देश में एक बार फिर भीड़तंत्र की गुंडागर्दी सामने आई है। उत्तर प्रदेश के बरेली में मजदूरों को मंदिर की जगह में माँस खाने की बात कहकर जमकर पीटा गया है। घटना के वायरल हुए वीडियो में चार मजदूर एक जगह पर बैठकर खाना खा रहे हैं, तभी वहाँ कुछ लोग आते हैं और उन्हें बेल्टों से पीटना शुरू कर देते हैं। पीटने वाले लोगों का आरोप है कि वे लोग मंदिर की जगह पर बैठकर गोश्त खा रहे हैं।
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वीडियो में दिख रहा है कि एक मजदूर ने पिटने के बाद स्वीकार किया कि वे बड़ा (भैंस का माँस) खा रहे हैं। इसके बाद अभियुक्तों ने उन्हें चप्पलों से भी पीटा। पुलिस के मुताबिक़, चार मजदूरों में से दो अल्पसंख्यक समुदाय के थे। घटना का वीडियो सामने आने के बाद कई लोगों ने पुलिस से मामले में कड़ी कार्रवाई करने की माँग की है।घटना के संबंध में बहेड़ी पुलिस के एसएचओ धनंजय सिंह ने कहा है कि चार मजदूर एक घर में काम कर रहे थे। दोपहर का भोजन करने के लिए वे पास में खुली जगह, जहाँ पर छायादार पेड़ और छोटा सा मंदिर था, वहाँ चले गए लेकिन तभी कुछ लोग आए और उनकी पिटाई शुरू कर दी। पुलिस ने मामले में आदेश वाल्मीकि, मनीष और चार अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की है। अभियुक्तों को पकड़ने के लिए पुलिस दबिश दे रही है।
मुसलमानों पर हमले की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। हाल ही में हरियाणा के गुड़गाँव में एक मुसलिम युवक मोहम्मद बरकत को धार्मिक टोपी (छोटी टोपी) उतारने और उसे जय श्री राम का नारा लगाने पर मजबूर किया गया। ऐसा नहीं करने पर उसे पीटा गया। बरकत के मुताबिक़, जब उसने ऐसा करने से मना किया तो अभियुक्तों ने उसे सुअर का माँस खिलाने की धमकी दी।इसके अलावा बिहार के बेगूसराय में भी एक मुसलिम फेरीवाले को उसका नाम पूछने के बाद उसे गोली मार दी गई। गोली मारने वाले ने उसे पाकिस्तान जाने के लिए कहा। पीड़ित का नाम मोहम्मद कासिम था।
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इस तरह की घटनाएँ रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। इसी साल हरियाणा के भोंडसी इलाक़े में कुछ लोगों ने होली के मौक़े पर एक मुसलिम परिवार के सदस्यों को घर में घुसकर बेरहमी से पीट दिया था। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हुआ था। आरोपियों ने लाठी-डंडों, तलवारों, लोहे की छड़ों और हॉकी स्टिक से परिवार के लोगों पर हमला किया था। इसके अलावा भी कई घटनाएँ ऐसी हैं जिनमें गौमाँस खाने या रखने के शक में मुसलमानों को पीटा गया। ग्रेटर नोएडा के दादरी में अखलाक के बाद, राजस्थान के अलवर में भी कई ऐसे मामले हुए, जहाँ पर लोगों ने क़ानून हाथ में लेकर सिर्फ़ शक के आधार पर लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी।
क्या इस तरह की घटनाएँ प्रधानमंत्री मोदी के उस दावे पर सवाल खड़ा नहीं करती जिसमें उन्होंने चुनाव जीतने के बाद संविधान को नमन करते हुए कहा था कि वह अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की कोशिश करेंगे।
अब सवाल यह है कि आख़िर क़ानून को हाथ में लेने की क्या ज़रूरत थी और ऐसा करने का किसी को क्या हक़ है। अगर कोई आपत्ति है तो पुलिस को घटना की सूचना दी जानी चाहिए। वरना भीड़ के द्वारा क़ानून को हाथ में लेने की बढ़ रही घटनाओं से हम लोकतंत्र के बजाय भीड़तंत्र में बदलते जा रहे हैं और यह भीड़ अपने हिसाब से किसी को भी सजा देने के लिए तैयार खड़ी है और एक बार को तो ऐसा लगता है कि इसे रोकना आसान नहीं है। यह भीड़ कब किसकी जान ले ले, कोई नहीं जानता लेकिन ऐसी घटनाओं को क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए वरना हम भीड़तंत्र के नागरिक बन जाएँगे न कि लोकतंत्र के।
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