12 अप्रैल को शब्बीर ने तिहाड़ की जेल नंबर 4 के अधीक्षक राजेश चौहान को बताया कि उसकी बैरक का इंडक्शन चूल्हा ठीक से काम नहीं कर रहा है। इतना कहते ही राजेश चौहान ने शब्बीर को पीटना शुरू कर दिया। इसके बाद राजेश ने शब्बीर को अपने ऑफ़िस में बुलाया।
राजेश ने शब्बीर से कहा कि वह नेता बनने की कोशिश कर रहा है। इंडिया टुडे के मुताबिक़, इसके बाद दरवाज़े बंद करके राजेश और जेल के अन्य अधिकारियों ने शब्बीर को बुरी तरह पीटा।
जब राजेश चौहान का मन इतने से भी नहीं भरा तो उसने लोहे के बने ‘ऊँ’ शब्द को गर्म किया और इससे शब्बीर की पीठ को दाग दिया।
17 अप्रैल को जब शब्बीर को कोर्ट में लाया गया तो जज ने ‘ऊँ’ के निशान को देखने के बाद उससे ख़ुद पर हुए ज़ुल्म के बारे में बताने को कहा। जज ने शब्बीर की बातें सुनने के बाद उसका डॉक्टरी परीक्षण करने का आदेश दिया। जज ने यह भी आदेश दिया कि शब्बीर को उस बैरक से हटा दिया जाए और जेल अधीक्षक राजेश चौहान उसके आसपास न रहे।
जज ने मामले में जाँच का आदेश देते हुए पुलिस महानिदेशक (जेल) को 24 घंटे के भीतर सीसीटीवी फ़ुटेज और अन्य कैदियों के बयान दर्ज करके लाने को कहा। लेकिन तिहाड़ जेल के अधिकारियों को शायद कोर्ट या क़ानून का कोई ख़ौफ़ नहीं है, इसीलिए 18 अप्रैल को जेल का कोई भी अधिकारी कोर्ट के सामने प्रस्तुत नहीं हुआ। जज ने अब इस मामले में 22 अप्रैल की तारीख़ तय की है।
तिहाड़ के महानिदेशक अजय कश्यप की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि शब्बीर को दूसरी जेल में शिफ़्ट कर दिया गया है। उप महानिरीक्षक के द्वारा मामले की जाँच की जा रही है। जाँच पूरी होते ही कोर्ट में रिपोर्ट दाख़िल कर दी जाएगी। शब्बीर का परिवार इस घटना के बाद बुरी तरह डरा हुआ है लेकिन फिर भी उनका अदालत में पूरा विश्वास है।
शब्बीर के वकील जगमोहन ने इंडिया टुडे को बताया कि जेल अधिकारियों को अदालत को इस बात को बताना होगा कि उन्होंने शब्बीर पर इतने ज़ुल्म क्यों किए और उसको क्यों निशाना बनाया, उसके बाद ही अदालत इस मामले में एक्शन लेगी। शब्बीर पर आर्म्स एक्ट के तहत मुक़दमा चल रहा है और उससे भारत में ही बने हुए हथियार मिले थे।
धर्म के आधार पर बढ़े अत्याचार
अब सवाल यह है कि धार्मिक आधार पर किसी क़ैदी को या किसी भी इंसान को इस तरह की यातनाएँ क्यों दी जा रही हैं। पिछले कुछ सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब धर्म के आधार पर पहचान कर एक धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया या कई लोगों के साथ शब्बीर की तरह मारपीट की गई।
कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मेरठ से ख़बर सामने आई थी कि बीजेपी की कैप नहीं पहनने के कारण एक मुसलिम छात्रा के साथ पहले तो कक्षा के ही छात्रों ने बद्तमीजी की और जब उसने ट्विटर पर इस बारे में शिकायत की तो उसे कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। छात्रा ने इस बारे में पुलिस में भी लिखित शिकायत दी है।
छात्रा ने शिकायत में लिखा है कि उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जब मैंने ट्विटर पर लिखा तो कॉलेज और कुछ छात्रों ने इसे राजनीतिक और साम्प्रदायिक मुद्दा बना दिया। वे लोग मेरे निजी फ़ोटो और वीडियो को साज़िश के तहत प्रचारित कर रहे हैं ताकि मुझ पर शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाए।
कुछ साल पहले राजस्थान के अलवर में उन्मादी भीड़ ने पहलू ख़ान, रक़बर ख़ान की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। हरियाणा के किशोर जुनैद की ईद के दो दिन पहले चलती ट्रेन में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।
उत्तर प्रदेश के हापुड़ में कुछ साल पहले 45 वर्षीय मीट व्यवसायी क़ासिम क़ुरैशी की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी, जबकि पेशे से किसान 65 साल के समीउद्दीन को पीट-पीटकर घायल कर दिया था। ऐसी और भी सैकड़ों घटनाएँ सामने आई हैं जब एक धर्म विशेष के लोगों की दाढ़ी नोच ली गई या उन्हें गालियाँ दी गईं।
कई जगहों पर हुई ऐसी भी घटनाएँ सोशल मीडिया पर वायरल हुईं जब धर्म विशेष के लोगों को जय श्री राम, वंदे मातरम या भारत माता की जय बोलने को मज़बूर किया गया और जिन्होंने ऐसा नहीं किया, उन्हें मारा-पीटा गया और देश छोड़कर पाकिस्तान चले जाने को कहा। ऐसी घटनाओं के बाद सवाल यह उठता है कि आख़िर भारत में ऐसी घटनाएँ क्यों बढ़ रही हैं और क्या इससे देश के लोकतंत्र को ख़तरा पैदा नहीं हो रहा है।
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