My party has always stood for the restoration of the terms of accession which Maharaja Hari Singh negotiated for J&K in 1947 & we have done so unashamedly.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) April 1, 2019
मोदी ने हैदराबाद में एक कार्यक्रम में कहा, कांग्रेस पार्टी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनका सहयोगी कैसे इस तरह की बातें कर रहा है।
अब्दुल्ला ने इसका जवाब ट्वीट कर दिया और मोदी पर व्यंग्य किया।
धारा 370 पर चुनाव के पहले तूफ़ान
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने यह कह कर तूफ़ान खड़ा कर दिया कि यदि धारा 370 को ख़त्म कर दिया गया तो उनके राज्य का भारत के साथ रिश्ता भी ख़त्म हो जाएगा। इस तरह की बात उनके विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी कह चुके हैं। महबूबा ने वित्त मंत्री अरुण जेटली के एक ब्लॉग के जवाब में यह कहा है। ज़ाहिर है, उसके बाद बीजेपी ने मुफ़्ती पर ज़ोरदार हमला बोल दिया।महबूबा मुफ़्ती का तर्क है कि धारा 370 के तहत ही जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ था और उसे ख़ास दर्जा दिया गया था। उस धारा के नहीं रहने पर कश्मीरियों को यह सोचना पड़ेगा कि वे भारत के साथ सम्बन्ध रखें या नहीं।
क्या वजह थी धारा 370 की?
आज़ादी के समय देश में 562 रियासतें थीं और हर किसी को यह छूट दी गई थी कि वह अपनी मर्ज़ी से भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का फ़ैसला करे। जब लगभग सभी रियासतों ने भारत सरकार के कहने पर भारत की संविधान सभा में अपने प्रतिनिधि भेजे और भारत में विलय करने का फ़ैसला किया तब कश्मीर के राजा हरि सिंह चुप रहे, वह न भारत में शामिल होना चाहते थे और न ही पाकिस्तान में, वह स्वतंत्र कश्मीर बनाए रखना चाहते थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने रज़ाकारों के वेश में अपने सैनिक भेजे जो कश्मीर की लुंज-पुंज सेना को हराते हुये श्रीनगर के पास पहुँच गए तब कश्मीर को हार से बचाने के लिए राजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई। भारत का तर्क था कि यदि कश्मीर का विलय भारत में हो जाए तो भारत यह कह सकेगा कि उसके हिस्से पर हमला हुआ है और वह अपनी सेना भेज सकता है।बड़े दुखी मन से और मजबूरी में राजा हरि सिंह ने 27 अक्टूबर को इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेसन पर दस्तख़त कर दिया। इसके तहत यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत में विलय हो जाएगा, भारत विलय के मुद्दे पर कश्मीरियों की राय लेगा और कश्मीर की स्वायत्तता बरक़रार रहेगी।
क्या है धारा 370?
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता से जुड़े मुद्दे को भारतीय संविधान में शामिल करने के लिए डॉ भीमराव आंबेडकर से एक मसौदा तैयार करने को कहा। उन्होंने बाद में यह काम गोपालस्वामी आयंगर को सौंपा। आयंगर ने जो मसौदा पेश किया, उसे ही धारा 370 कहा गया। इस धारा में प्रावधान थे कि:- जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान मानने से छूट दी गई।
- उसे अपना अलग संविधान रखने की इजाज़त दी गई।
- राज्य के लिए क़ानून बनाने के केंद्र के अधिकार को सीमित कर दिया गया।
- उस समय यह तय हुआ कि सिर्फ़ सुरक्षा, संचार और विदेश मामलों में केंद्र के नियम जम्मू-कश्मीर में लागू होंगे।
- केंद्र के दूसरे संवैधानिक प्रावधान जम्मू-कश्मीर में सिर्फ़ राज्य की सहमति से ही लागू होंगे।
- तमाम मुद्दों पर राज्य की सहमति सिर्फ़ तात्कालिक है, उन प्रावधानों को राज्य की संविधान सभा से पारित कराना होगा।
- केंद्र के प्रावधानों पर सहमति देने का राज्य सरकार को अधिकार संविधान सभा के गठन तक ही रहेगा। राज्य संविधान सभा के गठन के बाद तमाम मुद्दों पर सहमति संविधान सभा ही देगी।
- धारा 370 को ख़त्म करने या इसमें संशोधन करने का अधिकार सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को ही होगा।
बीजेपी धारा 370 का क्यों विरोध करती है?
धारा 370 के कुछ मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी को विरोध रहा है और उनके ख़िलाफ़ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू मार्च किया था। मुखर्जी ने संसद में कश्मीर का मुद्दा उठाया था और कहा था, 'एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो झंडा नहीं रह सकते।' उस समय कश्मीर का अलग संविधान था, वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था और कश्मीर का अपना अलग झंडा था।
इसके अलावा धारा 370 की वजह से -
- जम्मू-कश्मीर के निवासियों के पास दुहरी नागरिकता होगी-भारत की और जम्मू-कश्मीर की।
- शेष भारत का कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में ज़मीन-जायदाद नहीं ख़रीद सकता, वहाँ का स्थायी निवासी नहीं हो सकता।
- भारत का कोई भी क़ानून जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब कश्मीर की विधानसभा उसे मान ले।
- भारत का राष्ट्रपति युद्ध की स्थिति के अलावा किसी दूसरी स्थिति में जम्मू-कश्मीर में आपातकाल लागू नहीं कर सकता।
बीजेपी का तर्क
बीजेपी का तर्क है कि धारा 370 ख़त्म कर देने से बाहर के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन-जायदाद ख़रीद सकेंगे, निवेश कर सकेंगे। इससे राज्य में निवेश और आर्थिक विकास का नया रास्ता खुलेगा। इसके उलट कश्मीरियों को यह डर है कि इसका फ़ायदा उठा कर केंद्र या उसकी एजेंसियाँ शेष भारत के लोगों को बड़ी तादाद में जम्मू-कश्मीर में बसा देंगी। नतीजतन, कश्मीर के लोग अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक हो जाएँगे।कश्मीरियों के डर को असम के उदाहरण से समझा जा सकता है। असम में बांग्लादेश से आए हुए ग़ैर-असमियों की तादाद इतनी ज़्यादा है कि कुछ इलाक़ों में असम के लोग अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक हो गए हैं। असमियों को लगता है कि उनकी भाषा और संस्कृति ख़तरे में है।
धारा 370 ख़त्म हो गई तो?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्ताव के मुताबिक़ भारत को जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराना चाहिए। इस प्रस्ताव की आड़ में पाकिस्तान इस मुद्दे को हमेशा और हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाता रहा है। भारत का तर्क है कि कश्मीर में हुए चुनावों से लोगों की इच्छा का पता चलता है और इसलिए अलग से जनमत संग्रह कराने की ज़रूरत नहीं रही। भारत यह भी कहता रहा है कि धारा 370 कश्मीर के हितों की रक्षा करता है। एक तरह से धारा 370 कश्मीर और शेष भारत के बीच पुल का काम करता है।यदि धारा 370 ख़त्म कर दी गई तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संकेत जा सकता है कि भारत और कश्मीर के बीच जो पुल था, वह नहीं रहा, कश्मीर को जो विशेष सुरक्षा मिली थी, वह नहीं रही। इससे पाकिस्तान के इस दुष्प्रचार को बल मिलेगा कि कश्मीर पर भारत ने ज़बरन कब्जा कर रखा है।
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