नागरिकता संशोधन क़ानून के बाद अब देश में नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) की चर्चा है। विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना है कि एनपीआर और कुछ नहीं, नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) को लागू करने के लिए लाया गया है जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है। शाह ने कहा है कि एनपीआर और एनआरसी, दोनों ही अलग-अलग क़ानूनों से संचालित होते हैं और एनपीआर के आंकड़ों को एनआरसी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
शाह ने यह भी कहा कि एनपीआर को एनआरसी के लिए इस्तेमाल किये जाने की बातें सिर्फ अफ़वाह हैं। लेकिन अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक ख़बर के मुताबिक़, मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में नौ बार संसद में बताया कि एनआरसी को एनपीआर के आंकड़ों के आधार पर बनाया जाएगा। इसके बाद मोदी सरकार सरकार इसे लेकर फंसती दिख रही है।
एनपीआर को लेकर सरकार का पक्ष
मोदी सरकार का कहना है कि एनपीआर एक डाटाबेस है और इसमें देश के लोगों की नागरिकता का विवरण होता है। गृह मंत्रालय का कहना है कि वह नागरिक देश का व्यक्ति है जो कम से कम पिछले छह महीनों से देश में कहीं पर रह रहा है या या अगले छह महीनों तक किसी दूसरी जगह पर रहने की उसकी योजना है। सरकार के मुताबिक़, एनपीआर नागरिकता अभियान नहीं है, क्योंकि यह विदेशी नागरिकों का भी छह महीने से अधिक समय तक एक इलाक़े में रहने का रिकॉर्ड रखेगा और यही बात एनपीआर को एनआरसी से अलग बनाती है।
मोदी सरकार का कहना है कि एनपीआर उनकी सरकार ने शुरू नहीं किया है। 2004 में यूपीए सरकार ने क़ानून बनाया था, जिसके तहत 2010 में जनगणना के वक्त इस प्रक्रिया को शुरू किया गया और सरकार कुछ नया कार्यक्रम नहीं लाई है। लेकिन विवाद जिस बात को लेकर हो रहा है वह यह है कि सरकार ने यूपीए सरकार के वक़्त एनपीआर की प्रक्रिया में जो 15 सवाल पूछे गए थे, उसमें 8 नए सवालों को जोड़ा गया है। अमित शाह का कहना है कि ये नई बातें एनपीआर में इसलिए जोड़ी गई हैं क्योंकि इनके आधार पर योजनाओं का खाका बनता है।
एनपीआर की योजना को 2009 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने संसद में रखा था। और इसके लिए पहली बार 2010 में 2011 की जनगणना के हाउस-लिस्टिंग चरण के साथ डेटा इकट्ठा किया गया था। 2015 में डोर-टू-डोर सर्वेक्षण करके इस डेटा को अपडेट किया गया था।
2010 में यूपीए सरकार के दौरान एनपीआर में 15 सवाल थे जबकि 2020 की एनपीआर में इनकी संख्या बढ़कर 21 हो गई है। 2010 के एनपीआर में पिता, माता, पति या पत्नी का नाम तीन सवालों में था जबकि 2020 के एनपीआर में इसे एक में ही कर दिया गया है। एनपीआर 2020 को लेकर सवाल उठ रहा है कि इन 8 नए सवालों या बातों को इसमें क्यों शामिल किया गया है।
ये नई बातें हैं -
2- मोबाइल नंबर
3- माता-पिता का जन्म स्थान
4- पिछली जगह का पता
5- पासपोर्ट नबंर (भारतीयों के लिए)
6- वोटर आईडी कार्ड नंबर
7- परमानेंट अकाउंट नंबर
8- ड्राइविंग लाइसेंस नंबर
गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, एनपीआर में पंजीकरण होना ज़रूरी तो है लेकिन पैन, आधार, ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर आई कार्ड के बारे में बताना स्वैच्छिक है। यह भी कहा गया है कि एनपीआर को ऑनलाइन अपडेट करने का विकल्प भी तैयार किया गया है। सरकार ने कहा है कि इसका नागरिकता से कोई संबंध नहीं है।
कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार एनपीआर को एनआरसी के साथ जोड़ रही है, जबकि यूपीए सरकार के समय में ऐसा नहीं किया गया था। पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने कहा, ‘हमने भी 2011 में एनपीआर कार्यक्रम को किया था लेकिन हमने कभी इसे एनआरसी के साथ नहीं जोड़ा।’ अगर इसे एनआरसी के साथ जोड़ा जाता है तो इस पर हमें आपत्ति है।
अब इस बात का जवाब सरकार को देना है कि उसने नई बातों को 2020 के एनपीआर में क्यों शामिल किया है। विपक्ष कह रहा है कि एनपीआर एनआरसी से जुड़ा है जबकि सरकार इससे इनकार कर रही है। ऐसे में निश्चित रूप से स्थिति बेहद उलझाने वाली है और ज़रूरत यह है कि सरकार की ओर से ऐसा स्पष्टीकरण आए जिससे विपक्ष और आम लोगों के मन में उठ रहे सवालों के जवाब मिल सकें।
सवाल यही है कि जो ये 8 नई जानकारियां माँगी गई हैं क्या वे नागरिकता की जाँच करने के लिए नहीं माँगी गई हैं। सरकार पासपोर्ट का नंबर, पैन और ड्राइविंग लाइसेंस नंबर क्यों माँग रही है। इससे जो सवाल लोगों के मन में खड़े हो रहे हैं, उनका जवाब सरकार कैसे देगी।
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर पहले से ही देश भर में बवाल चल रहा है और विपक्षी दलों की राज्य सरकारों ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह स्थिति को स्पष्ट करे लेकिन उसके बयानों से स्थिति उलझती जा रही है और सवाल पर सवाल पैदा हो रहे हैं।
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