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नसीरुद्दीन शाह के बयान पर क्या सोचते हैं लोग?

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के बयान के बाद कुछ लोग उनके पक्ष में हैं तो कुछ उन्हें देशद्रोही बता रहे हैं। एक पक्ष का कहना है कि उन्होंने सिर्फ़ अपने डर के बारे में बताया है और ऐसा करना सही है। जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि उन्हें अभी ही ऐसा बयान देने की क्या ज़रूरत थी। सत्यहिंदी.कॉम ने इस पर प्रतिक्रियाएँ माँगी थीं। हम इन्हें प्रकाशित कर रहे हैं। पहले पढ़िए नसीरुद्दीन शाह के विरोध में आई प्रतिक्रियाएँ -

प्रोपगैंडा न फैलाएँ शाह

नसीरुद्दीन शाह जी, एक हामिद अंसारी हैं जो हाल ही में पाकिस्तान से भारत आए हैं और आते ही अपने वतन की धरती पर नतमस्तक हो गए। जब हामिद और उनकी माँ सुषमा स्वराज से मिले तो उन्होंने कहा कि मेरे देश से महान कोई देश नहीं है। हामिद को अपने देश में डर नहीं लगता जो कि बिना शोहरत वाला व्यक्ति है। लेकिन जिस देश ने आपको फलने-फूलने का मौका दिया उस देश में आपको डर लगता है। अरे हामिद अंसारी को छोड़ दीजिए, अपने रिश्तेदार डॉक्टर रिज़वान अहमद जी का उदाहरण ही ले लीजिए। डर की बात तो छोड़िए, उनको अपने देश पर और देशवासियों पर नाज़ है। 

आप कह सकते हैं कि पहले ऐसी स्थिति नहीं थी जो अब है। सवाल यह है कि 1984 में सिखों का क़त्लेआम हुआ, 1989-90 में कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ, भागलपुर में दंगा हुआ, मेरठ के मलियाना में क़त्लेआम हुआ, तब आपको डर क्यों नहीं लगा था? आज आपको डर क्यों लग रहा है जबकि पिछ्ले पाँच सालों में उस स्तर का कोई भी दंगा-फ़साद नहीं हुआ? दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है अभिनेता महोदय। कृपया इस तरह का प्रोपगैंडा फैलाने की कोशिश न करें।

- बीबी कुँवर

केवल राजनीति से प्रेरित बयानबाज़ी

यह बिल्कुल सही है कि सबको अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है। लेकिन स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं है। बयान क्या है? उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बयान देने वाला कौन है? बयान देने का समय क्या है? जिस तरह पाकिस्तान ने नसीरुद्दीन शाह के बयान को लपका है, क्या यह हमारे लिए ठीक है? यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार है। जनता को लगेगा, यह सरकार ग़लत कर रही है वह दूसरा विकल्प ढूंढ लेगी। अगर आप अल्पसंख्यकों के इतने हितैषी हैं तो दो शब्द 1984 के नरसंहार के बारे में ज़रूर बोलते। यह सब मात्र राजनीति से प्रेरित बयानबाज़ी है, ख़बरों में रहने सरल तरीका है।

एक घटना में यूपी के कन्नौज जिले में बीमारी के कारण अक्षम हुए नूरूज्ज़मा अन्सारी के घर जाकर स्वास्थ्य अधिकारी सद्दाम हुसैन ने उन्हें आयुष्मान भारत का गोल्डन कार्ड दिया, जिसके कारण इनके ऑपरेशन पर खर्च होने वाले तीन लाख रुपये अब सरकार के द्वारा दिए जाएंगे। एक बार अन्सारी जी से पूछ से लीजिए, क्या वह देश में अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं?

- डॉ. डी. एम. काला, मुरादाबाद

सिर्फ़ मुस्लिमों को क्यों लगता है डर

जैन, बौद्ध, सिख, पारसी धर्म के मानने वालों को भारत में डर नहीं लगता है। तो आख़िर क्यों मुसलमानों को ही डर लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चोर की दाढ़ी में तिनका है। 

- नीरू मित्तल
  • अब पढ़िए नसीरुद्दीन शाह के समर्थन में आई प्रतिक्रियाएँ - 

ग़लत देखकर क्यों रहें चुप

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के इस बयान पर कुछ लोग, उन पर तंज कस रहे हैं। यहाँ तक कि नसीहत भी दे रहे हैं कि उन्हें ऐसा नहींं कहना चाहिए था, उन्हें अभिनय करना चाहिए, ऐसे नहीं बोलना चाहिए। क्यों नहीं कहना चाहिए, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह क्या जापान, जर्मनी या पाकिस्तान के हैं? क्या उन्हें बोलने का हक़ नहीं है या कुछ ग़लत घटित हो रहा है जो असल में वास्तविकता है। उन्हें भी चुप्पी साध लेनी चाहिए, जैसा कि अन्य अभिनेता करते हैं? क्या उन्होंने जो कहा है वह सच नहीं है? अगर है तो उसे स्वीकार करने मैं हर्ज़ क्या है?

क्या एक अभिनेता को अपनी बात कहने का हक़ नहीं है? नागरिक होने के नाते क्या चिंता जायज़ नहीं है? आप उन पर क्यों तंज कसे जा रहे हो, आपको तो सराहना करनी चाहिए। कम-से-कम चापलूस अभिनेताओं से इतर अपनी बात को तो रखा। आपने उनकी बात को सुना/पढ़ा? क्या ग़लत कहा है उन्होंने? उन्होंने जिन घटनाओं का ज़िक्र किया है या जिस माहौल का ज़िक्र किया है, क्या ऐसी परिस्थितियाँ व्याप्त नहीं है? अगर हैं तो इस पर सोचना उचित ही होगा। अचानक से ये सब इतनी देशभक्ति, राष्ट्रवाद का चलन और इसका अतिप्रसार हमारे देश के लिए ख़तरनाक है। लेकिन मीडिया में लगभग हर रोज़ होने वाली हिंदू-मुस्लिम पर डिबेट, वही नफ़रतें जो हर रोज़ टीवी स्टूडियो मैं बैठकर बोई जाती हैं, ये काफ़ी हद तक जिम्मेदार हैं आज की स्थिति के लिए। एक आम समझ का व्यक्ति यह समझने में निर्रथक ही साबित होता है कि क्या सही है और क्या ग़लत। वह भी उसी अति राष्टवाद से ग्रसित हो रहा है, जो आजकल फैलाया जा रहा है। लेकिन इससे सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रतें पैदा होंगी ?

 - संजय पवैया

मत घोलो नफ़रत का ज़हर

बड़े अजीब हैं न हम, हाँ, सचमुच बड़े अजीब हैं हम, आपने बिल्कुल सही पढ़ा है। यही लिखा है मैंने, अजीब, अजीब और अजीब, बिल्कुल अजीब...! चलो पहले आपके ही पक्ष की बात करते हैं - क्या ख़ूब है न कि जब पूर्व उपराष्ट्रपति को जो कि ज़ेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा से रक्षित हैं, जिसके न चाहने पर एक मक्खी भी उनके ऊपर न बैठ पाए तो उसके स्वयं को भारत संघ में असुरक्षित महसूस करने पर इतना बड़ा विरोध नहीं हुआ जितना एक अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की बयानबाजी पर उकसे हुए हैं।

आइए, अब नसीरुद्दीन शाह का पक्ष रखते हैं। सुनिए सरकार, स्वयं में एक आदत डालिए कि जब भी कुछ ट्रोल हो तो सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के ऊपर भरोसा करने के बजाए उस घटना के होने के डायरेक्ट सोर्स तक पहुँचकर पड़ताल किया कीजिए, क्यों नहीं देख आते एक बार कि जो असली विडियो है उसमें शाह ने क्या कहा। क्यों अपने बॉस, कॉलीग, फ़्रेंड, फ़ेक न्यूज़, पोस्ट इत्यादि के चक्कर में फँसकर समाज में नफ़रत का ज़हर बो रहे हो?

अगर ख़ुद को राष्ट्रवादी बोलते हो तो पहले राष्ट्र का संविधान पढ़ो न, जहाँ साफ़-साफ़ लिखा है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, फिर ये धर्मवाद क्यों? मिला क्या धर्म के नाम पर भीड़ जुटाकर, जरा आँकड़ों पर ग़ौरर करो कि हमने राष्ट्रवाद और धर्मवाद के नाम पर किसको बल दिया - सिर्फ़ आक्रोश, अराजकता और अन्याय को...!! 

- सुमित सोनी, वाराणसी

भीड़तंत्र को क़ाबू करे सरकार 

एक हिन्दुस्तानी होने के नाते सही का समर्थन करना और ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठना, बेबाक़ी से अपनी राय रखना, चाहे वह किसी हिन्दू के पक्ष में हो या फिर मुसलमान के पक्ष में, यह हर किसी का अधिकार है। क़ानून ने हम हिन्दुस्तानियों को बराबर का अधिकार दिया है बोलने का! मैं मानता हूँ इसमें किसी को कोई आपति नहीं होनी चाहिए। हाँ, विरोध कर सकते हैं, अपनी राय रख सकते हैं, मगर किसी को गद्दार, देशद्रोही कहने का आधिकार नहीं है! 

जहाँ तक गाय माता की बात है, आस्था का सवाल है सरकार का पूरा फ़र्ज़ बनता है वो क़ानून बनाए। मैं मानता हूँ कि अगर क़ानून है और इसे क़ायम रखना है तो सरकार को इस भीड़तंत्र को क़ाबू करना पड़ेगा। ये उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए और समाज को भी सहयोग करना पड़ेगा। लेकिन जब सरकार के चुने हुए लोग ही चुनावी फ़ायदे के लिए भीड़तंत्र को बढ़ावा दे रहे हों, समाज को बाँटने का काम कर रहे हों, फिर  समाज को ही आगे आकर इसको रोकना पडेगा। 

- मुमताज अंसारी, दिल्ली

कैसा देश चाहते हैं हम

मैं नसीरुद्दीन शाह द्वारा उठाए गए प्रश्नों से सहमत हूँ। क्योंकि, जब सरकार में मंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्ति दंगाइयों का फूलमालाओं से स्वागत करें, जब खाने-पीने जैसी निजी चीजों को लेकर किसी की हत्या कर दी जाए। जब हर वक़्त देश में हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा छाया रहे, दलितों को नग्न करके पिटाई कर दी जाए। जब किसी राज्य का मुख्यमंत्री अली बनाम बजरंग बली जैसा मुद्दा छेड़े। भीड़तंत्र गोरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या करे। अगर इतना होने पर भी सरकार लगाम न लगा सके तो सिर्फ़ नसीरुद्दीन को ही नहीं देश के हर ज़िम्मेदार नागरिक को इसके विरोध में आवाज उठानी चाहिए। 

हमें नसीरुद्दीन द्वारा कही गई बात के मर्म को समझना चाहिए। उन्होंने यह नहीं कहा कि भारत बुरा देश है। उन्होंने बुलंदशहर हिंसा को लेकर अपनी बात रखी थी। क्या उनका विरोध करने वाले बुलंदशहर हिंसा को सही मानते हैं? हर वक़्त आलोचना को ‘राष्ट्रविरोधी’ कहकर धराशायी कर देना ग़लत है। हमें उन ग़लतियों को स्वीकार कर आगे सुधार करना चाहिए अगर एजेंडा सिर्फ़ विकास है तो। तब हर ज़िम्मेदार नागरिक को इस बात की चिंता जरूर होनी चाहिए कि हम किस तरह का देश चाहते हैं। 

- आशीष यादव

सोच-समझकर दें अपनी राय

जब से नसीरूद्दीन शाह ने बयान दिया है कि ’मेरे बच्चों की तालीम मज़हबी नहीं है और आज के भारत में मुझे डर है कि कहीं भीड़ ने पकड़ कर पूछ लिया - तुम हिन्दू हो या मुसलमान तो वे तो कुछ बोल ही नहीं पाएंगे’, तब से दिन-रात सोशल मीडिया पर भारत दो भागों में बँटा हुआ है। ट्विटर, फ़ेसबुक, यूट्यूब इत्यादि पर 'शाह' को दोषी और ग़द्दार बताया जा रहा है। हिंदू समाज का कट्टर तबक़ा इससे सबसे ज़्यादा आहत है और सीधे तौर पर पाकिस्तान जाने की सलाह दे रहा है। 

अब रही बात मेरी, एक भारतीय होने के नाते शाह के बयान में मुझे कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। शाह के कहने का तात्पर्य जो मुझे समझ आया, वह यही था कि एक इंसान और पशु की जान बराबर है लेकिन यदि किसी ने पशु की हत्या की है तो भीड़ एक इंसान की जान कैसे ले सकती है? और बात सच भी है। देश मे क़ानून है तो नियमतः क़ानून पशु के हत्यारे को गिरफ्तार कर सज़ा देगा। अब इस बयान में कहाँ कुछ ग़लत है जो लोग इतने आहत हो गए? बहुत तक़लीफ़ होती है जब इस तरह के सम्मानित व्यक्ति को बिना कुछ सोचे-समझे कुछ लोग घृणा के कटघरे में खड़ा कर बेअदबी से पेश आते हैं। अंत में, मैं यही कहूँगा कि किसी भी बयान पर आहत होने से पहले संदर्भ पर विचार करें और फिर अपनी राय दें न कि जैसा सोचा और अपनी राय दे दी।

- सुनील झा "दिशव", बिहार

हमें लड़ाने में जुटे हैं राजनेता

मैं नसीरुद्दीन शाह के बयान से सहमत हूँ। अपने बयान पर उन्होंने पाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान को डाँट भी लगाई है कि वे भारत के मामलों में दख़ल न दें। भारत में 2014 के बाद से ही इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं और ऐसा पहले कभी नहीं होता था। इसलिए नसीर ने कोई ग़लत बयान नहीं दिया। ऐसे ही बात कई मुस्लिम मुझसे भी यही डर जता चुके हैं। हिंदू और मुसलमान भाई-भाई हैं। राजनेता हमें लड़ाने में जुटे हैं लेकिन हमें इसका विरोध करना चाहिए। 

- अजय गोयल

सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करे मीडिया

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, जिसकी भूमिका होती है जनहित से जुड़े मुद्दों को उठाना और सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करना। दुर्भाग्यवश पिछले कुछ वर्षों में मीडिया मुद्दे उठाने के बजाए मुद्दे उठाने वालों को मुद्दा बनाने में जुटा है। सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करने के बजाय सवाल करने वालों पर सवाल उठाने लगा है। 

नसीरुद्दीन शाह ने जब अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए हैं तो चर्चा का विषय यह होना चाहिए कि अपने बच्चों को बेहतर और सुरक्षित भविष्य देने के लिए हमें क्या क़दम उठाने चाहिए। बजाय उसके एक झुंड द्वारा उनकी देशनिष्ठा पर सवाल उठाकर हम कोई समाधान तो नहीं दे रहे अपितु उनकी बात को सही साबित कर रहे हैं। सरकारों द्वारा भीड़तंत्र और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं पर गंभीरता से कड़े क़दम उठाने के बजाय इसमें लिप्त लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। केवल राजनैतिक लाभ के लिए सड़कों और सोशल मीडिया पर हो रही लिंचिंग देश के भविष्य के लिए बहुत ख़तरनाक है। 

- राकेश पारिख

क्या पाकिस्तान में तुम्हारी ट्रैवल एजेंसी है?

आजकल न्यूज़ में नसीरुद्दीन शाह की ही चर्चा है। शाह ने आख़िकर ऐसा क्या बोल दिया कि लोग देशद्रोह का सर्टिफ़िकेट देने लगे। और एक नेता ने तो टिकट ही बुक करा दिया नसीरुद्दीन को पाकिस्तान भेजने के लिए। भाई अगर उन्हें किसी और देश भेजना ही है तो पाकिस्तान ही क्यों चुना? और भी तो देश हैं - बांग्लादेश, नेपाल, चीन, मालदीव, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरबिया, इतने देश हैं दुनिया में। हर बार अगर किसी को तुम देश निकाला करना चाहते हो तो सबसे ज़्यादा तुम्हारी पसंद पाकिस्तान ही क्यों है? क्या पाकिस्तान में तुम्हारी ट्रैवल एजेंसी है?  नसीरुद्दीन ने क्या ग़लत बोला? सही तो बोला है कि ज़हर फैलाया जा रहा है और यह ज़हर इतना फ़ैल चुका है हमारे देश में कि इसे कंट्रोल करना मुश्किल है। यहाँ एक पुलिस ऑफ़िसर की जान से ज़्यादा गाय को महत्व दिया जाता है। उन्होंने कहाँ बोला कि उन्हें डर लग रहा है, अगर किसी इंसान का अपनी बात रखना देशद्रोह है तो, जो नेता सीधे-सीधे अपनी भाषा से आग उग़लते हैं, वह क्या होता है। बनाइए ऐसा क़ानून कि कोई गाय का वध ही नहीं कर सके और पूरे हिन्दुस्तान में इसे लागू कीजिए ताकि देश में शांति हो, फिर से गाय के नाम पर कोई बेग़ुनाह न मरे। 

- हसीन ख़ान

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क़मर वहीद नक़वी
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