अनुच्छेद 370 में बदलाव किए लगभग डेढ़ माह का समय हो चुका है। इस दौरान केंद्र सरकार ने उन सभी लोगों को जम्मू-कश्मीर जाने से रोक दिया, जो वहाँ के हालात के बारे में जानना चाहते थे। 370 में बदलाव से पहले ही केंद्र सरकार ने वहाँ के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को पहले नज़रबंद किया था और बाद में गिरफ़्तार कर लिया गया था। ये तीनों ही जम्मू-कश्मीर के बड़े नेता हैं और इनके इतने लंबे समय तक गिरफ़्तार करके रखने, राज्य में इंटरनेट और टेलीफ़ोन सेवाओं के बंद रहने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।
अब्दुल्ला की रिहाई को लेकर एमडीएमके नेता वाइको ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक यह बात पहुँचना शायद केंद्र सरकार को बेहद नागवार गुज़रा है और उसने कोर्ट में सुनवाई से कुछ ही घंटे पहले फ़ारुक अब्दुल्ला पर और शिकंजा कसते हुए उन पर पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया। वाइको और अब्दुल्ला पुराने दोस्त बताये जाते हैं।
बता दें कि पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत बिना मुक़दमे के किसी भी व्यक्ति को दो साल तक गिरफ्तार या नज़रबंद करके रखा जा सकता है। यह विडंबना ही है कि फ़ारूक अब्दुल्ला को उस पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया गया है जिसे 1970 के दशक में उनके पिता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शेख़ अब्दुल्ला ने मंजूरी दी थी।
सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ को बताया कि केंद्र सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री के आवास को एक सहायक जेल के रूप में तब्दील करने का फ़ैसला किया है। जहाँ अब्दुल्ला को जेल के ही नियमों के मुताबिक़ रहना होगा और एक क़ैदी को जो अधिकार मिलते हैं, वही अधिकार उन्हें दिये जाएँगे। इसके तहत अब्दुल्ला को क़ानूनी सहायता लेने का भी अधिकार रहेगा।
आख़िर केंद्र सरकार फ़ारूक अब्दुल्ला के प्रति इतनी कड़ी कार्रवाई कर क्या संदेश देना चाहती है। इससे पहले जब उन्हें गिरफ़्तार कर उनके घर में रखा गया था, तो वह कम से कम घर के एक कमरे से दूसरे कमरे तक तो जा सकते थे लेकिन अब तो उन्हें श्रीनगर में गुपकार रोड स्थित उनके बंगले के एक कमरे और एक बाथरूम तक सीमित कर दिया गया है। पुलिस ने उनके घर के बाक़ी कमरों को सील कर दिया है और उनके घरेलू कुक को भी हटा दिया है।
सवाल यह है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ इस तरह की कड़ी कार्रवाई का क्या मतलब है। इसके साथ ही कोई भी अबदुल्ला से तब तक नहीं मिल सकता जब तक उसके पास क़ानूनी आदेश न हो।
दवा तो देने दो सरकार!
'द हिंदू' के मुताबिक़, सोमवार से अब्दुल्ला के बंगले की ओर जाने वाली सभी सड़कों को बंद कर दिया गया है। अब्दुल्ला के बगल में ही उनकी बेटी साफ़िया ख़ान का घर है और उन्होंने इस कार्रवाई के विरोध में अपने घर पर काला झंडा लगाया हुआ है। फ़ारूक़ अब्दुल्ला की एक और बेटी हिना अब्दुल्ला ने सरकार से अपील की कि वह दवा देने के लिए साफ़िया को अब्दुल्ला के घर जाने की अनुमति दे।
हिना ने कहा, ‘कोई इस बात पर भरोसा न करे कि फ़ारूक अब्दुल्ला को लोगों से मिलने की अनुमति दी गई है। यहां तक कि उनके बगल में रहने वाली मेरी बहन तक उन्हें देख नहीं सकती और वही उन्हें उनके हर दिन की दवा देने में मदद करती थी। उनकी उम्र 83 साल है। कम से कम उनकी बेटी को तो उन्हें देखने की अनुमति दे दी जाए।’
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से कहा कि वह राज्य में सामान्य स्थिति को जल्द बहाल करे और दो हफ़्ते के बाद उसे रिपोर्ट दे। कोर्ट के दख़ल देने का मतलब है कि इससे यह तय है कि केंद्र सरकार पिछले डेढ़ महीने में कश्मीर के हालात को संभालने में असफल रही है। लेकिन वह अभी भी पूर्व मुख्यमंत्रियों को रिहा करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी है और न ही पूरे राज्य में टेलीफ़ोन और इंटरनेट सेवाओं को खोल सकी है।
बता दें कि पीएसए सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर में ही लागू है जबकि देश के बाक़ी हिस्सों में नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) लगता है।
कश्मीर के आम लोग और राजनीतिक दलों से जुड़े कार्यकर्ता अब्दुल्ला के ख़िलाफ़ केंद्र की इस कार्रवाई से सकते में हैं।
अब्दुल्ला की छवि हमेशा से ही भारत समर्थक रही है और वह कई बार मंचों पर पत्रकारों को भी उनके हिंदुस्तानी होने के बारे में सवाल पूछने पर बुरी तरह झिड़क चुके हैं। अब्दुल्ला ख़ुद के हिंदुस्तानी होने पर गर्व होने की बात कहते रहे हैं।
कांग्रेस ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण
कांग्रेस ने कहा है कि देश की अखंडता के लिए लड़ने वाले अब्दुल्ला को जेल के पीछे डाल दिया गया है और यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि वह सरकार के इस फ़ैसले की निंदा करते हैं।
ऐसे में कश्मीर में हालात कैसे सुधरेंगे, यह बहुत बड़ा सवाल है और सरकार दो हफ़्ते बाद सुप्रीम कोर्ट में क्या जवाब देगी, इसके लिए भी उसे तैयार रहना चाहिए क्योंकि कश्मीर का मुद्दा अब भारत और पाकिस्तान के बीच से निकलकर एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के तमाम देशों तक पहुँच चुका है। या सरकार यह सोचती है कि फ़ारूक अब्दुल्ला के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई कर वह कश्मीर के मसले का समाधान निकाल लेगी।
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