बदलने का प्रयास हुआ तो 1965 में हिंदी विरोध काफ़ी तेज़ हो गया। दक्षिणी शहर मदुरै में शुरू हुआ दंगा पूरे मद्रास राज्य में फैल गया। हिंसा, आगजनी और लूटपाट भी हुई। बताया जाता है कि तब क़रीब सत्तर लोगों की मौत हुई थी। स्थिति को शांत करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया कि जब तक ग़ैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेज़ी आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग जारी रहेगी।
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