सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को कहा है कि मुहर्रम का जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जा सकती। चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, ‘अगर हम इस जुलूस को निकालने की अनुमति देते हैं तो अव्यवस्था फैलेगी और फिर एक समुदाय को कोरोना वायरस के फैलने के लिए निशाना बनाया जाएगा।’
सुप्रीम कोर्ट शिया धर्मगुरू सैयद कल्बे जव्वाद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कल्बे जव्वाद ने देश भर में मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए अनुमति देने की मांग की थी। इसमें उन्होंने भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को अदालत द्वारा इजाजत देने का हवाला दिया था।
तारीख़ के पन्नों को पलटा जाए तो नज़र आएगा कि राजधानी दिल्ली में ताज़िया रखने का सिलसिला मुगलिया दौर से भी पहले का है। लेकिन कोरोना के कारण सदियों से चली आ रही ये रिवायत इस बार टूट जाएगी। 700 से भी ज्यादा बरस बाद ऐसा होगा जब मुहर्रम पर ताज़िये तो रखे जाएंगे लेकिन इनके साथ जुलूस नहीं निकाला जा सकेगा।
कोरोना के चलते मुहर्रम जुलूस को निकालने को लेकर एक अन्य याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में डाली गयी थी। इस याचिका में कहा गया था कि कम से कम 5 लोगों को ही जुलूस निकालने इजाजत दे दी जाये। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि सभी 28 राज्यों की ओर से जवाब दाखिल होने के बाद ही इस पर निर्णय लिया जा सकता है।
समय से दाखिल कर दी थी याचिका
सहारनपुर के रहने वाले एक शख्स ने भी सशर्त जुलूस निकालने की इजाजत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। याचिकाकर्ता के वकील वासी हैदर का कहना है कि, “कोरोना को देखते हुए जुलूस को लेकर हमने 3-4 अगस्त से ही बातचीत शुरू कर दी थी। सरकार ने 1 अगस्त से देशभर में अनलॉक-3 की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसके बाद हमने जुलूस को लेकर कई राज्यों को पत्र लिखा जिसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना से जवाब आने लगे थे। 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में ई-फाईलिंग से याचिका दाखिल भी हो गयी थी, जिसमें हमने जल्द सुनवाई की मांग की थी।’’
हैदर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त को सुनवाई की। हमने कोर्ट से कहा कि, “भारत में 14वीं शताब्दी से शिया समुदाय के लोग इसलाम धर्म के प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मुहर्रम मनाते हैं, जिसमें शिया समुदाय के लोग अलम (झंडा) और ताजिया (किला) लेकर एक इमामबाड़े से दूसरे इमामबाड़े तक जाते हैं।”
वासी हैदर कहते हैं, “इसलामिक कैलेंडर के मुताबिक चांद दिखने यानि 21 या 22 अगस्त से शुरू हुए महीने से 10 वां आशूरा होता है, जिसमें लोग जुलूस की शक्ल में मातम मनाते हुए निकलते हैं और ताजिये को खत्म किया जाता है।”
जगन्नाथ रथ यात्रा को मिली इजाजत
कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा और अगस्त में ही पर्यूषण पर्व के दौरान मुम्बई के तीन जैन मंदिरों को खोलने की सशर्त इजाजत दी थी। मुम्बई के दादर, बाइकूला और चेंबूर स्थित जैन मंदिरों को 22 और 23 अगस्त को खोलने की अनुमति मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने जैन मंदिरों को खोलने की इजाजत देते हुए कहा था कि, “कितनी अजीब बात है कि व्यावसायिक हित के लिए सरकार खतरा उठाने को तैयार है, लेकिन बात धर्म की आती है तो कोरोना महामारी का हवाला देकर कार्यक्रम की इजाजत नहीं देती।” हालांकि पुरी के जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 500 लोगों और तीनों जैन मंदिर के लिए एक दिन में 250 लोगों के दर्शन करने की सीमा तय की थी।
जानकार बताते हैं कि बंटवारे के वक़्त भी दरगाह से ताज़ियों के साथ निकलने वाले जुलूस पर पाबंदी नहीं लगी थी लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते दिल्ली और मरकज़ी हुकूमत से मज़हबी प्रोग्रामों की इजाज़त नहीं है। इसलिए मुहर्रम पर ताज़िये के साथ जुलूस नहीं निकल पाएंगे।
कैसे मनाया जाता है मुहर्रम
कई सदियों से निजामुद्दीन दरगाह से कुछ ही फासले पर मौजूद इमामबाड़े में सबसे बड़ा फूलों का ताज़िया रखा जाता है। यहां चार ताज़िये रखे जाते हैं। मुहर्रम पर दरगाह से ताज़ियों के साथ छुरी और कमां का मातमी जुलूस निकलता है। नौजवान हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करके अपने बदन से लहू बहाते हैं लेकिन इस बार कोरोना के चलते सिर्फ कर्बला में ताज़िये का फूल भेजा जाएगा।
कर्बला में दफन होते हैं ताज़िये
दिल्ली में हर साल मुहर्रम की पहली तारीख से ही मजलिसों का आगाज़ हो जाता है। दस तारीख को करीब 70 बड़े ताज़ियों के साथ यहां जुलूस पहुंचता है। यहां पर ताज़ियों को दफन किया जाता है। 12 तारीख को तीज पर मातम का जुलूस निकलता है लेकिन इस बार सिर्फ इमामबाड़े में मजलिस मुनक़्क़ीद हो रही है।
मुहर्रम पर टूटती है मज़हब की दीवार
मुहर्रम पर हिन्दू-मुसलिम एकता भी देखने को मिलती है। हजारों की तादाद में लोग मुहर्रम के मातमी जुलूस में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं। हज़रत निजामुद्दीन औलिया के आसपास के कई हिन्दू खानदान भी अकीदत के लिए बरसों से ताज़िये रखते चले आ रहे हैं। वहीं, महरौली का एक परिवार तो कई दहाईयों से ऐसा कर रहा है।
क्या है मुहर्रम
मुहर्रम इसलामिक वर्ष का पहला महीना होता है। इस महीने की 10वीं तारीख को यह मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मुहर्रम के एक रोजे का 30 रोजों के बराबर फल मिलता है। लकड़ी और कपड़ों से गुंबदनुमा ताज़िया बनाया जाता है और इसमें इमाम हुसैन की कब्र की नकल बनाई जाती है, इसे झांकी की तरह सजाते हैं और एक शहीद की अर्थी की तरह इसका सम्मान करते हुए उसे कर्बला में दफन करते हैं।
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