मोदी सरकार ने ही आज संसद में कहा है कि पिछले साल सवा दो लाख से ज़्यादा भारतीयों ने भारत की नागरिकता त्याग दी। यह कम से कम पिछले एक दशक में रिकॉर्ड आँकड़ा है। तो सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी के उस सपने का क्या हुआ जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले देखा था?
प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने 2012 में कहा था कि 'मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब अमेरिकी भारतीय वीजा के लिए कतार में खड़े होंगे।' इसके दो साल बाद ही वह प्रधानमंत्री बन गए और 2014 से लगातार वह इस पद पर हैं। लेकिन इन वर्षों के बाद अब सरकार ने ही कहा है कि पिछले साल यानी 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने देश की नागरिकता छोड़ दी। इससे पहले के वर्षों में भी बड़ी तादाद में भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी।
भारतीयों के नागरिकता छोड़ने की यह ख़बर भारत सरकार ने ही दी है, तो इस पर विवाद की गुंजाइश कम ही है। दरअसल, संसद में सरकार से इस बारे में सवाल पूछा गया था।
राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की वर्षवार संख्या बताई। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जयशंकर ने कहा कि 2015 में अपनी भारतीय नागरिकता त्यागने वाले भारतीयों की संख्या 1,31,489 थी, जबकि 2016 में 1,41,603 लोगों ने और 2017 में 1,33,049 लोगों ने नागरिकता छोड़ी। 2018 में यह संख्या 1,34,561 थी, जबकि 2019 में 1,44,017 और 2020 में 85,256 और 2021 में 1,63,370 ने अपनी नागरिकता छोड़ी थी।
नरेंद्र मोदी 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे और फिर 2019 के चुनाव में भी उन्होंने जीत बराकरार रखी। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में दुनिया भर में भारत की साख बढ़ने का लगातार दावा किया जाता रहा है।
चाहे हाल में बजट पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बयान हो या फिर पिछले साल नवंबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान। राजनाथ सिंह ने नवंबर महीने में अपने निर्वाचन क्षेत्र में कहा था कि देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की साख बढ़ी है।
खुद प्रधानमंत्री मोदी भारत को 'विश्वगुरु' बनाने का सपना देख चुके हैं और गृहमंत्री अमित शाह तो उनके जन्मदिन पर इसके लिए तारीफ़ भी कर चुके हैं।
लेकिन क्या प्रधानमंत्री का सपना पिछले 9 सालों में पूरा होता दिख रहा है? अब सवाल है कि आख़िर भारतीय इतनी बड़ी संख्या में नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं?
पिछले साल जुलाई में संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया था कि विदेश मंत्रालय के अनुसार भारतीय नागरिकों ने अपने व्यक्तिगत कारणों से नागरिकता छोड़ी। यह व्यक्तिगत कारण आख़िर क्या है? क्या पढ़ाई और नौकरी की मजबूरी? क्या सिर्फ़ इसके लिए कोई नागरिकता छोड़ता है? क्या कुछ वर्ष पहले का वह विवाद आपने सुना था जिसमें एक जानी-मानी शख्सियत ने असहिष्णुता के माहौल को लेकर कह दिया था कि 'देश में उन्हें डर लगता है'? या मौजूदा समय में ऐसी चर्चा करते किसी को सुना है? क्या सरकार से असहमति रखने वाले लोगों से विदेशों में बसने के बारे में चर्चा करते आपने सुना है?
ये चर्चाएँ आम तौर पर उन लोगों में तेज हुई हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी, ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी, आदिवासियों के लिए काम करने वाले स्टेन स्वामी के जेल में निधन या ऐसे ही दूसरे एक्टिविस्टों पर कार्रवाई और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाए जाने पर चिंताएँ जताते रहे हैं। हालाँकि, सड़कों की ख़राब हालत, यातायात जाम, भ्रष्टाचार जैसे मामलों से खीझे लोग भी अक्सर विदेशों में बस जाने की बात करते रहे हैं।
लेकिन जो सबसे बड़ी बात इसमें निकलकर आती है वह वह मुद्दा है जो कुछ साल पहले ही भारत में काफ़ी चर्चा में रहा था। 2015 में आमिर ख़ान ने असहिष्णुता को लेकर एक बयान दिया था और कहा था कि उनकी तत्कालीन पत्नी किरण राव को भारत में रहने से डर लगता है।
आमिर ने कहा था, 'मैं जब घर पर किरण के साथ बात करता हूं, वह कहती हैं कि क्या हमें भारत से बाहर चले जाना चाहिए? किरण का यह बयान देना एक दुखद एवं बड़ा बयान है। उन्हें अपने बच्चे की चिंता है। उन्हें भय है कि हमारे आसपास कैसा माहौल होगा। उन्हें हर दिन समाचार पत्र खोलने में डर लगता है।' आमिर खान ने उन लोगों का समर्थन किया था, जो असहिष्णुता के खिलाफ अपने पुरस्कार लौटा रहे थे। आमिर ने कहा था, 'रचनात्मक लोगों के लिए उनका पुरस्कार लौटाना अपना असंतोष या निराशा व्यक्त करने के तरीकों में से एक है।'
अपनी राय बतायें