किसानों का गुस्सा फिर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। किसान 22 अगस्त को दिल्ली में जंतर-मंतर पर थे। उन्होंने एमएसपी का मुद्दा फिर से उठाया है। अभी मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी कहा कि एमएसपी पर बहुत भयंकर लड़ाई किसानों और सरकार के बीच होगी। क्या सरकार उसी लड़ाई की तरफ बढ़ रही है। सरकार के एक्शन शक को बढ़ा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 19 नवंबर 2021 को किसान विरोधी तीनों कृषि बिल वापस लेने की घोषणा की थी। उसी दौरान एमएसपी की गारंटी का वादा किया गया था। यह वादा महीना दर महीना चलता रहा। करीब 8 महीने बाद सरकार ने जुलाई 2022 में एमएसपी पैनल बनाने की घोषणा की। इस पैनल में का चेयरमैन पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को बनाया गया। कमेटी में नीति आयोग से लेकर कई सरकारी संस्थाओं के प्रमुखों और चंद किसान नेताओं को इस पैनल में रखा गया। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने इस पैनल को नामंजूर कर दिया।
पैनल ने अपना काम फौरन शुरू नहीं किया। उसने चार सब ग्रुप बना दिए। ये सब ग्रुप ये कह कर बनाए गए छोटी से छोटी बारीकी और महत्वपूर्ण मुद्दों को यह सब ग्रुप देखेगा। पैनल की बैठक उस दिन बुलाई गई, जिस दिन एसकेएम एमएसपी गारंटी समेत कई मुद्दों पर दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन आयोजित कर रहा था। उसने प्रदर्शन की कॉल दस दिन पहले दी थी।
एमएसपी पर गारंटी को लेकर सरकार का रवैया अभी तक टालमटोल वाला बना हुआ है। 22 अगस्त की बैठक में जो चार सब ग्रुप सरकारी पैनल ने बनाए और उनका जो एजेंडा तय किया गया, उसी से यह लग रहा है कि एमएसपी पर गारंटी का मुद्दा बहुत जल्द हल नहीं होने वाला है। सब ग्रुप जिस एजेंडे पर काम करेगा, उसमें हिमालय क्षेत्र की खेती का अध्ययन शामिल है और वहां किस तरह दूसरी खेती शुरू की जा सकती है, ताकि एमएसपी दी जा सके। दूसरा सब ग्रुप सिंचाई पर अध्ययन करेगा। जिसमें माइक्रो इरीगेशन सबसे प्रमुख है। तीसरे सब ग्रुप को जीरो बजट के हिसाब से खेती का अध्ययन करना है और चौथे सब ग्रुप को मिट्टी का सर्वे करना है। पैनल की अगली बैठक सितंबर के अंत में बुलाई गई है।
सरकार को क्या लगता है कि पैनल के सब ग्रुप अपने एजेंडे की स्टडी करके रिपोर्ट पैनल को देगी और पैनल उसका अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को देगा और सरकार उस आधार पर एमएसपी का मुद्दा सुलझाएगी। यह दरअसल टालमटोल नीति का ही हिस्सा है। चूंकि एमएसपी के मुद्दे को शुरू से ही राजनीतिक मुद्दा बनाया गया तो यह टालमटोल की नीति उसी का हिस्सा है।
नीति आयोग, कृषि मंत्रालय के पास ऐसे अध्ययनों का जखीरा मौजूद है। उन दस्तावेजों को देखने की बजाय सरकारी पैनल ने चार सब ग्रुप बनाकर मामले को लंबा खींचने की नीति अपनाई है। एमएसपी पर गारंटी का फैसला इतना मुश्किल नहीं है जितना पहले पैनल बनाने और फिर उस पैनल के भी सब ग्रुप बनाने के बाद इसे मुश्किल भरा बना दिया गया है। लेकिन यह मुश्किल इसलिए है जिसे मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बताया है।
कौन रोक रहा है एमएसपी लागू करने सेः इस तथ्य को मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बेहतर ढंग से बताया है। मलिक जाट हैं और उनका पूरा परिवार खेती किसानी से जुड़ा रहा है। उनसे बेहतर किसानों की स्थिति के बारे में कोई नहीं जानता। मलिक ने कहा है कि पानीपत में अडानी ने अनाज के बड़े-बड़े गोदाम बना रखे हैं। इसमें गेहूं और अन्य अनाज सस्ते दामों पर किसानों से खरीद कर रख लिया गया है। जाहिर है कि जब किसान की फसल आएगी तो अडानी का अनाज इस गोदाम से बाहर आएगा। किसान को अपनी फसल का दाम बाजार में नहीं मिलेगा और अडानी भरपूर मुनाफे पर उसी अनाज को बेचेगा। तभी उन्होंने कहा कि अडानी पीएम मोदी जी का दोस्त है और वो एमएसपी लागू नहीं होने दे रहा। हकीकत ये है कि ऐसे गोदाम सिर्फ अडानी ने नहीं बनाए हैं। देश के कई हिस्सों में ऐसे गोदाम और भी उद्योगपतियों ने बनाए हैं।
मोदी सरकार के पास अभी कुछ महीने जब वो एमएसपी के मुद्दे को टाल सकती है लेकिन 2024 के आम चुनाव का सामना क्या वो एमएसपी गारंटी का वादा पूरा किए बिना कर पाएगी। कहना मुश्किल है। मोदी को बाजी और मुद्दे पलटना आता है। संयुक्त किसान मोर्चा का रुख भी अभी तक स्पष्ट है लेकिन 2024 में किसान संगठनों का क्या रुख रहेगा, कोई नहीं जानता। लेकिन 2024 जैसे जैसे नजदीक आता जाएगा, एमएसपी और किसानों के अन्य मुद्दे फिर से मुखर होकर जनता के सामने आएंगे।
अपनी राय बतायें