द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 10 प्रमुख शहरों में रोजाना 7 फीसदी मौतें खराब आब-ओ-हवा से हो रही हैं। इन शहरों में हवा की गुणवत्ता पीएम 2.5 है जो वायु प्रदूषण का नतीजा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा से यह बहुत ज्यादा है। .
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राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की वजह से सालाना लगभग 12,000 मौतें दर्ज होती हैं, जो राजधानी में होने वाली कुल मौतों का 11.5 फीसदी है।
रिसर्चरों का कहना है कि भारतीय शहरों में रोजाना PM 2.5 लेवल के प्रदूषण के संपर्क में आने से मौत का खतरा बढ़ जाता है। इस अध्ययन में एक चौंकाने वाला निष्कर्ष भी निकला है। उसके मुताबिक दो दिनों में मापी गई पीएम2.5 एयर क्वॉलिटी में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि हो गई। इससे रोजाना के मृत्यु दर में भी 1.4 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। यानी रोजाना पीएम 2.5 लेवल में अगर बढ़ोतरी होती है तो यह लेवल 2.7 फीसदी तक पहुंच जाता है। यह डब्ल्यूएचओ के मानक से कहीं ज्यादा है और भयावह स्थिति को दर्शाता है।
डब्ल्यूएचओ 24 घंटे की अवधि में 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को सुरक्षित जोखिम मानता है, जबकि भारतीय स्टैंडर्ड 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की अनुमति देता है। शहर विशेष के डेटा से पता चला है कि दिल्ली में PM2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी पर दैनिक मृत्यु दर में 0.31 फीसदी की वृद्धि हो जाती है, जबकि बेंगलुरु में 3.06 फीसदी की वृद्धि हो जाती है। यानी बेंगलुरु में इंडस्ट्रियल प्रदूषण इसे और बढ़ा देता है और दिल्ली से भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है।
लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पीएम2.5 के अल्पकालिक जोखिम से होने वाली और दैनिक मृत्यु दर का पता लगाने के लिए 2008 से 2019 तक दस भारतीय शहरों में लगभग 36 लाख दैनिक मौतों का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में शामिल इन शहरों में अहमदाबाद, हैदराबाद, कोलकाता, पुणे, शिमला और वाराणसी शामिल हैं।
डब्ल्यूएचओ का दावा है कि पृथ्वी पर लगभग हर कोई तय मात्रा से ज्यादा वायु प्रदूषण के संपर्क में है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो रहा है। लेकिन PM 2.5 कणों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों का कैंसर और विभिन्न अन्य सांस संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।
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