उग्र हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी भले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपना साबित करने और उनकी विरासत को हड़पने की कोशिश कर रही हो, सच यह है कि मुसलमानों पर सुभाष बाबू की राय बीजेपी की राय से बिल्कुल अलग थी।
'द इंडियन स्ट्रगल'
इसे नेताजी की अधूरी किताब 'द इंडियन स्ट्रगल' में मुसलमानों पर लिखे उनके लेख से समझा जा सकता है। नेताजी ने यूरोप प्रवास के दौरान 1934 में 'द इंडियन स्ट्रगल' नामक किताब लिखनी शुरू की थी। उन्होंने इसकी शुरूआती अध्याय 'भारतीय राजनीति की पृष्ठभूमि' में सांप्रदायिक सद्भाव की बात कही और लिखा कि 'मुसलमान भारत की ज़मीन के कभी अलग न किए जाने वाले हिस्सा हैं।'
हिटलर के जर्मनी में होने के बावजूद वे आर्य रक्त की शुद्धता की किसी तरह के पूर्वग्रह से मुक्त थे।
नेताजी ने अंग्रेज इतिहासकारों की इस प्रस्तावना का विरोध किया कि भारत के लोग क्रूर और वहशी थे जो आपस में लड़ते रहते थे। नेताजी ने भारतीय इतिहास के जिन दो युगों को स्वर्ण युग क़रार दिया, वे थे, गुप्त काल और मुग़ल काल।
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सुख-दुख में साथ
नेताजी ने लिखा था, "मुसलमानों के आने और उनके आगे बढ़ने के साथ ही एक नए तरह का मिश्रण बनने लगा जो आगे चल कर कामयाब रहा।" उन्होंने लिखा,
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"उन्होंने (मुसलमानों ने) हालांकि हिन्दुओं का धर्म स्वीकार नहीं किया, पर भारत को अपना घर बनाया, सामाजिक जीनव में एकाकार हो गए और दुख-सुख में साथ रहे।"
'द इंडियन स्ट्रगल' का अंश
सुभाष बाबू ने लिखा कि हिन्दू-मुसलमानों के सहयोग और सहभागिता से कला और संस्कृति में नई चीजों का विकास हुआ।
मुसलमानों की आर्थिक स्थिति पर चिंता
नेताजी ने मुसलमान शासकों की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने आम जनता के निजी जीव में हस्तक्षेप में नहीं किया और उन्हें अपने ढंग से जीवन जीने दिया।
विदेश जाने के पहले नेताजी ने मुसलमानों के पिछड़ेपन की चर्चा की और उसे दूर करने की कोशिश भी की। कलकत्ता के मेयर के रूप में 1925 में उन्होंने अपने भाषण में कहा कि बंगाली मुसलमानों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और उस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
नेताजी ने कलकत्ता का मेयर रहते हुए एलान किया कि वे आहिरीटोला मुहल्ले के घरों को चौरंगी के संपन्न लोगों के मुहल्ले के घरों की तरह बनवाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने मुसलमानों को उचित रोज़गार देने की बात भी कही।
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हिन्दू-मुसलमान सवाल
नेताजी ने सिर्फ इन बातों का एलान ही नहीं किया, उन्हें लागू करने की कोशिश भी की, पर उन्हें उसके लिए समय नहीं मिला। उन्हें पद से हटना पड़ा और गिरफ़्तार कर लिया गया।
विदेश जाने के बाद भी सुभाष बाबू हिन्दू-मुसलमान सवाल पर विचार करते रहे। जर्मनी से छपने वाली पत्रिका 'विल एंड मैक्ट' में अगस्त 1942 में उनका एक लेख छपा, 'आज़ाद भारत और उसकी समस्याएं'। इसमें उन्होंने ज़ोर देकर लिखा कि भारत में हिन्द-मुसलमान समस्या अंग्रेजी की खड़ी की हुई है और स्वतंत्र होने के बाद यह समस्या नहीं रहेगी।
नेताजी ने मुसलमानों को कभी भी राष्ट्र-विरोधी नहीं माना न ही हिन्दुओं को तरजीह दी। उन्होंने बहुत ही गौरव से कहा थआ कि भारत के मुसलमान देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं।
नेताजी ने अपने लेख 'आज़ाद भारत और उसकी समस्याएं' में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिए ऐसे राज्य की कल्पना की थी जहां 'हर व्यक्ति या समूह की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की गारंटी होगी।'
आज़ाद हिन्द फ़ौज में मुसलमान
नेताजी की धर्मनिरपेक्षता का तारीफ पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना तक ने की थी। आज़ाद हिन्द फ़ौज में ऊँचे पदों पर बड़ी तादाद में मुसलमान अफ़सर थे। नेताजी की सेना और उनकी घोषित स्वतंत्र भारत की सरकार में धर्म, जाति या नस्ल के भेदभाव के बग़ैर ही लोगों को नियुक्त किया गया था।
आज़ाद हिंद फ़ौज में ऊँचे पदों पर काम कर रहे मुसलमान अफ़सरों में लेफ़्टिनेंट कर्नल अज़ीज़. लेफ़्टिनेंट ज़मन कियानी, लेफ़्टिनेंट अहसान क़ादिर, लेफ़्टिनेंट कर्नल शाह नवाज़, लेफ़्टिनेंट नज़ीर अहमद, लेफ़्टिनेंट कर्नल जनाब करीम घनी, जनाब डी. एम. ख़ान प्रमुख थे।
एक ओर नेताजी हिटलर के जर्मनी में रहने के बावजूद आर्य रक्त की शुद्धता को लेकर हर तरह के पूर्वग्रह से मुक्त थे तो दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुले आम आर्य रक्त की शुद्धता की बात करता है और उसे अपनी वैचारिक आधारशिला मानता है।
इसी तरह नेताजी ने मुग़लों की तारीफ की थी, उसे भारत के दो स्वर्ण युगों में एक माना था और कहा था कि मुगलों के आने से कला-संस्कृति का विकास हुआ। उन्होंने साफ कहा कि मुसलमान शासकों ने हिन्दुओं के निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं किया।
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लेकिन आरएसएस मुगलों को आज भी आंक्रांता, हिन्दुओं का दमन करने वाला, भारतीय इतिहास का काला अध्याय मानता है। इस विचारधारा को मानने वाले तमाम संगठन हिन्दुओं के बड़े पैमाने पर ज़बरन धर्म परिवर्तन और मुगल राज में अत्याचार की बात करते हैं।
जहां नेताजी खुले आम हिन्दू-मुसलमान एकीकरण पर ज़ोर देते हैं, कहते हैं कि मुसलमान देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं, वहीं आरएसएस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करता है और कहता है कि जिनकी पुण्यभूमि भारत नहीं है, वे सच्चे भारतीय नहीं हैं। यानी मुसलमान और ईसाई सच्चे भारतीय नहीं हैं।
नेताजी की विचारधार कहीं भी सांप्रदायिक नहीं थी, उसमें हिन्दुओं को तरजीह देने या सर्वश्रेष्ठ मानने की कोई बात नहीं थी। लेकिन उन्हें अपना बताने की कोशिश वे लोग कर रहे हैं जो उग्र हिन्दुत्व की राजनीति करते हैं। नेताजी आज भी पश्चिम बंगाल के आइकॉन हैं। ऐसे में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी उन्हें अपना बता रही है, उनके जन्म दिन को पराक्रम दिवस मना रही है तो ताज्जुब की कोई बात नहीं है।
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