प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने 2012 में कहा था कि 'मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब अमेरिकी भारतीय वीजा के लिए कतार में खड़े होंगे।' इसके दो साल बाद ही वह प्रधानमंत्री बन गए और 2014 से लगातार वह इस पद पर हैं। लेकिन इन वर्षों के बाद अब रिपोर्ट यह आई है कि भारत से पिछले तीन वर्षों में 3.9 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है। इसमें से सबसे ज़्यादा भारतीय अमेरिका में बसे। तो सवाल है कि ऐसा क्या हुआ कि सपना अमेरिकी लोगों को भारत में आकर्षित करने का था लेकिन उलटे भारतीय ही अमेरिकी वीजा के लिए कतार में खड़े हैं?
भारतीयों के नागरिकता छोड़ने की यह ख़बर भारत सरकार ने ही दी है, तो इस पर विवाद की गुंजाइश कम ही है। सरकार ने मंगलवार को संसद को बताया कि अमेरिका उन 103 देशों में शीर्ष पसंद के रूप में उभर रहा है जहां प्रवासी भारतीय बस रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार अकेले 2021 में 1.63 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी। उनमें से 78,000 से अधिक ने अमेरिका की नागरिकता ली। इससे दो साल पहले 2019 में 1.44 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी थी। हालाँकि 2020 में यह आँकड़ा ज़रूर गिरा था और 2020 में 85,256 भारतीयों ने ही नागरिकता छोड़ी थी। कहा तो यह जा रहा है कि 2020 में कोरोना संकट आया था और इसके असर से यह कमी आई हुई हो सकती है।
बहरीन, अंगोला, बुर्किना फासो की भी नागरिकता ली
लेकिन ऐसा हुआ क्या? अब सवाल है कि आख़िर भारतीय इतनी बड़ी संख्या में नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं? इसका जवाब भी सरकार ने दिया है। संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया कि विदेश मंत्रालय के अनुसार भारतीय नागरिकों ने अपने व्यक्तिगत कारणों से नागरिकता छोड़ी।
ये चर्चाएँ आम तौर पर उन लोगों में तेज हुई हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी, ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी, आदिवासियों के लिए काम करने वाले स्टेन स्वामी के जेल में निधन या ऐसे ही दूसरे एक्टिविस्टों पर कार्रवाई और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाए जाने पर चिंताएँ जताते रहे हैं। हालाँकि, सड़कों की ख़राब हालत, यातायात जाम, भ्रष्टाचार जैसे मामलों से खीझे लोग भी अक्सर विदेशों में बस जाने की बात करते रहे हैं।
2015 में आमिर ख़ान ने असहिष्णुता को लेकर एक बयान दिया था और कहा था कि उनकी तत्कालीन पत्नी किरण राव को भारत में रहने से डर लगता है।
आमिर ने कहा था, 'मैं जब घर पर किरण के साथ बात करता हूं, वह कहती हैं कि क्या हमें भारत से बाहर चले जाना चाहिए? किरण का यह बयान देना एक दुखद एवं बड़ा बयान है। उन्हें अपने बच्चे की चिंता है। उन्हें भय है कि हमारे आसपास कैसा माहौल होगा। उन्हें हर दिन समाचार पत्र खोलने में डर लगता है।' आमिर खान ने उन लोगों का समर्थन किया था, जो असहिष्णुता के खिलाफ अपने पुरस्कार लौटा रहे थे। आमिर ने कहा था, 'रचनात्मक लोगों के लिए उनका पुरस्कार लौटाना अपना असंतोष या निराशा व्यक्त करने के तरीकों में से एक है।'
अभिनेता के इस बयान पर जमकर हंगामा हुआ था। बीजेपी नेताओं और उनके समर्थकों ने उनपर निशाना साधा था। मनोज तिवारी ने कहा था कि आमिर खान में अगर जरा भी देशभक्ति है, तो अपने बयान पर माफी मांगें। दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने ट्विटर पर लिखा था, 'प्रिय आमिर खान, क्या आपने कभी किरण से यह पूछा कि वह किस देश जाना चाहती हैं? क्या आपने उन्हें बताया कि इस देश ने आपको आमिर खान बनाया है। क्या आपने किरण को यह बताया है कि आपने देश में इससे भी बुरे दौर को देखा है, लेकिन कभी देश छोड़ने का विचार आपके मन में नहीं आया।' इस घटना के बाद आमिर को 'इनक्रेडिबल इंडिया' के ब्रांड एंबेसडर पद से हटा दिया गया था।
2015 की इस घटना के बाद शायद ही किसी बड़े अभिनेता का इस तरह का बयान आया हो। बड़ी-बड़ी हस्तियों ने ऐसे विवादित मुद्दों पर अधिकतर बार चुप्पी साधना ही बेहतर समझा। नसरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों ने जब कभी कुछ बोला भी तो उस पर काफ़ी ज़्यादा विवाद हुआ। यानी ऐसे मामलों में सार्वजनिक रूप से कुछ बोले जाने पर सामान्य तौर पर चुप्पी है। अब कोई ज़्यादा कुछ बोल क्यों नहीं रहा है? क्या इस सवाल का जवाब भारतीयों के नागरिकता छोड़ने वाली सरकार की ही इस ताज़ा रिपोर्ट में मिलता है?
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