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पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ईएसी-पीएम की रिपोर्ट से सहमत नहीं है, बल्कि चिंतित है। पॉपुलेशन फाउंडेशन ने कहा कि मुस्लिम आबादी के आंकड़ों को लेकर भ्रामक सूचनाएं फैलाई जा रही है। स्टडी का गलत अर्थ निकाला जा रहा है। उसने कहा कि 65 वर्षों के अंतराल में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी को किसी भी समुदाय को भड़काने या भेदभाव के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
भारत सरकार का ही जनसंख्या का आंकड़ों बता रहा है कि पिछले तीन दशकों में मुसलमानों की वृद्धि दर में लगातार गिरावट आ रही है। यानी मुस्लिम कम बच्चे पैदा कर रहे हैं। खासतौर पर मुसलमानों की वृद्धि दर 1981-1991 में 32.9 प्रतिशत से घटकर 2001-2011 में 24.6 फीसदी हो गई। पॉपुलेशन फाउंडेशन का कहना है कि "यह गिरावट हिंदुओं के मुकाबले ज्यादा स्पष्ट है, जिनकी वृद्धि दर इसी अवधि में 22.7 से गिरकर 16.8 प्रतिशत हो गई।"
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा का कहना है कि "मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी को बताना डेटा को गलत ढंग से पेश करना है। मीडिया इस मामले में सेलेक्टिव (चयनात्मक) होकर गलत बयानी कर रहा है। जिसने एक व्यापक आबादी के रुझानों को नजरअंदाज कर दिया। प्रजनन दर का शिक्षा और आमदनी के लेवल से गहरा संबंध है, न कि धर्म से।"
मुसलिमों के ख़िलाफ़ दिए जाने वाले ऐसे सारे बयानों को प्यू रिसर्च सेंटर के शोध ने ध्वस्त किया है। इस शोध से यह भी पता चलता है कि दरअसल, ऐसे तर्क नफ़रत फैलाने के लिए गढ़े जाते रहे हैं! प्यू रिसर्च सेंटर के शोध में कहा गया है कि विभाजन के बाद से भारत की आबादी की धार्मिक संरचना काफ़ी हद तक स्थिर रही है। हिंदू और मुसलिम की प्रजनन दर में न केवल एक बड़ी गिरावट आई है, बल्कि यह अब क़रीब-क़रीब बराबरी पर आती दिख रही है। इसके लिए प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत की जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफ़एचएस के आँकड़ों का सहारा लिया था।
शोध में जिस प्रजनन दर यानी टीएफ़आर का ज़िक्र किया गया है उसका मतलब है- देश का हर जोड़ा अपनी ज़िंदगी में औसत रूप से कितने बच्चे पैदा करता है। किसी देश में सामान्य तौर पर टीएफ़आर 2.1 रहे तो उस देश की आबादी स्थिर रहती है। इसका मतलब है कि इससे आबादी न तो बढ़ती है और न ही घटती है। फ़िलहाल भारत में टीएफ़आर 2.2 है। इसमें मुसलिमों की प्रजनन दर 2.6 और हिंदुओं की 2.1 है। यानी इन दोनों की प्रजनन दर में अब ज़्यादा अंतर नहीं रह गया है। लेकिन खास तौर पर ग़ौर करने वाली बात यह है कि हाल के दशक में मुसलिम की प्रजनन दर काफ़ी ज़्यादा कम हुई है।
1992 में जहाँ मुसलिम प्रजनन दर 4.4 थी वह 2015 की रिपोर्ट के अनुसार 2.6 रह गई है। जबकि हिंदुओं की प्रजनन दर इस दौरान 3.3 से घटकर 2.1 रह गई है। आज़ादी के बाद भारत की प्रजनन दर काफ़ी ज़्यादा 5.9 थी।
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